नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने दूसरे राज्यों से अपने भूभाग में आने वाले सामान पर प्रवेश कर लगाने के संबंध में राज्यों के कानूनों की संवैधानिक वैधता को आज बरकरार रखा. शीर्ष अदालत ने 7 : 2 के बहुमत से कहा कि राज्यों द्वारा बनाए गए कर कानून को संविधान के अनुच्छेद 304 बी के तहत राष्ट्रपति की सहमति की आवश्यकता नहीं है.
प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि यद्यपि राज्य सरकारों को दूसरे राज्यों से आने वाले सामान पर कर लगाने की शक्ति है, लेकिन सामान के बीच कोई भेदभाव नहीं हो सकता. शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर राज्य अपने राज्य के भीतर निर्मित उत्पादों पर प्रवेश कर लगाता है तो उसे दूसरे राज्यों से आने वाले समान उत्पादों पर अधिक कर लगाने की शक्ति नहीं है.
बहुमत की राय ने ‘स्थानीय क्षेत्र’ शब्द पर फैसला सुनाने की जिम्मेदारी नियमित छोटी पीठ पर छोड़ दी कि क्या यह समूचे राज्य के संदर्भ में है या उसके क्षेत्र के भीतर कुछ हिस्सों के बारे में है. प्रधान न्यायाधीश के अलावा बहुमत का फैसला न्यायमूर्ति एके सीकरी, न्यायमूर्ति एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एसके सिंह, न्यायमूर्ति एनवी रमण, न्यायमूर्ति आर भानुमति और न्यायमूर्ति एएम खानविल्कर ने सुनाया.
न्यायमूर्ति डीवाइ चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण ने अलग अल्पमत का फैसला सुनाया.
अल्पमत की राय को साझा करने वाली न्यायमूर्ति भानुमति ने एक अलग फैसला पढकर सुनाया, जिसमें कुछ बिंदुओं पर असहमति जतायीगयी. उन्होंने कहा कि उनकी राय में ‘स्थानीय क्षेत्र’ से आशय राज्य के समूचे भूभाग से है.
नौ न्यायाधीशों वाली पीठ ने 19 जुलाई को केंद्र की उस अर्जी पर ध्यान दिए बिना सुनवाईशुरू की थी, जिसमें उससे कहा गया था कि वह जीएसटी विधेयक संसद में पारित किए जाने की प्रतीक्षा करे. जीएसटी विधेयक संसद के पिछले सत्र में आखिरकार पारित हुआ था.
पीठ ने 20 सितंबर को याचिकाओं पर मैराथन सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा था. ये याचिकाएं 2002 से लंबित थीं. केंद्र चाहता था कि लंबित जीएसटी (वस्तु एवं सेवाकर) विधेयक के पारित होने तक इंतजार किया जाए. इसके बावजूद पीठ ने सुनवाई शुरू की थी. शीर्ष अदालत की राय थी कि राज्यों द्वारा पूर्व में लगाए गए करों से संबंधित मुद्दों पर इस मामले में फैसला किया जाएगा.
अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा था कि जीएसटी विधेयक संसद द्वारा पारित किए जाने के बाद प्रवेश के संबंध में राज्यों की पूर्व की मांगों के संबंध में कुछ व्यवस्था की जा सकती है. प्रवेश कर राज्य सरकारों द्वारा एक राज्य से दूसरे राज्य में आने वाले सामानों पर लगाया जाता है. यह कर वह राज्य लगाता है जो सामान प्राप्त करता है.
विभिन्न राज्यों के प्रवेश कर के प्रावधानों को कुछ कंपनियों ने इस आधार पर चुनौती दी थी कि वो संविधान के अनुच्छेद 301 के तहत मुक्त वाणिज्य एवं व्यापार के सिद्धांत के खिलाफ हैं. सुनवाई के दौरान पीठ ने इस मुद्दे पर शीर्ष अदालत के 1960 और 1962 के अपने दो फैसलों पर फिर से चर्चा की थी.
वृहत पीठ को मामला भेजने का फैसला वेदांता एल्यूमीनियम लिमिटेड, एस्सार स्टील लिमिटेड, टाटा स्टील लिमिटेड, अडानी इंटरप्राइजेज लिमिटेड और ओडिसा सरकार द्वारा दायर मामलों पर सुनवाई के दौरान किया गया था. जिंदल स्टेनलेस लिमिटेड ने 2002 में मामला दायर किया था जब कंपनी ने हरियाणा स्थानीय क्षेत्र विकास कर अधिनियम, 2000 की वैधता को चुनौती दी थी.
कंपनी ने अधिनियम की वैधता को चुनौती दी थी, जिसमें दावा किया था कि यह संविधान के अनुच्छेद 301 का उल्लंघन करता है क्योंकि यह व्यापार पर पाबंदी लगाता है और वह संविधान के अनुच्छेद 304 के तहत संरक्षित नहीं है. यह दलील दीगयी थी कि अंतरराज्यीय बिक्री पर बिक्री कर लगाने के लिए बनाया गया कानून राज्य विधायिका की क्षमता के बाहर है.
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