Rupees News: प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) के सदस्य संजीव सान्याल ने गुरुवार को कहा कि डॉलर के मुकाबले रुपये में आई बड़ी गिरावट को लेकर उन्हें कोई चिंता नहीं है और इसे आर्थिक परेशानी से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट किया कि रुपये की कमजोरी को किसी आर्थिक संकट या बुनियादी कमजोरी से जोड़कर देखना सही नहीं होगा. उन्होंने कहा कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में ऐसा होना सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है.
जापान और चीन की मुद्राओं में भी आई थी गिरावट
टाइम्स नेटवर्क इंडिया इकोनॉमिक कॉन्क्लेव 2025 को संबोधित करते हुए सान्याल ने कहा, ‘इतिहास गवाह है कि जब जापान और चीन तेज आर्थिक विकास के दौर में थे, तब उनकी विनिमय दरें भी अपेक्षाकृत कमजोर रखी गई थीं.’ उन्होंने बताया कि 1990 और 2000 के दशक में चीन की मुद्रा में कमजोरी देखी गई, लेकिन इससे उसकी विकास गति प्रभावित नहीं हुई.
आरबीआई कर रहा रुपये की निगरानी
संजीव सान्याल ने आगे कहा कि 1990 के दशक के बाद से भारत में रुपये को काफी हद तक बाजार आधारित प्रणाली के तहत चलने दिया गया है. हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) बहुत अधिक उतार-चढ़ाव की स्थिति में अपने विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करता है, ताकि अस्थिरता को नियंत्रित किया जा सके. उन्होंने कहा कि मौजूदा हालात में आरबीआई की भूमिका संतुलन बनाए रखने की है, न कि किसी कृत्रिम स्तर को थामे रखने की.
महंगाई न बढ़े तो कमजोरी चिंता की बात नहीं
उन्होंने साफ कहा कि रुपये का कमजोर होना अपने आप में नकारात्मक संकेत नहीं है, जब तक इससे घरेलू मुद्रास्फीति नहीं बढ़ती. उन्होंने जोर देकर कहा कि मौजूदा समय में महंगाई के आंकड़े इस तरह की किसी चिंता की पुष्टि नहीं करते. ऐसे में रुपये की कमजोरी को लेकर घबराने का कोई ठोस कारण नहीं है.
91 रुपये के स्तर पर पहुंचा रुपया
मंगलवार को रुपया पहली बार 91 रुपये प्रति डॉलर के स्तर को पार कर गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है. आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 2 अप्रैल को अमेरिका की ओर से टैरिफ में भारी बढ़ोतरी की घोषणा के बाद से रुपया डॉलर के मुकाबले करीब 5.7% कमजोर हुआ है, जो प्रमुख वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में सबसे खराब प्रदर्शन माना जा रहा है.
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पर क्या बोले सान्याल
भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता पर बोलते हुए संजीव सान्याल ने कहा कि भारत, यूरोपीय संघ और अमेरिका दोनों के साथ बातचीत को आक्रामक ढंग से आगे बढ़ा रहा है, लेकिन राष्ट्रीय हित सर्वोपरि रहेंगे. उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ मामलों में समझौते करने पड़ सकते हैं, लेकिन भारत किसी दबाव में झुकने वाला नहीं है.
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अमेरिकी दबाव पर भारत का रुख
उन्होंने ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि अमेरिका के साथ संबंधों में भारत ने न तो किसी मुद्दे को बढ़ाया है और न ही अनावश्यक टकराव की राह चुनी है. उन्होंने कहा, ‘हमने सावधानी बरती है, लेकिन झुके भी नहीं हैं.’ उनके मुताबिक, चीन और भारत ऐसे दो देश हैं, जो अमेरिकी दबाव के आगे वास्तव में डटे रहे हैं.
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