Pakistan 27th Constitutional Amendment Asim Munir powers: पाकिस्तान के संविधान में सत्ता के शीर्ष पदों के लिए कुछ अहम और आमूलचूल बदलाव किए जा रहे हैं. पाकिस्तान की संसद के उच्च सदन, सीनेट ने सोमवार को विवादास्पद 27वें संवैधानिक संशोधन को मंजूरी दे दी, जिसके तहत चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस (रक्षा बल मुख्य प्रमुख) का एक नया पद सृजित किया जाएगा और एक संवैधानिक न्यायालय की स्थापना की जाएगी. यह विधेयक कई हफ्तों से विवाद का विषय बना हुआ था. सोमवार को कानून मंत्री आजम नजीर तरार ने इसे सीनेट में पेश किया, जबकि कार्यवाही की अध्यक्षता सीनेट के चेयरमैन यूसुफ रजा गिलानी ने की. सरकार और उसके गठबंधन सहयोगियों ने मतदान में 64 मतों के साथ दो-तिहाई बहुमत हासिल किया, इसमें दो विपक्षी सांसदों का भी उसे साथ मिला.
संविधान संशोधन विधेयक के अनुसार, अब राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की सलाह पर सेना प्रमुख (चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ) और चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज की नियुक्ति करेंगे. इसमें यह भी प्रस्तावित किया गया है कि जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के चेयरमैन का पद 27 नवंबर 2025 को समाप्त हो जाएगा. नए प्रावधानों के अनुसार सेना प्रमुख ही चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस भी होंगे. आर्मी चीफ प्रधानमंत्री से परामर्श करके नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड के प्रमुख की नियुक्ति भी करेंगे और यह प्रमुख पाकिस्तान सेना से ही होगा. चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेस सेना, नौसेना और वायुसेना तीनों पर एकीकृत नियंत्रण रखेगा. क्योंकि आसिम मुनीर पहले से ही फील्ड मार्शल और आर्मी चीफ दोनों पदों पर हैं, इसलिए यह नया पद उन्हें पाकिस्तान की पूरी सैन्य व्यवस्था पर एकछत्र नियंत्रण देता है.
फील्ड मार्शल का पद आजीवन रहेगा बरकरार
अब सरकार को सशस्त्र बलों के अधिकारियों को फील्ड मार्शल, मार्शल ऑफ द एयर फोर्स और एडमिरल ऑफ द फ्लीट जैसे उच्च रैंकों तक पदोन्नत करने का अधिकार होगा. फील्ड मार्शल का पद और उसके विशेषाधिकार आजीवन रहेंगे, यानी जिन्हें यह पद मिलेगा, वे जीवनभर फील्ड मार्शल बने रहेंगे. यानी नई व्यवस्था के तहत पाकिस्तान आर्मी चीफ जनरल आसिम मुनीर को अतिरिक्त अधिकार मिलेंगे, क्योंकि अब वही चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज की भूमिका भी निभाएंगे. आसिम मुनीर फील्ड मार्शल हैं और वे आजीवन इस पद पर बने रहेंगे.
संशोधन में यह भी प्रावधान किया गया है कि मुनीर वाले पद को आजीवन विशेषाधिकार और कानूनी छूट प्राप्त होगी. यानी उनके कार्यकाल के दौरान या उसके बाद उनके खिलाफ कोई भी कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकेगी. यह कदम पाकिस्तान को प्रत्यक्ष सैन्य शासन की ओर धकेल रहा है, जहाँ नागरिक संस्थान और न्यायपालिका दोनों ही अपनी स्वतंत्रता खो देंगे.
संवैधानिक न्यायालय का गठन
संशोधन में एक नए संघीय संवैधानिक न्यायालय की स्थापना का प्रस्ताव भी रखा गया है. यह अदालत संविधान से जुड़े विवादों और व्याख्याओं की सुनवाई करेगी, जबकि सुप्रीम कोर्ट अब केवल नागरिक (सिविलl) और आपराधिक (क्रिमिनल) मामलों पर ही ध्यान देगा. सरकार का तर्क है कि इस विभाजन से न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ेगी.
