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Moturi Satyanarayana Death Anniversary: मोटूरि सत्यनारायण ने दक्षिण भारत में जगाया था हिंदी का अलख

Moturi Satyanarayana Death Anniversary: मोटूरि सत्यनारायण का जन्म 2 फरवरी, 1902 को आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले के दोंडापाडू गांव में हुआ था. किशोरावस्था से ही आजादी के आंदोलन में उन्‍होंने बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया. महात्मा गांधी ने जब वर्ष 1918 से हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आंदोलन शुरू किया

मोटूरि सत्यनारायण(2 फरवरी, 1902-6 मार्च, 1995)

केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना में रहा अहम योगदान

आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले के दोंडापाडू गांव में जन्मे मोटूरि सत्यनारायण एक स्वतंत्रता सेनानी और दक्षिण भारत में हिंदी के प्रसार के प्रबल समर्थक व प्रचारक रहे. पद्मभूषण से सम्मानित मोटूरि सत्यनारायण दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास के प्रधानमंत्री भी रहे. आज उनकी पुण्यतिथि है.

मोटूरि सत्यनारायण का जन्म 2 फरवरी, 1902 को आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले के दोंडापाडू गांव में हुआ था. किशोरावस्था से ही आजादी के आंदोलन में उन्‍होंने बढ़-चढ़कर हिस्‍सा लिया. महात्मा गांधी ने जब वर्ष 1918 से हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए आंदोलन शुरू किया, तो मोटूरि सत्यनारायण भी उसमें प्रमुखता से जुड़े. डॉ राजेंद्र प्रसाद, जमनालाल बजाज, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी, डॉ गोपाल रेड्डी, आंध्र-केसरी टंगहूरि प्रकाशन पंतुलु आदि के सहयोग से उन्होंने गांधीजी का संदेश गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाया.

किसी महाविद्यालय से नहीं ली थी शिक्षा


मोटूरि सत्यनारायण ने किसी विद्यालय-महाविद्यालय से शिक्षा प्राप्त नहीं की थी. उन्होंने स्व-अध्ययन से शिक्षा हासिल की थी. कुछ दिनों के लिए राष्ट्रीय कला शाला में जरूरी शिक्षा ग्रहण की थी. सत्यनारायण जी की मातृभाषा तो तेलुगु थी, लेकिन हिंदी से भी उन्हें मातृभाषा जैसा ही स्नेह था.

केंद्रीय हिंदी संस्थान की स्थापना में योगदान

वर्ष 1951 में मोटूरि सत्यनारायण ने उत्तर प्रदेश के आगरा में अखिल भारतीय हिंदी परिषद की स्थापना की. यह संस्था एक हिंदी शिक्षक प्रशिक्षण संस्था थी. इसके बाद परिषद ने वर्ष 1960 में अखिल भारतीय हिंदी महाविद्यालय भी शुरू किया. आगे के वर्षों में महाविद्यालय के कार्यों का विस्तार होता चला गया. बाद में इसी महाविद्यालय का नामकरण केंद्रीय हिंदी संस्थान के रूप में कर दिया गया. केंद्रीय हिंदी संस्थान में हिंदी सीखने के लिए दुनियाभर के कई देशों के छात्र यहां आते हैं. इनमें श्रीलंका, चीन, कोलंबिया, कजाकिस्तान, मंगोलिया, नाइजीरिया, रूस आदि देशों के छात्र होते हैं.

कई भाषाओं के ज्ञाता थे मोटूरि सत्यनारायण


मोटूरि सत्यनारायण कई भाषाओं के जानकार थे. वह अपनी मातृभाषा तेलुगु के साथ-साथ तमिल, कन्नड़, मलयालम, मराठी, गुजराती, बांग्ला, उर्दू और अंग्रेजी में भी दक्ष थे. खासकर वे सभी भारतीय भाषाओं के पक्षधर थे. उन्होंने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के प्रधानमंत्री का पद भी संभाला. साथ ही वह तेलुगु भाषा समिति के प्रधान सचिव भी रहे. इसके साथ ही वह मद्रास विधान परिषद तथा राज्यसभा के सदस्य भी रहे. बाद में उनके कार्यों के लिए पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया.

इनकी स्मृति में हर वर्ष दिया जाता है पुरस्कार


हर वर्ष मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत के ‘केंद्रीय हिंदी संस्थान’ द्वारा पद्मभूषण मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार भारतीय मूल के उन हिंदी विद्वानों को दिया जाता है, जो विदेश में हिंदी भाषा अथवा साहित्य के क्षेत्र में विशिष्ट योगदान करते हैं. इस पुरस्कार की शुरुआत हिंदी सेवी मोटूरि सत्यनारायण के नाम पर वर्ष 1989 में किया गया था. यह पुरस्कार भारत के राष्ट्रपति प्रदान करते हैं. पहला ‘पद्मभूषण डॉ मोटूरि सत्यनारायण पुरस्कार’ 2002 में कनाडा के ‘हरिशंकर आदेश’ को प्रदान किया गया था. पुरस्कार के तहत एक लाख रुपये की राशि नगद दी जाती है. इसके साथ ही एक स्मृति चिह्न, प्रशस्ति पत्र और शॉल भी दिया जाता है.

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