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सूरत के व्यापारी ने बदल दी किसानों की किस्मत, मां की पुण्यतिथि पर 290 लोगों को कर दिया कर्जमुक्त

Surat Businessman: सूरत के व्यापारी बाबूभाई जीरावाला ने अपनी मां की पुण्यतिथि पर अमरेली जिले के 290 किसानों का लगभग 90 लाख रुपये का कर्ज चुकाकर उन्हें वर्षों पुराने बोझ से मुक्त किया. किसानों पर यह कर्ज उन्होंने लिया भी नहीं था, लेकिन रिकॉर्ड में दर्ज था. इस मदद से किसानों को नए ऋण, सरकारी योजनाओं और जमीन रिकॉर्ड सुधार का रास्ता खुल गया.

Surat Businessman: भारत में दरियादिल परोपकारी लोगों की कमी नहीं है. इन परोपकारी लोगों में कई ऐसे हैं, जो अपने कर्मचारियों के लिए लाखों रुपये दान कर देते हैं, तो कुछ अन्नदाता किसानों को कर्जमुक्त करने में अहम भूमिका निभाते हैं. ऐसे ही, गुजरात के सूरत शहर के एक कारोबारी ने अमरेली जिला स्थित जीरा गांव के करीब 290 किसानों के कर्ज का भुगतान कर उन्हें कर्जमुक्त कर दिया. किसानों का यह कर्ज करीब 30 साल पुराना था. इस परोपकारी व्यापारी का नाम बाबूभाई जीरावाला है. सबसे खास बात यह है कि व्यापारी बाबूभाई जीरावाला ने अपनी मां के पुण्यतिथि के मौके पर यह नेक काम किया है. आइए, इसके बारे में विस्तार से जानते हैं.

तीन दशक से लटका बोझ एक दिन में उतरा

स्टार्टअप पीडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमरेली जिले के जीरा गांव के किसानों पर पिछले लगभग 30 साल से कर्ज का बोझ लटका हुआ था. यह कर्ज उन्होंने लिया भी नहीं था, लेकिन दस्तावेजों में उनके नाम पर बकाया राशि दर्ज थी. इस वजह से किसान न नए कर्ज ले पा रहे थे और न ही उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ मिल पा रहा था. जमीन के रिकॉर्ड अपडेट करवाने जैसी सामान्य प्रक्रियाएं भी रुक गई थीं. वर्षों से चले आ रहे इस तनाव ने परिवारों की उम्मीदें लगभग खत्म कर दी थीं.

व्यापारी बाबूभाई जीरावाला का अनोखा संकल्प

रिपोर्ट में कहा गया है कि सूरत के व्यवसायी बाबूभाई जीरावाला ने अपनी मां की पुण्यतिथि पर यह निश्चय किया कि वे समाज के लिए ऐसा काम करेंगे, जो सीधे लोगों की जिंदगी बदल दे. उन्होंने जब जीरा गांव के किसानों की दशकों पुरानी समस्या के बारे में जाना, तो उसे समाप्त करने का निर्णय लिया. बाबूभाई ने इन 290 किसानों के नाम पर दर्ज कुल कर्ज 89,89,209 रुपये (करीब 90 लाख रुपये) का भुगतान स्वयं कर दिया. इसके बाद सहकारी बैंक ने किसानों को अदेयता प्रमाण पत्र जारी कर उनके नाम से सारा कर्ज हटाने की औपचारिक प्रक्रिया पूरी की.

कर्ज जो किसानों ने कभी लिया ही नहीं

यह पूरी समस्या 1990 के दशक के मध्य में शुरू हुई थी. आरोप है कि उस समय सहकारी समिति से जुड़े कुछ लोगों ने किसानों की जानकारी के बिना, उनके ही नाम का इस्तेमाल करके कर्ज ले लिया. बाद में यह कर्ज किसानों पर डाल दिया गया. समय के साथ ब्याज बढ़ता गया और बकाया राशि लाखों में पहुंच गई. गरीब और ईमानदार किसान बार-बार यह समझाते रहे कि उन्होंने कोई कर्ज नहीं लिया, लेकिन उनकी बात को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया.

किसानों ने वर्षों तक किया मुश्किलों का सामना

जीरा गांव के किसानों की आर्थिक स्थिति पहले ही कमजोर थी, उससे ऊपर यह झूठा कर्ज उनके विकास में सबसे बड़ी रुकावट बन गया. उन्हें बरसों तक मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वे बैंक से नए कर्ज नहीं ले पा रहे थे. सरकारी योजनाओं का लाभ भी उनसे दूर हो गया. जमीन के रिकॉर्ड में सुधार रुक गया. बच्चों की पढ़ाई और खेती के खर्च पूरे करना मुश्किल होता गया. इस लंबी लड़ाई ने कई किसानों को मानसिक रूप से थका दिया. कई बुजुर्गों ने तो उम्मीद ही छोड़ दी थी कि उनके नाम कभी साफ होंगे.

एक निर्णय ने बदल दी गांव की किस्मत

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब बाबूभाई जीरावाला ने यह कर्ज चुकाया, तो गांव में मानो एक नई सुबह आ गई. बैंक की ओर से जारी किए गए अदेयता प्रमाण पत्र किसानों के लिए सिर्फ एक कागज़ नहीं, बल्कि नई शुरुआत का प्रतीक थे. एक कार्यक्रम के दौरान कई किसान भावुक हो उठे. कुछ ने बाबूभाई का हाथ पकड़कर धन्यवाद देते हुए बताया कि उन्होंने वर्षों से इस दिन की उम्मीद छोड़ दी थी.

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किसानों को मिली नई आजादी

इस निर्णय से जीरा गांव के किसानों को कई बड़े लाभ तुरंत मिल गए. अब किसान नए कर्ज और कृषि लोन के लिए आवेदन कर सकेंगे. खेती से जुड़े उपकरण, सिंचाई व्यवस्था और बीजों पर निवेश कर पाएंगे. सरकारी योजनाओं के दरवाजे फिर से खुल गए. जमीन के रिकॉर्ड साफ होने से भविष्य की दिक्कतें खत्म होंगी. किसानों के परिवार दशकों बाद राहत की सांस ले पा रहे हैं. कई युवाओं ने कहा कि अब वे अपने खेतों को आधुनिक तकनीकों से विकसित करने की योजना बना रहे हैं.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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