India Rome Statute of ICC: रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन तीन साल बाद 4 दिसंबर को भारत की यात्रा पर आ रहे हैं. इस दौरान भारत-रूस संबंधों को और प्रगाढ़ करने के लिए पुतिन और भारतीय प्रधानमंत्री कई दौर की बैठक और घोषणाएं कर सकते हैं. पुतिन की यह यात्रा सुर्खियों में है क्योंकि लंबे समय बाद वे भारत आ रहे हैं. हालांकि इस दौरान लोगों में यह भी चर्चा रही कि क्या पुतिन भारत दौरे पर गिरफ्तार भी हो सकते हैं, क्योंकि उनके खिलाफ मार्च 2023 में अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) द्वारा गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था. इसका जवाब है- नहीं. पुतिन भारत में ICC के वारंट के आधार पर गिरफ्तार नहीं किए जा सकते हैं, क्योंकि भारत ने ICC की रोम संविधि (Rome Statute) पर न तो हस्ताक्षर किए हैं और न ही उसे अपनाया है. भारत में लोकतंत्र है, इसके बावजूद इस अहम संस्था से भारत बाहर क्यों है?
भारत ने ICC की रोम संविधि पर न तो हस्ताक्षर किए और न ही उसे अनुमोदित किया, इसलिए ICC की कोई कानूनी बाध्यता भारत पर लागू नहीं होती. अंतरराष्ट्रीय कानून का सिद्धांत pacta sunt servanda कहता है कि संधि केवल उनके लिए बाध्यकारी है जिन्होंने उसे स्वीकार किया हो. चूँकि भारत रोम संविधि से बाहर है, इसलिए ICC के सहयोग, गिरफ्तारी या प्रत्यर्पण जैसे दायित्व स्वतः भारत पर लागू नहीं होते. इसीलिए पुतिन पर जारी वारंट भारत की सीमा में कानूनी रूप से निष्प्रभावी माना जाता है. भारत के रोम संविधि पर साइन न करने के प्रमुख कारण हैं-
UNSC को ICC पर अधिकार देने का विरोध (Politicisation Concern)
भारत ने 1998 में मसौदा तैयार होने के दौरान कड़ा विरोध जताया कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) किसी भी मामले को ICC को भेज या रोक सकती है. इससे न्यायपालिका पर राजनीतिक प्रभाव बढ़ सकता है, क्योंकि P5 देशों के पास वीटो शक्ति है और वे अपने हितों के अनुसार किसी भी जांच को प्रभावित कर सकते हैं. भारत का मानना है कि जब तक UNSC का राजनीतिक हस्तक्षेप जारी है, ICC एक पूरी तरह स्वतंत्र और निष्पक्ष अदालत नहीं मानी जा सकती. यही कारण था कि भारत इस व्यवस्था से सहमत नहीं हुआ.
आतंकवाद और WMD अपराधों का ICC में शामिल न होना
भारत वर्षों से सीमा-पार आतंकवाद का सामना करता आया है, और उसके लिए यह सबसे गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों में से एक है. भारत चाहता था कि आतंकवाद तथा परमाणु और अन्य सामूहिक विनाश के हथियारों (WMDs) के उपयोग को भी ICC के अधिकार-क्षेत्र में शामिल किया जाए. लेकिन अंतिम रोम संविधि मसौदे में इन अपराधों को शामिल नहीं किया गया. भारत ने इसे न्यायालय के ढांचे में एक बड़ी कमी माना, क्योंकि जिन खतरों का सामना वह वास्तविक रूप से करता है, उन्हें ICC गंभीर अपराध की श्रेणी में नहीं रखता.
राष्ट्रीय संप्रभुता और घरेलू न्यायिक अधिकार का मुद्दा
भारत का मानना है कि उसकी न्यायिक प्रणाली मजबूत, स्वतंत्र और गंभीर अपराधों से निपटने में सक्षम है. ICC में शामिल होना भारत की अदालतों के अधिकार-क्षेत्र को चुनौती दे सकता था और उसकी संप्रभुता पर प्रभाव डाल सकता था. भारत का यह भी तर्क था कि अगर कोई विदेशी अदालत भारतीय नागरिकों या अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू करती है, तो वह भारत की संप्रभु निर्णय-प्रक्रिया में सीधा हस्तक्षेप होगा. इसलिए भारत ने अपने राष्ट्रीय कानूनी ढांचे की रक्षा को प्राथमिकता दी और ICC से दूरी बनाए रखी.
घरेलू कानूनी ढांचे में ICC प्रावधानों की अनुपस्थिति
क्योंकि भारत ने रोम संविधि को स्वीकार नहीं किया, इसलिए भारत ने कोई ऐसा राष्ट्रीय कानून कभी पारित नहीं किया जो ICC वारंट को लागू करने का अधिकार घरेलू अदालतों या एजेंसियों को देता हो. कानूनी रूप से, ICC का कोई भी आदेश भारत में केवल एक विदेशी दस्तावेज की तरह माना जाता है, जिसका कोई बाध्यकारी प्रभाव नहीं होता. जब तक संसद ICC को मान्यता देने वाला विशेष कानून पारित नहीं करती, तब तक कोई भी भारतीय अदालत पुतिन सहित किसी भी ICC अभियुक्त को गिरफ्तार करने का अधिकार नहीं रखती. यही कारण है कि भारत में ICC वारंट लागू नहीं होते.
क्या है ICC?
अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय की स्थापना 2002 में नीदरलैंड के शहर हेग में हुई थी. यह रोम संविधि पर आधारित है. रोम संविधि वह अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) की नींव रखी. इसे 17 जुलाई 1998 को इटली की राजधानी रोम में स्वीकार किया गया था और 1 जुलाई 2002 से यह प्रभावी हुआ. इसी दस्तावेज के आधार पर ICC की शक्तियों, कार्यप्रणाली और ढांचे को परिभाषित किया गया है. यह न्यायालय नरसंहार, मानवीय अपराध, युद्ध अपराध और आक्रामकता जैसे गंभीर अंतरराष्ट्रीय अपराधों की जांच और मुकदमे से संबंधित मामलों को संभालता है. इसमें अब तक 125 देशों ने सिग्नेचर किया है. इसके द्वारा जारी किया गया वारंट केवल उन 125 देशों में ही लागू हो सकता है जो ICC के सदस्य हैं. तो भारत की क्या मजबूरी है, जो उसने जॉइन नहीं किया.
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