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अमेरिकी टैरिफ से भारतीय शेयर बाजार में गिरावट, वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता

US Tariff Impact: हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत से आयात होने वाले कुछ सामानों पर 25% का टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा के बाद भारतीय शेयर बाजार में गिरावट देखी गई है. इस कदम से वैश्विक व्यापार में भी अनिश्चितता का माहौल बन गया है.

US Tariff Impact: आज अमेरिकी टैरिफ लागू होने के बाद भारतीय शेयर बाजार में भारी गिरावट दर्ज की गई है, जिससे निवेशकों में चिंता का माहौल है। इस कदम से न केवल भारत बल्कि वैश्विक व्यापार पर भी अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं। सुबह से ही मुंबई और दिल्ली के प्रमुख शेयर बाजारों में बिकवाली का दौर जारी है, जिसके चलते सेंसेक्स और निफ्टी दोनों बड़े अंकों से नीचे गिरे हैं। जानकारों का कहना है कि अमेरिका द्वारा लगाए गए ये नए व्यापार शुल्क दुनिया भर में आर्थिक स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती बन गए हैं, जिसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर दिख रहा है। यह स्थिति वैश्विक व्यापारिक रिश्तों में नए तनाव को जन्म दे रही है और आगे चलकर कई देशों के लिए मुश्किलें बढ़ा सकती है।

वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता और भारतीय शेयर बाजार पर असर

हाल ही में अमेरिका द्वारा भारत से आयात होने वाले कुछ सामानों पर 25% का टैरिफ (आयात शुल्क) लगाने की घोषणा के बाद भारतीय शेयर बाजार में गिरावट देखी गई है। इस कदम से वैश्विक व्यापार में भी अनिश्चितता का माहौल बन गया है। टैरिफ एक प्रकार का कर है जो किसी देश द्वारा आयातित वस्तुओं पर लगाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना और सरकार के लिए राजस्व बढ़ाना होता है।

पृष्ठभूमि और अमेरिकी टैरिफ के कारण

अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संबंध लंबे समय से चर्चा में रहे हैं। अमेरिका का आरोप है कि भारत अमेरिकी सामानों पर बहुत अधिक आयात शुल्क लगाता है, जिससे अमेरिकी निर्यात सीमित हो जाता है। 30 जुलाई, 2025 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की कि 1 अगस्त, 2025 से भारत से आयात पर 25% टैरिफ लगेगा, साथ ही रूस से तेल और सैन्य उपकरण खरीदने के लिए अतिरिक्त दंड (पेनल्टी) भी लगाया जाएगा। हालांकि, इस फैसले को सात दिनों के लिए टाल दिया गया, और अब यह 7 अगस्त, 2025 से लागू होगा।

अमेरिका के इस कदम के पीछे कई कारण बताए जा रहे हैं:

  • उच्च भारतीय टैरिफ: अमेरिका का कहना है कि भारत कृषि उत्पादों पर औसतन 39% ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ (MFN) टैरिफ लगाता है, जबकि अमेरिका में यह 5% है।
  • कृषि और डेयरी बाजार तक पहुंच: अमेरिका भारत के कृषि और डेयरी बाजारों तक बेहतर पहुंच चाहता है, लेकिन भारत अपने किसानों के हितों की रक्षा के लिए इन क्षेत्रों को मुक्त व्यापार समझौतों से बाहर रखता आया है।
  • रूस से संबंध: अमेरिका रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर भारत के रूस से सैन्य उपकरण और कच्चा तेल खरीदने को लेकर भी असंतुष्ट है।

इससे पहले अप्रैल 2025 में भी ट्रंप ने भारत पर 26% ‘रेसिप्रोकल टैरिफ’ लगाने की घोषणा की थी, जिसे बाद में निलंबित कर दिया गया था।

भारतीय शेयर बाजार पर तत्काल प्रभाव

अमेरिकी टैरिफ की घोषणा के बाद भारतीय शेयर बाजार में तुरंत गिरावट देखी गई। 25 जुलाई को सेंसेक्स 1200 अंकों से ज्यादा लुढ़क गया, जबकि निफ्टी 24,850 के स्तर से नीचे फिसल गया, जिससे निवेशकों को लगभग 8. 67 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। विशेष रूप से फार्मा, ऑटो पार्ट्स, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों के शेयरों में तेज गिरावट आई। विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भी भारतीय बाजार से भारी मात्रा में बिकवाली की है, जिससे बाजार पर दबाव और बढ़ गया। जुलाई महीने में विदेशी निवेशकों ने 7923 करोड़ रुपये निकाले हैं।

“बाजार की इस तेज गिरावट ने निवेशकों को सतर्क कर दिया है, और अब सभी की निगाहें आगामी आर्थिक संकेतकों और वैश्विक बाजारों पर टिकी हैं।”

बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इस स्थिति में सावधानी से निवेश करना और बाजार के तकनीकी संकेतों पर नजर रखना आवश्यक है।