मुनीर से न होंगे सवाल, न होगा मुकदमा और न होगी जवाबदेही
राजनीतिक विश्लेषकों को आशंका है कि यह नया न्यायालय वास्तव में कार्यपालिका और सैन्य प्रतिष्ठान का उपकरण बन जाएगा, न कि स्वतंत्र न्यायिक संस्था. यह संशोधन पाकिस्तान के संवैधानिक इतिहास के सबसे अंधेरे पलों में से एक है. इस कानून ने सेना प्रमुख को लगभग पूर्ण अधिकार दे दिए हैं, जिससे निर्वाचित प्रतिनिधियों की भूमिका हाशिए पर चली गई है और नागरिक सर्वोच्चता का सिद्धांत कमजोर हो गया है. यह संशोधन ऐसा तंत्र बना देगा जहाँ सेना प्रमुख न सवालों के घेरे में आएंगे, न मुकदमे का सामना करेंगे, न किसी जवाबदेही में बंधेंगे.
सीनेट में हुआ तीखा विरोध
सीनेट में इस बिल को तीखा विरोध, वॉकआउट और हाथापाई जैसी घटनाओं के बीच पारित किया गया. विपक्षी सांसदों ने बिल की प्रतियां फाड़ दीं और इसे पाकिस्तान के संविधान का सैन्यीकरण बताते हुए नारे लगाए. पाकिस्तानी समाचार पत्र डॉन के अनुसार, सदन में हंगामा तब बढ़ गया जब विपक्षी सदस्यों ने सरकार पर नागरिक सत्ता को सेना के हवाले करने का आरोप लगाया. विपक्ष ने इसे लोकतंत्र पर आखिरी वार और न्याय की मृत्यु करार दिया है. इस संशोधन को भारी हंगामे के बीच पारित किया गया, जिसके तहत फील्ड मार्शल सैयद आसिम मुनीर को अभूतपूर्व शक्तियाँ और आजीवन कानूनी छूट प्रदान की गई है. अब वे व्यावहारिक रूप से संविधान के दायरे से ऊपर हो गए हैं.
विपक्ष के सीनेट से बाहर जाने के बाद आसानी से पारित हुआ संशोधित विधेयक
इससे पहले सीनेट में विधेयक पर अनुच्छेद-दर-अनुच्छेद मतदान हुआ. इसके बाद विभाजन द्वारा मतदान कराया गया, जिसके दौरान प्रोटोकॉल के तहत सीनेट के प्रवेश और एक्जिट डोर बंद कर दिए गए. जैसे ही मतदान शुरू हुआ, विपक्षी सदस्यों ने सरकार और उसके गठबंधन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए विरोध प्रदर्शन किया. सांसदों ने विधेयक की प्रतियां फाड़ दीं और मतदान के लिए विधेयक पेश किए जाने पर उन्हें कानून मंत्री की ओर फेंक दिया. अधिकांश विपक्षी सदस्य बाद में सदन से वॉकआउट कर गए, जबकि कुछ देर तक कुछ सदस्य नारेबाजी जारी रखकर सदन से बाहर चले गए. उनके बाहर जाने के बाद विधेयक को बिना किसी बाधा के पारित कर दिया गया.
नेशनल असेंबली में आसानी से हो जाएगा पारित
इससे पहले, सीनेट और नेशनल असेंबली की स्थायी समिति की एक संयुक्त बैठक का विपक्ष ने बहिष्कार कर दिया था. उस बैठक में 27वें संवैधानिक संशोधन विधेयक को मामूली बदलावों के साथ मंजूरी दी गई. समिति के अध्यक्ष फारूक नाइक ने संशोधित रिपोर्ट उच्च सदन (सीनेट) में पेश की. उन्होंने सदन को बताया कि संयुक्त समिति ने दो दिनों तक इस विधेयक पर विचार-विमर्श किया और इसमें कई बदलाव किए. सीनेट से मंजूरी मिलने के बाद अब यह विधेयक नेशनल असेंबली (NA) में पारित किया जाएगा, जिसके कुल 336 सदस्य हैं. सरकार के पास पहले से ही 233 सदस्य हैं, जो दो-तिहाई बहुमत (226) से अधिक हैं.
सड़क पर उतरने की तैयारी कर रहा विपक्ष
अब विपक्ष जनता को सड़कों पर उतारने की तैयारी कर रहा है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय भी इस पर चिंता जता रहा है. पाकिस्तान अपने इतिहास के एक निर्णायक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. 27वें संशोधन के पारित होने के बाद इसने न सिर्फ देश की संस्थाओं की नाजुकता को उजागर कर दिया है, बल्कि उस भय की पुष्टि भी कर दी है जो लंबे समय से जताई जा रही थी. जिसमें पाकिस्तान का संविधान पूरी तरह सेना के नियंत्रण में है और लोकतांत्रिक शासन केवल नाममात्र रह गया है.
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