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दीपावली UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल, पीएम मोदी ने कहा यह हमारी सभ्यता की आत्मा

Deepavali UNESCO Intangible Cultural Heritage: दीपावली को यूनेस्को ने अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage) की सूची में शामिल कर लिया है. प्रधानमंत्री ने इसकी घोषणा पर खुशी जताते हुए, इसे भारत की सभ्यता की आत्मा बताया. इस तरह अब भारत की 16 विरासत इस सूची में शामिल हो गई हैं.

Deepavali UNESCO Intangible Cultural Heritage List: भारत के सबसे प्रमुख त्योहारों में से एक दीपावली को यूनेस्को ने अपनी अमूर्त सांस्कृतिक विरासत (Intangible Cultural Heritage) की सूची में शामिल कर लिया है. अब भारत के इस सूची में कुल 16 विरासत हो गई हैं. दीपावली को शामिल करने की जानकारी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने बुधवार को साझा की. एक्स पर पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा- यह एक हर्ष का क्षण है कि दीपावली को UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया है. यह प्रकाश का वह त्योहार है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय और भगवान राम के अयोध्या लौटने का प्रतीक है और जिसे विश्वभर में मनाया जाता है. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घोषणा पर खुशी जताई.

यूनेस्को ने अपने आधिकारिक वेबसाइट पर दीपावली का वर्णन करते हुए कहा, “दीपावली, जिसे दिवाली भी कहा जाता है, भारत के विविध व्यक्तियों और समुदायों द्वारा प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला प्रकाश उत्सव है, जो वर्ष की अंतिम फसल और नए साल व नए मौसम की शुरुआत का प्रतीक है. यह चंद्र कैलेंडर पर आधारित है और अक्टूबर या नवंबर की अमावस्या के दिन पड़ता है तथा कई दिनों तक चलता है. यह उत्सव खुशी और उमंग का समय होता है जो प्रकाश की अंधकार पर और अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है. इस दौरान लोग अपने घरों और सार्वजनिक स्थलों की सफाई और सजावट करते हैं, दीपक और मोमबत्तियाँ जलाते हैं, आतिशबाजी करते हैं और समृद्धि व नई शुरुआत के लिए प्रार्थनाएँ करते हैं.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस घोषणा पर खुशी जताई. उन्होंने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा- भारत और दुनिया भर के लोग उत्साहित हैं. हमारे लिए, दीपावली हमारी संस्कृति और जीवन मूल्यों से गहराई से जुड़ी है. यह हमारी सभ्यता की आत्मा है. यह प्रकाश और धर्म का प्रतीक है. दीपावली का यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल होना इस त्योहार की वैश्विक लोकप्रियता को और बढ़ाएगा. प्रभु श्रीराम के आदर्श हमें अनंत काल तक मार्गदर्शन करते रहें.

क्या होती है UNESCO की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत?

यूनेस्को के अनुसार अमूर्त सांस्कृतिक विरासत में वे प्रथाएँ, ज्ञान, अभिव्यक्तियाँ, वस्तुएँ और स्थान शामिल हैं जिन्हें समुदाय अपनी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा मानते हैं. पीढ़ियों से चली आ रही यह विरासत समय के साथ विकसित होती है और सांस्कृतिक पहचान तथा विविधता के सम्मान को मजबूत बनाती है.

अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए यूनेस्को ने 17 अक्टूबर 2003 को पेरिस में आयोजित अपने 32वें महासम्मेलन के दौरान 2003 का कन्वेंशन अपनाया था. यह कन्वेंशन वैश्विक चिंताओं के जवाब में बनाया गया था कि जीवित सांस्कृतिक परंपराएँ, मौखिक प्रथाएँ, प्रदर्शन कलाएँ, सामाजिक रीति-रिवाज, ज्ञान प्रणालियाँ और हस्तकलाएँ वैश्वीकरण, सामाजिक परिवर्तनों और सीमित संसाधनों के कारण खतरे में हैं.

भारत पहली बार बना मेजबान

भारत पहली बार यूनेस्को की 20वीं अमूर्त सांस्कृतिक विरासत समिति के सत्र की मेजबानी 8 से 13 दिसंबर तक कर रहा है. ऐतिहासिक लाल किला परिसर को इस आयोजन के स्थल के रूप में चुना गया है. लाल किला खुद एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, जो भारत की मूर्त और अमूर्त दोनों विरासतों के संगम का प्रतीक है. यूनेस्को में भारत के स्थायी प्रतिनिधि विशाल वी. शर्मा इस बैठक की अध्यक्षता करेंगे. यह आयोजन भारत द्वारा 2003 के कन्वेंशन को 2005 में अनुमोदित करने की 20वीं वर्षगांठ के साथ भी मेल खाता है, जो जीवित सांस्कृतिक परंपराओं के संरक्षण के प्रति भारत की निरंतर प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है.

