Swastikas painted with human blood in Germany: जर्मनी के इतिहास में स्वास्तिक घृणा के रूप में फैला था. हिटलर की सेना अपनी वर्दी पर इसे लगाती थी. हिटलर ने ही जर्मनी में यहूदियों के खिलाफ नरसंहार को अंजाम दिया था. ऐसे में इसे नस्लीय हिंसा और घृणा के रूप में माना जाता है. जर्मनी में इस चिह्न और यहूदी नरसंहार को नकारने पर सख्त कानून है. इसी देश के हनाऊ शहर में बीते दिनों दर्जनों कारों, कुछ मेलबॉक्सों और इमारत की दीवारों पर मानव खून से स्वास्तिक चिह्न बनाए गए. इनके अचानक दिखने के बाद जर्मनी पुलिस इसकी सख्त जांच कर रही है. इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध के बीच इस तरह के साइन दिखना सभी को चिंता में डाल रहा है, विशेषकर जिस देश में इसका इतिहास काफी डरावना रहा हो.
जर्मनी पुलिस के प्रवक्ता थॉमस लिपोल्ड ने गुरुवार को बताया बुधवार रात अधिकारियों को सूचना मिली जब एक व्यक्ति ने बताया कि उसे एक खड़ी कार के बोनट पर लाल रंग के लिक्विड से बना स्वस्तिक का आकार दिखाई दिया. विशेष जांच से यह पुष्ट हुआ कि वह पदार्थ मानव रक्त था. पुलिस ने बताया कि लगभग 50 कारों को इसी तरह अपमानजनक ढंग से खराब किया गया है. लिपोल्ड ने कहा कि इस घटना की पृष्ठभूमि पूरी तरह अस्पष्ट है. उन्होंने बताया कि जांचकर्ताओं को अभी तक यह नहीं पता चल पाया है कि विशेष कारों, मेलबॉक्सों और इमारतों को निशाना बनाया गया था या स्वस्तिक अनियमित यानी रैंडम ढंग से बनाए गए थे.
लिपोल्ड ने यह भी कहा कि कारों और इमारतों पर कुछ अन्य अस्पष्ट चिन्ह और रेखाचित्र भी पाए गए हैं. उन्होंने बताया कि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इसके पीछे कौन है या रक्त कहां से आया, और न ही अधिकारियों को इस घटना से किसी के घायल होने की कोई जानकारी मिली है. फिलहाल पुलिस संपत्ति को नुकसान पहुंचाने और असंवैधानिक संगठनों के प्रतीकों के उपयोग के मामलों की जांच कर रही है.
जर्मनी में घृणा चिह्न के रूप में माना जाता है स्वास्तिक
जर्मनी में नाजी प्रतीकों का प्रदर्शन गैरकानूनी है. इनमें स्वस्तिक भी शामिल है. स्वस्तिक को व्यापक रूप से घृणा का प्रतीक माना जाता है, जो होलोकॉस्ट की पीड़ा और नाजी जर्मनी के अत्याचारों की याद दिलाता है. इस होलोकास्ट में 60 लाख यहूदियों को मारा गया था. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यह मानव इतिहास के सबसे क्रूरतम घटनाओं में से एक थी. हिटलर की हार के बाद इस पूरी घटना का खुलासा हुआ. श्वेत वर्चस्ववादी (White Supremacist), नव-नाजी समूह (Neo Nazi) और तोड़फोड़ करने वाले द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद भी इसे डर और नफरत फैलाने के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं.
हालांकि हाल के दिनों में भारतीयों की तरफ से हिटलर द्वारा इस्तेमाल किए गए साइन को नकारने का अभियान चल रहा है. हिटलर के चिह्न को Hakenkruez बताया जा रहा है. यह देखने में बिल्कुल अलग लगता है. इस बात में सच्चाई भी नजर आती है, क्योंकि हिटलर के द्वारा इस्तेमाल किए गए चिह्न में यह घूमा हुआ दिखता है, जबकि हिंदू पूजा पद्धतियों में प्रयोग किया जाने वाला स्वास्तिक सीधे स्वरूप में है.

इस संबंध में जागरूकता फैलाने में आजकल सोशल मीडिया पर ढेरों तथ्य प्रस्तुत किए जाते हैं. कोलिशन ऑफ हिंदू ऑफ नॉर्थ अमेरिका इस संबंध में अपनी वेबसाइट पर कई तरह के साक्ष्य प्रस्तुत करता है. इनकी वेबसाइट के अनुसार यह एक ऐसा चिह्न है, जिसका सदियों से विभिन्न संस्कृतियों में उपयोग होता आया है. Monidipa Bose – Dey (মণিদীপা) नाम की एक्स यूजर ने इस संबंध में किसी को जवाब देते हुए इस पर अपने विचार रखे हैं. जिसमें उन्होंने दावा किया यह एक ऐतिहासिक और दिलचस्प तथ्य है जिसे बहुत कम लोग जानते हैं. असल में, एडोल्फ हिटलर ने अपने शासनकाल में उस प्रतीक को हाकेनक्रॉयत्स (Hakenkreuz) कहा था. यह जर्मन शब्द है, जिसका अर्थ है हुक वाला क्रॉस या “hooked cross.” यह नाम हिटलर को उस समय प्रेरणा के रूप में मिला जब वह ऑस्ट्रिया के लैंबाख में स्थित एक बेनिडिक्टाइन मठ (Benedictine monastery) में छात्र था. वहाँ उसने एक “hooked Christian cross” देखा था, जो बाद में उसके नाजी प्रतीक की नींव बना.
बाद में, जब जेम्स मर्फी ने 1939 में हिटलर की पुस्तक मीन काम्फ का अंग्रेजी अनुवाद किया, तो उन्होंने जानबूझकर या रणनीतिक रूप से Hakenkreuz शब्द को हटाकर उसकी जगह Swastika शब्द का उपयोग किया. स्वस्तिक मूल रूप से एक प्राचीन हिंदू, बौद्ध और जैन धार्मिक प्रतीक है, जो शुभता, समृद्धि और कल्याण का प्रतीक माना जाता है. इस तरह मर्फी के अनुवाद ने एक तरह से नाजी प्रतीक को ‘हिंदू स्वस्तिक’ से जोड़ दिया, जिससे इस पवित्र भारतीय प्रतीक की वैश्विक स्तर पर गलत पहचान बन गई और यह आज भी पश्चिमी दुनिया में एक गलतफहमी के रूप में मौजूद है.
हालांकि इन तथ्यों की पुष्टि प्रभात खबर नहीं करता.
हैनाऊ शहर पांच साल पहले भी सुर्खियों में था, जब एक जर्मन हमलावर ने एक हुक्का बार में गोलीबारी कर नौ इमिग्रेंट्स की हत्या कर दी थी. यह द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जर्मनी में घरेलू आतंकवाद के सबसे भीषण मामलों में से एक था.
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