Success Story: वरुण गोसाईं एक ऐसा शख्स, जब सुबह आइने के सामने खड़े होते थे, तो उन्हें सिर्फ बढ़ता हुआ वजन नहीं दिखता था, बल्कि एक ऐसी लाइफस्टाइल साफ नजर आती थी, जो धीरे-धीरे उन्हें भीतर से खोखला कर रही थी. उनका 118 किलो वजन था और शरीर थकान से भरा रहता था. हर वक्त कुछ मीठा खाने का मन करता था. यह उस काम की देन थी, जिसे वह सालों से कर रहे थे. एफएमसीजी इंडस्ट्री में रहते हुए वरुण गोसाईं ने चीनी से जुड़े प्रोडक्ट्स बेचे, प्रमोट किए और अनजाने में खुद भी जरूरत से ज्यादा चीनी खा ली. अपने शारीरिक वजन और खाने की आदत से परेशान वरुण ने पहले 31 किलो वजन घटाया और फिर एक ऐसा जूस ब्रांड लॉन्च किया कि अब उससे उन्हें हर महीने करीब 20 लाख रुपये राजस्व की कमाई होती है.
जब काम ही आदत बन जाए
स्टार्टअप पीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, वरुण मानते हैं कि जब आप किसी प्रोडक्ट को दिन-रात बेचते हैं, तो वह आपकी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है. यही उनके साथ भी हुआ. वजन लगातार बढ़ता गया, एनर्जी घटती चली गई और एक वक्त ऐसा आया जब उन्होंने खुद से ईमानदारी से सवाल किया. क्या यही जिंदगी है? इसी सवाल ने उन्हें बदलने पर मजबूर किया. उन्होंने अपनी डाइट सुधारी, लाइफस्टाइल बदली और फिटनेस को प्राथमिकता दी. मेहनत रंग लाई और उन्होंने करीब 31 किलो वजन कम किया.
फिटनेस के बाद सामने आई असली समस्या
फिट होना उनके लिए मंजिल नहीं, बल्कि शुरुआत थी. असली परेशानी तब सामने आई, जब उन्हें यह समझ में आया कि फिट रहने के लिए सबसे जरूरी चीज साफ और भरोसेमंद खाना-पीना भारत में मिलना कितना मुश्किल है. वर्कआउट के बाद शरीर कुछ मीठा और ठंडा चाहता था, लेकिन बाजार में मिलने वाले ज्यादातर जूस बोतलों पर 100% नैचुरल लिखा होने के बावजूद अंदर कुछ और ही कहानी कहते थे. आईएनएस नंबर, आर्टिफिशियल स्वीटनर और प्रिजर्वेटिव्स देखकर वरुण को महसूस हुआ कि हेल्दी के नाम पर उपभोक्ता को भ्रम में रखा जा रहा है.
एक बेचैनी से जन्मा बिजनेस आइडिया
वरुण की यही बेचैनी आगे चलकर एक आइडिया में बदली. फिटनेस जर्नी के दौरान वरुण की मुलाकात मेधा पाठक और याकूब पारेख से हुई. तीनों की सोच एक जैसी थी. अगर खुद के लिए ईमानदार प्रोडक्ट नहीं मिल रहा, तो शायद हमें ही बनाना चाहिए. उन्होंने लोकल जूस स्टॉल से लेकर सुपरमार्केट के बड़े ब्रांड्स तक सब कुछ आजमाया, लेकिन हर जगह या तो हाइजीन की भारी कमी थी या इंग्रीडिएंट्स में छुपी सच्चाई थी.
एक घटना ने फैसला पक्का कर दिया
एक दिन एक जूस वाले ने बेहद गंदी हालत में बिना हाथ धोए जूस सर्व कर दिया. वरुण बताते हैं कि उसी पल उन्हें समझ आ गया कि समस्या सिर्फ स्वाद या कीमत की नहीं है, बल्कि भरोसे की है. उपभोक्ता के पास ऐसा कोई विकल्प ही नहीं है, जिस पर आंख बंद करके भरोसा किया जा सके. उसी दिन तय हो गया कि अब शिकायत नहीं, समाधान बनाया जाएगा.
नो फिल्टर एक नाम भी और काम भी
यहीं से नो फिल्टर नाम का जन्म हुआ. यह एक ऐसा जूस ब्रांड है, जिसमें न इंग्रीडिएंट्स और न ही सच्चाई को को छुपाया जाता है. वरुण और उनकी टीम का मानना था कि जूस का मतलब सिर्फ फल होना चाहिए, कुछ और नहीं. इस जूस में न एक्स्ट्रा चीनी, न स्वीटनर और न ही प्रिजर्वेटिव होना चाहिए. बोतल पर जो लिखा है, अंदर भी वही है.
टेक्नोलॉजी जो भरोसा बनाती है
नो फिल्टर के जूस हॉट-वैक्यूम प्रेस्ड टेक्नोलॉजी से तैयार किए जाते हैं. जब जूस बोतल में भरा जाता है, तब वह गर्म होता है और जैसे-जैसे वह ठंडा होता है, अंदर नैचुरल वैक्यूम बन जाता है. यही वैक्यूम बिना किसी केमिकल के जूस को सुरक्षित रखता है और इसकी 15 महीने की शेल्फ लाइफ संभव बनाता है.
भारत के 13 शहरों में पहुंच
अक्टूबर 2024 में लॉन्च होने के बाद नो फिल्टर ने बहुत तेजी से अपनी पहचान बनाई. सिर्फ छह महीनों में 90,000 से ज्यादा बोतलें बिक चुकी हैं और आज यह ब्रांड हर महीने करीब 20 लाख रुपये का रेवेन्यू कमा रहा है. भारत के 13 शहरों तक इसकी पहुंच बन चुकी है.
अब सपना है ग्लोबल पहचान
वरुण का सपना यहीं खत्म नहीं होता. जब वह विदेशों में ड्यूटी-फ्री स्टोर्स देखते हैं और वहां भारतीय ब्रांड्स की कमी महसूस करते हैं, तो उन्हें यह खलता है. वह चाहते हैं कि दुनिया में कहीं भी कोई व्यक्ति नो फिल्टर की बोतल उठाए और गर्व से कहे कि यह भारत से आया है.
सिर्फ जूस नहीं, भरोसे की कहानी
नो फिल्टर सिर्फ एक जूस ब्रांड नहीं है, बल्कि उस भरोसे की कहानी है जिसकी आज फूड और बेवरेज इंडस्ट्री में सबसे ज़्यादा कमी है. वरुण इसे सिर्फ बेचते नहीं हैं, बल्कि खुद भी उसी पर जीते हैं. वे कहते हैं, ‘हम नो फिल्टर के साथ जीते हैं, सांस लेते हैं, खाते हैं और पीते भी हैं.’
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