वैश्विक व्यापार में अनिश्चितता

यह टैरिफ केवल भारत तक सीमित नहीं है। अमेरिका ने 66 से 70 से अधिक देशों पर नए ‘पारस्परिक टैरिफ’ लगाए हैं, जिनकी दरें 10% से 41% तक हैं। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अनुसार, 2025 में वैश्विक वाणिज्य-वस्तु व्यापार में 0. 2% की गिरावट आने का अनुमान है, और यदि व्यापार तनाव बढ़ता है, तो यह गिरावट 1. 5% तक हो सकती है। विश्व व्यापार संगठन एक अंतरराष्ट्रीय संगठन है जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय व्यापार को उदार बनाना और व्यापार से संबंधित नियमों को निर्धारित करना है।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले से ही मंदी की राह पर है। संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास एजेंसी (UNCTAD) के अनुसार, 2025 में वैश्विक विकास दर धीमी होकर 2. 3% हो जाएगी, जो मंदी का संकेत है। व्यापार नीति की अनिश्चितता अपने ऐतिहासिक चरम पर है, जिससे निवेश निर्णयों में देरी हो रही है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो रही है।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर व्यापक प्रभाव

अमेरिकी टैरिफ का भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई तरह से असर पड़ सकता है:

  • निर्यात पर असर: अमेरिका भारत के लिए एक बड़ा निर्यात बाजार है। 2023-24 में भारत ने अमेरिका को 77. 5 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया था। विश्लेषकों का अनुमान है कि नए टैरिफ से भारत के निर्यात में सालाना 2 से 7 अरब डॉलर तक की गिरावट आ सकती है। रत्न-आभूषण, वस्त्र, ऑटो पार्ट्स, स्टील और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे श्रम-गहन क्षेत्रों पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा।
  • लागत में वृद्धि और प्रतिस्पर्धा का नुकसान: भारतीय वस्तुओं की कीमत में 25% की वृद्धि से अमेरिकी बाजार में उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता कम हो जाएगी। वियतनाम (19%) और इंडोनेशिया (20%) जैसे अन्य देशों की तुलना में भारतीय उत्पाद महंगे हो जाएंगे।
  • जीडीपी वृद्धि में कमी: अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि टैरिफ से भारत की जीडीपी वृद्धि 2025-26 में 0. 2-0. 5% तक कम हो सकती है।
  • रुपये पर दबाव: टैरिफ के चलते रुपये पर भी दबाव बढ़ सकता है और यह डॉलर के मुकाबले और कमजोर हो सकता है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) पर प्रभाव: सस्ते आयातित उत्पादों की भारत में डंपिंग से घरेलू MSMEs की प्रतिस्पर्धा क्षमता घट सकती है, जिससे रोजगार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

हालांकि, एसबीआई रिसर्च की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत से निर्यात होने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर अमेरिका द्वारा 25% आयात शुल्क स्वयं अमेरिका की अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा, क्योंकि इससे अमेरिका की जीडीपी में 40-50 आधार अंकों की गिरावट आ सकती है।

सरकार की प्रतिक्रिया और आगे की राह

भारत सरकार ने अमेरिकी टैरिफ की घोषणा के प्रभावों का अध्ययन करने और ‘राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा’ के लिए सभी आवश्यक कदम उठाने की बात कही है। वाणिज्य मंत्रालय ने कहा है कि भारत एक निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए प्रतिबद्ध है। भारत ने रूस से तेल खरीद को अपने राष्ट्रीय हितों के लिए आवश्यक बताया है।

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार समझौते को लेकर वार्ताएं जारी हैं। सूत्रों के अनुसार, भारत श्रम-प्रधान क्षेत्रों जैसे वस्त्र, रत्न एवं आभूषण, चमड़े के सामान, परिधान, प्लास्टिक, रसायन, और कुछ कृषि उत्पादों पर विशेष शुल्क रियायतें चाहता है। वहीं, अमेरिका डेयरी और कृषि उत्पादों तक भारतीय बाजार में सस्ती दरों पर पहुंच चाहता है।

विशेषज्ञों का कहना है कि यह स्थिति भारत के लिए एक अवसर भी हो सकती है। टैरिफ के कारण अमेरिकी और वैश्विक कंपनियां भारत में स्थानीय तौर पर उत्पादन करने को प्रोत्साहित हो सकती हैं, जिससे नौकरी, निवेश और तकनीक के हस्तांतरण की गति बढ़ेगी। भारत को सुधारों पर जोर देने, प्रमुख व्यापार समझौते करने और उपभोग को मजबूत बनाए रखने की जरूरत है।

Disclaimer: शेयर बाजार से संबंधित किसी भी खरीद-बिक्री के लिए प्रभात खबर कोई सुझाव नहीं देता. हम बाजार से जुड़े विश्लेषण मार्केट एक्सपर्ट्स और ब्रोकिंग कंपनियों के हवाले से प्रकाशित करते हैं. लेकिन प्रमाणित विशेषज्ञों से परामर्श के बाद ही बाजार से जुड़े निर्णय करें.

Rajeev Kumar
Rajeev Kumar
राजीव, 14 वर्षों से मल्टीमीडिया जर्नलिज्म में एक्टिव हैं. टेक्नोलॉजी में खास इंटरेस्ट है. इन्होंने एआई, एमएल, आईओटी, टेलीकॉम, गैजेट्स, सहित तकनीक की बदलती दुनिया को नजदीक से देखा, समझा और यूजर्स के लिए उसे आसान भाषा में पेश किया है. वर्तमान में ये टेक-मैटर्स पर रिपोर्ट, रिव्यू, एनालिसिस और एक्सप्लेनर लिखते हैं. ये किसी भी विषय की गहराई में जाकर उसकी परतें उधेड़ने का हुनर रखते हैं. इनकी कलम का संतुलन, कंटेंट को एसईओ फ्रेंडली बनाता और पाठकों के दिलों में उतारता है. जुड़िए [email protected] पर

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