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टिकता वही है, जो वक्त की नब्ज पहचानता है

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।। विजय बहादुर ।।
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झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे 23 दिसंबर को घोषित हुए और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड में झामुमो, कांग्रेस व राजद गठबंधन की सरकार बन गयी है. पिछली सरकार का कार्यकाल पांच वर्षों का रहा, लेकिन हिंदुस्तान में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड पवन चामलिंग का रहा है, जो सिक्किम में 25 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहे. ज्योति बसु 23 वर्षों तक पश्चिम बंगाल में मुख्यमंत्री रहे. इनके अलावा भी कई ऐसे राजनेता रहे हैं जिनका लंबे समय तक मुख्यमंत्री के रूप में कार्यकाल रहा है.
ऐसे में मन में एक सवाल उठता है कि क्या कारण है कि किसी व्यक्ति का कार्यकाल छोटा होता है और कोई लंबे समय तक पद पर बना रहता है या फिर कोई प्रोडक्ट मार्केट में लंबे समय तक चलता है और कुछ बहुत जल्द ही खत्म हो जाता है.
क्या किसी ने बेहतर काम किया, इसके कारण उसे लगातार नेतृत्व करने का अवसर मिला या कोई प्रोडक्ट बेहतर है, इसलिए वो चलता रहता है जबकि अन्य समय के प्रवाह में विलीन हो जाते हैं. मेरा मानना है कि जब कोई व्यक्ति अपने चरम पर होता है, तो उसके हर स्ट्रोक को मास्टर स्ट्रोक समझा जाता है. सफलता के लिए जो कुछ उसने किया, उसे ही सफलता का सूत्र मान लिया जाता है, लेकिन जैसे ही वो असफल होता है उसके हर मास्टर स्ट्रोक को साधारण समझा जाने लगता है.
मुझे लगता है कि लंबे समय तक सफलता के शिखर पर बने रहने का कोई फिक्स फार्मूला नहीं है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी जरूर हैं जिसका अगर ध्यान रखा जाये तो लंबे समय तक शिखर पर बने रहने की संभावना बढ़ जाती है. आज आप सफल हैं और कल नहीं हैं, तो इसका कभी भी ये मतलब नहीं निकलता कि आपने बेहतर काम नहीं किया होगा, इसलिए आप ढलान की ओर अग्रसर हो गए. ये भी संभव है कि आपने बेहतर किया हो, जिसके कारण लोगों की उम्मीदें आपसे और बेहतर करने के लिए बढ़ गयी हों. सच तो ये है कि बेहतर की चाह को कोई संतुष्ट नहीं कर पाता. ऐसे में लोग विकल्प की तलाश करने लगते हैं. ये भी संभव है कि विकल्प आज से बेहतर ना हो, लेकिन कुछ अलग की चाह के कारण लोग इसकी तरफ अग्रसर हो जाते हैं.
दूसरी बात ये है कि समय के साथ इंसान के सोचने के नजरिये में भी बदलाव होता है. किसी प्रोडक्ट के नजरिये से देखें, तो इसे कंज्यूमर बिहेवियर कहा जाता है. बदलते वक्त के साथ आपको अपने आप में बदलाव या समायोजन करना होगा और समय के बदलाव को जानने के लिए फीडबैक सिस्टम को दुरुस्त रखना होगा. अमूमन जब कोई इंसान सफल होता है, तो उसके आसपास वैसे लोगों का जमावड़ा लग जाता है जो उसे ईश्वर होने का एहसास कराता है. कभी-कभी तो इंसान को महसूस होने लगता है कि उससे बेहतर कोई हो ही नहीं सकता. यकीन मानिये यहीं से पतन की शुरुआत हो जाती है.
नोकिया की कहानी आपको याद ही होगी. आज से 10-15 वर्ष पहले हर दूसरे भारतीय के पास नोकिया का मोबाइल हैंडसेट होता था, लेकिन प्रतिद्वंद्वियों ने जब डबल सिम मार्केट में उतारा, तो नोकिया मार्केट से लगभग खत्म सा हो गया. कारण सिर्फ इतना था कि वो कंज्यूमर की जरूरतों में हो रहे बदलाव को समझने में चूक कर गये.
हालिया उदाहरण टेलीकॉम इंडस्ट्री है. तीन साल पहले जियो जब मार्केट में आया, तो जमे जमाये मार्केट लीडर्स टेक्नोलॉजी के बदलाव को समझने में चूक कर गए. एयरटेल, आइडिया, वोडाफोन और कई अन्य कंपनियों ने डेटा की ताकत को समझने में चूक की. वो समझ ही नहीं सके कि डेटा के उपयोग से टेलीकॉम इंडस्ट्री में इतना बड़ा बदलाव संभव है और उसके बाद जियो ने जिस तरह से मार्केट में अपनी जगह बना ली है वो केस स्टडी सबके सामने है.
इन सभी तथ्यों से इतर एक चीज जो शाश्वत सत्य है कि हर इंसान या प्रोडक्ट की एक लाइफ साइकिल है. आप फीडबैक लेकर उसमें आवश्यक बदलाव कर उसकी लॉन्गेविटी बढ़ा सकते हैं, लेकिन उसकी भी एक समय सीमा है.

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