UNESCO मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल भारतीय परंपराएँ

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लगातार सम्मान मिलता रहा है. यूनेस्को की Intangible Cultural Heritage सूची में भारत के कई अनोखे त्योहार, नृत्य, अनुष्ठान और पारंपरिक कलाएँ शामिल हैं. ये परंपराएँ न सिर्फ भारत की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती हैं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही जीवनशैली, आस्था, कला और कौशल को भी संरक्षित करती हैं. 2008 में रामलीला को यूनेस्को की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया था. इसके बाद से भारतीय परंपराओं को इस सूची में लगातार स्थान मिल रहा है.

2008: आरंभिक मान्यताएँ

• कुटियाट्टम (केरल)– संगम युग से चली आ रही यह संस्कृत रंगमंच की प्राचीन परंपरा मुख्य रूप से चाक्यार और नंग्यारम्मा समुदाय द्वारा प्रस्तुत की जाती है. इसे भारत का सबसे पुराना जीवित थिएटर माना जाता है.

• वैदिक मंत्रोच्चार (संपूर्ण भारत)– संस्कृत वेद मंत्रों के जप और मौखिक परंपरा का यह अनूठा स्वरूप हजारों वर्षों से भारतीय ज्ञान परंपरा को आगे बढ़ा रहा है.

• रामलीला (संपूर्ण भारत, विशेषकर उत्तर भारत)– भगवान राम के जीवन का नाटकीय पुनःमंचन, जिसे दीपावली से पहले अनेक क्षेत्रों में बड़े उत्साह से प्रस्तुत किया जाता है.

2009: राममन (उत्तराखंड)

गढ़वाल हिमालय के सलूर-डुंगरा गाँव का यह अनूठा त्योहार और अनुष्ठानिक प्रदर्शन सिर्फ स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है. यह लोक परंपरा और धार्मिक भावनाओं का संगम है.

2010: तीन प्रमुख प्रस्तुतियाँ

• छऊ नृत्य (बंगाल, झारखंड, ओडिशा)- पुरुलिया, सरायकेला और मयूरभंज, तीनों शैलियाँ अपने आकर्षक मुखौटों और युद्धाभ्यास शैली की गतियों के लिए प्रसिद्ध हैं.

• कालबेलिया नृत्य (राजस्थान)- सपेरों की कालबेलिया जनजाति द्वारा प्रस्तुत यह नृत्य अपनी लयात्मक मुद्राओं और जीवंत लोकसंगीत के लिए जाना जाता है.

• मुदियेट्टु (केरल)- काली और दारिका के युद्ध की कथा पर आधारित यह अनुष्ठानिक नाट्य प्रस्तुति धार्मिक रंगमंच का उत्कृष्ट उदाहरण है.

2012–2014

• लद्दाख का बौद्ध जप (2012)- काग्युद, निंग्मा, गेलुक और शाक्य परंपरा से जुड़े संत पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पारंपरिक पाठ करते हैं.

• मणिपुर का संकीर्तन (2013)- वैष्णव परंपरा से जुड़ा यह अनुष्ठानिक गायन, ढोल वादन और नृत्य श्रीकृष्ण की कथाओं का जीवंत प्रदर्शन है.

• ठठेरों की तांबा-पीतल कारीगरी, पंजाब (2014)- जंडियाला गुरु के कारीगरों की यह विरासत पारंपरिक धातु-बर्तन बनाने की विशिष्ट कला का प्रतिनिधित्व करती है.

2016-2023

• नवरोज (2016)- मुख्य रूप से पारसी समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला यह नया साल और नवीनीकरण का त्योहार सांस्कृतिक सद्भाव का प्रतीक है.

• योग (2016)- शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक अभ्यास का यह वैश्विक रूप से लोकप्रिय भारतीय ज्ञान-विज्ञान 21 जून को अंतरराष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है.

• कुंभ मेला (2017)- हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक-त्रयंबक और उज्जैन में 12 साल के अंतराल पर होने वाला दुनिया का सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम.

• कोलकाता की दुर्गा पूजा (2021)- दुर्गा भक्ति, कला, उत्सव और सांस्कृतिक रचनात्मकता का अद्भुत मिश्रण.

• गुजरात का गरबा (2023)-नवरात्रि और अन्य अवसरों पर किया जाने वाला पारंपरिक वृत्त-नृत्य, जो भक्ति, संगीत और सामूहिक खुशी का प्रतीक है.

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Anant Narayan Shukla
Anant Narayan Shukla
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से परास्नातक। वर्तमानः डिजिटल पत्रकार @ प्रभात खबर। इतिहास को समझना, समाज पर लिखना, धर्म को जीना, खेल खेलना, राजनीति देखना, संगीत सुनना और साहित्य पढ़ना, जीवन की हर विधा पसंद है। क्रिकेट से लगाव है, इसलिए खेल पत्रकारिता से जुड़ा हूँ.

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