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ZEE-Sony Merger: एनसीएलटी ने जी एंटरटेनमेंट और सोनी के मर्जर पर रोक से किया इंकार, जनवरी में फिर होगी सुनवाई

ZEE-Sony Merger Case: नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLT) ने जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) और कल्वर मैक्स एंटरटेनमेंट (सोनी पिक्चर्स इंडिया) के विलय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है.

ZEE-Sony Merger Case: नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल (NCLT) ने जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइजेज लिमिटेड (ZEEL) और कल्वर मैक्स एंटरटेनमेंट (सोनी पिक्चर्स इंडिया) के विलय पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है. ट्रिब्यूनल एक्सिस फाइनेंस और आईडीबीआई बैंक की अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने ट्रिब्यूनल में विलय को चुनौती दी है. मिंट के अनुसार, अगली सुनवाई 8 जनवरी 2024 के लिए सूचीबद्ध की गई है. इससे पहले 6 दिसंबर को एनसीएलएटी ने समय की कमी के कारण दो अपीलों पर सुनवाई स्थगित कर दी थी. 31 अक्टूबर को, मामला एक अलग पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया गया, जिसने दोनों याचिकाओं को इसके अध्यक्ष की अध्यक्षता वाली एनसीएलएटी पीठ में स्थानांतरित कर दिया. ये मर्जर 10 बिलियन डॉलर के आसपास का बताया जाता है. आईडीबीआई बैंक और एक्सिस फाइनेंस दोनों ने नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की मुंबई पीठ के 10 अगस्त के आदेश को चुनौती दी है, जिसने मेगा मीडिया विलय को मंजूरी दे दी गयी थी. इस कदम का विरोध करने वाले वित्तीय संस्थानों द्वारा दायर कुछ आवेदनों को खारिज कर दिया है. इन संस्थानों में आईडीबीआई ट्रस्टीशिप, आईडीबीआई बैंक, एक्सिस फाइनेंस, जैसी फ्लावर्स एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी और आईमैक्स कॉर्प शामिल हैं.

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विलय योजना पर 2021 में हुआ था समझौता

Sony और ZEEL के बीच विलय के लिए समझौता 2021 के दिसंबर में हुआ था. नयी बनने वाली जाइंट मीडिया हाउस में सोनी की अप्रत्यक्ष रूप से सबसे ज्यादा 50.86 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी. जबकि, जी के फाउंडर्स की कंपनी में 3.99 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी. वहीं, जी के शेयरधारकों की 45.15 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी. 2021 में दोनों कंपनियों की विलय प्रक्रिया पूरी होने में 8 से 10 महीने का वक्त लगने की उम्मीद की जा रही थी. हालांकि, कई कारणों से तय वक्त में विलय नहीं हो सका. इसकी वजह यह है कि जी को कर्ज देने वाले कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों ने इस विलय के खिलाफ याचिका दाखिल कर दी.

कैसे एक कंपनी दूसरे कंपनी से मर्ज होती है

कंपनी एक दूसरी कंपनी का अधिग्रहण (मर्जर और अक्कर्ता) करने के लिए दोनों कंपनियों में पहले वार्ता होती है. अधिग्रहण की योजना बनाने के लिए दोनों कंपनियों के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स एक समझौते पर सहमत होते हैं. इसमें अधिग्रहण के विवरण, समयसीमा, सम्पत्ति का मूल्यांकन, स्टॉक मुद्रा आदि का समायोजन होता है. एक बार योजना बनने और समझौते के बाद, नौबत (फॉर्म 23C और फॉर्म 1 नौबत) जारी किया जाता है. इसमें अधिग्रहण की प्रक्रिया और विवरण शामिल होते हैं. नौबत जारी करने के बाद, उसे सर्वोच्च न्यायालय या नौबत स्वीकृति अधिकारी को प्रस्तुत किया जाता है. स्वीकृति प्राप्त करने के बाद, योजना के मुताबिक अधिग्रहण का कार्यान्वयन शुरू किया जाता है. इसमें एक कंपनी दूसरी कंपनी के सम्पत्ति, स्टॉक, और सम्पत्ति का नियंत्रण प्राप्त करती है. अधिग्रहण के बाद, दोनों कंपनियों के विभिन्न प्रक्रिया, उत्पादन, वित्त, और प्रबंधन की प्रणालियों को एकीकृत किया जाता है. विभिन्न विभाजित संरचना को एक समेकित और संगठित संरचना में बदला जाता है.

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