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Vodafone-Airtel Petition: AGR केस में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, वोडाफोन – एयरटेल को नहीं मिली राहत

Vodafone-Airtel Petition: सोमवार को टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल ने सुप्रीम कोर्ट के सामने एक पेटीशन पेश किया था, जिसमें उनके लंबे समय से चले आ रहे एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) ड्यू के हिस्से के रूप में इंटरेस्ट, जुर्माना और उससे जुड़े इंटरेस्ट का भुगतान करने से छूट की मांग की गई थी. हालांकि, ये पेटीशन कोर्ट के द्वारा रिजेक्ट हो गई.

Vodafone-Airtel Petition: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को टेलीकॉम कंपनी वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू (AGR) बकाया राशि पर इंटरेस्ट, जुर्माने और उससे जुड़े इंटरेस्ट से राहत की मांग की थी. याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पहले ही अंतिम फैसला सुनाया जा चुका है और अब इसमें कोई बदलाव करना संभव नहीं है. 

क्या है AGR का मामला

AGR यानी Adjusted Gross Revenue, टेलीकॉम कंपनियों की इनकम से जुड़ा एक कैल्क्युलेशन का तरीका है. दूरसंचार विभाग (DoT) के मुताबिक, इसमें लाइसेंस फीस और स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क शामिल होते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एक ऐतिहासिक फैसले में DoT की बात को सही ठहराया था और टेलीकॉम कंपनियों को 1.6 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान करने का आदेश दिया था. 

क्या थी कंपनियों की दलील

वोडाफोन-आइडिया और एयरटेल ने याचिका में कहा था कि उन्हें AGR बकाया की मूल रकम स्वीकार है, लेकिन उस पर लगाए गए भारी-भरकम इंटरेस्ट, जुर्माने और उस पर लगे इंटरेस्ट से उन्हें राहत दी जाए, क्योंकि इससे उनकी वित्तीय स्थिति पर गंभीर असर पड़ा है. कंपनियों का कहना था कि उन्होंने कुछ भुगतान पहले ही कर दिए हैं और बची हुई रकम चुकाने के लिए री-इवैल्यूएशन की जरूरत है.

वोडाफोन आइडिया ने दिया तर्क

वोडाफोन-आइडिया ने कहा कि लगभग 200 मिलियन ग्राहकों, 18% से अधिक मार्केट शेयर और 20,000 से अधिक कर्मचारियों के साथ यदि उसे अगले छह सालों तक सालाना लगभग 18,000 करोड़ रुपये की एजीआर किस्तों का भुगतान जारी रखना पड़ा, तो कंपनी गंभीर खतरे में पड़ सकती है. कंपनी का कहना है कि उसका ऐन्यूअल ऑपरेशनल कैश जनरेशन 9,200 करोड़ रुपये है जो कि सालाना एजीआर किस्त 18,000 करोड़ रुपये से काफी कम है. 

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कोर्ट का फैसला

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने कहा कि इस मामले में राहत के लिए टेलीकॉम कंपनियों द्वारा किए गए अनुरोधों से वह परेशान हैं. कोर्ट ने कहा कि इतनी प्रतिष्ठित कंपनियां इस तरह की गलत याचिका के साथ कोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटा सकतीं. 

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