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आम आदमी को राहत का बूस्टर डोज, जीएसटी कटौती के बाद रेपो रेट घटा सकता है आरबीआई

RBI Repo Rate: जीएसटी दरों में कटौती के बाद आम आदमी को आर्थिक राहत का बूस्टर डोज मिलने वाला है. आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अगली बैठक में रेपो रेट में 0.25% कटौती का अनुमान है. इससे होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन की ब्याज दरें कम होंगी, मासिक ईएमआई में राहत मिलेगी और घरेलू खर्च घटेगा. विशेषज्ञों के अनुसार, जीडीपी वृद्धि और महंगाई दर के अनुकूल आंकड़े रेपो रेट कटौती का समर्थन करते हैं.

RBI Repo Rate: त्योहारी सीजन के दौरान देश के आम आदमी को राहत का बूस्टर डोज मिलने वाला है. इसका कारण यह है कि जीएसटी (वस्तु एवं सेवाकर) परिषद की ओर से जीएसटी दरों में कटौती का लाभ आम आदमी को नवरात्रि के पहले दिन सोमवार 22 सितंबर 2025 से ही मिलने लगा है. इसके बाद आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) की एमपीसी (मौद्रिक नीति समिति) की बैठक में रेपो रेट में 0.25% या फिर 25 बेसिस प्वाइंट में कटौती की जा सकती है. आरबीआई एमपीसी की बैठक 29-30 सितंबर को होनी है और आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा 1 अक्टूबर 2025 को रेपो रेट की नई दरों का ऐलान करेंगे.

आरबीआई पर रेपो रेट में कटौती करने का दबाव

आरबीआई पर एमपीसी की बैठक में रेपो रेट में कटौती करने का दबाव बना हुआ है. इसका कारण यह है कि पिछले हफ्ते बुधवार 17 सितंबर 2025 को अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 0.25% या 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर दी है. दूसरा यह कि जीएसटी परिषद ने 6 सितंबर 2025 को जीएसटी स्लैब में कटौती करने का ऐलान किया था. परिषद की बैठक में चार स्लैब को घटाकर 5% और 18% का स्लैब रखा गया, जो 22 सितंबर 2025 से प्रभावी हो गया. परिषद ने 12% और 28% के स्लैब को समाप्त कर दिया. इसके अलावा, वित्त वर्ष 2025-26 की पहली तिमाही अप्रैल-जून 2025 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 7.8% रही है, जो अनुमानों से अधिक है. विशेषज्ञ बताते हैं कि इन सभी कारकों की वजह से आरबीआई पर रेपो रेट में कटौती करने का दबाव बना हुआ है.

आरबीआई के दायरे में महंगाई

महंगाई के मोर्चे पर थोड़ा नुकसान हुआ. अगस्त में थोक महंगाई दर सकारात्मक दायरे में आ गई और चार महीने के उच्चतम स्तर 0.52% पर पहुंच गई. हालांकि, जुलाई में थोक मूल्य सूचकांक 25 महीने के निचले स्तर -0.58% पर था. वहीं, अगस्त में खुदरा महंगाई दर 2.07% दर्ज की गई है, जो पिछले महीने यानी जुलाई की 1.55% से कुछ ज्यादा है. आरबीआई का प्राथमिक लक्ष्य उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) आधारित खुदरा महंगाई को 4% के साथ ±2% के दायरे में (यानी 2% से 6%) रखना है. इसका मतलब यह है कि थोक और खुदरा महंगाई दर फिलहाल आरबीआई के दायरे में है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

अर्थशास्त्री और विशेषज्ञों का भी मानना है कि इस समय देश में रेपो रेट में कटौती करके कर्ज को सस्ता करने का माहौल बना है. अर्थशास्त्री संजीव बजाज कहते हैं कि फेडरल की ब्याज दर में कटौती की वजह से दूसरे देशों के केंद्रीय बैंकों को भी रेट में कटौती के बारे में सोचना पड़ेगा, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पूंजी लागत और लोन सस्ते हो जाएंगे. उन्होंने कहा कि फिलहाल जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का ग्रोथ भी अच्छा है. देश में थोक और खुदरा महंगाई दर भी आरबीआई की सीमा के अंदर है. उन्होंने कहा कि भारत में भी ब्याज दरों में कटौती का दबाव है. अगली मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में आरबीआई पर रेपो रेट में कटौती करने का दबाव बढ़ेगा.

रेपो रेट में कटौती से आम आदमी को फायदा

रेपो रेट में कटौती से देश के सरकारी और प्राइवेट बैंकों को रिजर्व बैंक से सस्ता कर्ज मिलता है, जिससे वे होम लोन, ऑटो लोन और पर्सनल लोन समेत दूसरे कर्ज की ब्याज दरें कम करते हैं. इससे आम आदमी की ईएमआई कम होती है, जिससे मासिक खर्चों में राहत मिलती है. सस्ते कर्ज से लोग घर, गाड़ी या दूसरी जरूरतों के लिए आसानी से कर्ज ले सकते हैं, जिससे खपत बढ़ती है. इसके अलावा, व्यवसायों को भी सस्ता कर्ज मिलने से निवेश बढ़ता है, जिससे रोजगार के अवसर पैदा होते हैं. इससे अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ती है और आम आदमी को आर्थिक लाभ होता है.

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जीएसटी रेट में कटौती से लाभ

जीएसटी दरों में कटौती से वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम होती हैं, जिससे आम आदमी की खरीदारी सस्ती हो जाती है. रोजमर्रा की जरूरतों जैसे खाद्य पदार्थ, कपड़े और इलेक्ट्रॉनिक्स पर कम टैक्स लगने से मंथली खर्च घटता है. इससे परिवारों की बचत बढ़ती है और उनकी क्रय शक्ति में बढ़ती है. सस्ती सेवाएं (जैसे रेस्तरां या परिवहन) भी घरेलू बजट को राहत देती हैं. इसके अलावा, व्यवसायों के लिए उत्पादन लागत कम होने से कीमतें और कम हो सकती हैं, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और उपभोक्ताओं को बेहतर विकल्प मिलते हैं.

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KumarVishwat Sen
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कुमार विश्वत सेन प्रभात खबर डिजिटल में डेप्यूटी चीफ कंटेंट राइटर हैं. इनके पास हिंदी पत्रकारिता का 25 साल से अधिक का अनुभव है. इन्होंने 21वीं सदी की शुरुआत से ही हिंदी पत्रकारिता में कदम रखा. दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी पत्रकारिता का कोर्स करने के बाद दिल्ली के दैनिक हिंदुस्तान से रिपोर्टिंग की शुरुआत की. इसके बाद वे दिल्ली में लगातार 12 सालों तक रिपोर्टिंग की. इस दौरान उन्होंने दिल्ली से प्रकाशित दैनिक हिंदुस्तान दैनिक जागरण, देशबंधु जैसे प्रतिष्ठित अखबारों के साथ कई साप्ताहिक अखबारों के लिए भी रिपोर्टिंग की. 2013 में वे प्रभात खबर आए. तब से वे प्रिंट मीडिया के साथ फिलहाल पिछले 10 सालों से प्रभात खबर डिजिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं. इन्होंने अपने करियर के शुरुआती दिनों में ही राजस्थान में होने वाली हिंदी पत्रकारिता के 300 साल के इतिहास पर एक पुस्तक 'नित नए आयाम की खोज: राजस्थानी पत्रकारिता' की रचना की. इनकी कई कहानियां देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं.

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