Modi Big Move In China: शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुस्कुराती तस्वीरें सुर्खियों में छाई रहीं. लेकिन तियानजिन में एक और मुलाकात ने कूटनीतिक हलकों का ध्यान अपनी ओर खींचा. यह मुलाकात थी प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग के सबसे करीबी सहयोगियों में शामिल काई ची के बीच. इसे भारत-चीन संबंधों के संभावित नए अध्याय के रूप में देखा जा रहा है.
कौन हैं काई ची?
काई ची चीन की राजनीति में बेहद ताकतवर माने जाते हैं. वह पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति (PSC) के सदस्य हैं और कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना (CPC) के जनरल ऑफिस के डायरेक्टर हैं. जनरल ऑफिस को पार्टी का “कमांड सेंटर” माना जाता है, जहां से यह तय होता है कि शी जिनपिंग के निर्देश कैसे मंत्रालयों और प्रांतों तक पहुंचेंगे. भारत-चीन संबंधों के संदर्भ में भी उनकी भूमिका अहम है. यदि दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानें शुरू करनी हों, वीजा नियमों में ढील देनी हो, सीमा व्यापार को बहाल करना हो या भारत के 99.2 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को कम करना हो, तो इन फैसलों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी काई के ऑफिस की होती है.
PM @narendramodi met Politburo Standing Committee Member Mr. Cai Qi in Tianjin, China.
— Randhir Jaiswal (@MEAIndia) August 31, 2025
Building on, and in line with, the leaders' meeting today, they touched on bilateral economic, political and people-to-people exchanges between India and China.
🇮🇳 🇨🇳 pic.twitter.com/BJGupGDodt
शी जिनपिंग का भरोसेमंद सहयोगी
काई ची का राजनीतिक सफर लंबे समय से शी जिनपिंग के साथ जुड़ा रहा है. फुजियान और झेजियांग प्रांतों से लेकर बीजिंग के पार्टी चीफ बनने तक उन्होंने शी का साथ निभाया. बीजिंग में 2022 के शीतकालीन ओलंपिक की जिम्मेदारी भी उन्हीं के कंधों पर थी. विशेषज्ञों का कहना है कि मोदी को काई से मिलवाना इस बात का संकेत है कि शी ने भारत-चीन रिश्तों के प्रबंधन की जिम्मेदारी अपने भरोसेमंद सहयोगी को सौंपी है.
मोदी-काई बातचीत और भोज का प्रस्ताव
विदेश मंत्रालय (MEA) के अनुसार, प्रधानमंत्री मोदी ने काई के साथ द्विपक्षीय संबंधों को लेकर अपना विजन साझा किया और उसे साकार करने के लिए सहयोग मांगा. इसके जवाब में काई ने कहा कि चीन भारत के साथ मित्रवत आदान-प्रदान और सहयोग को बढ़ाने के लिए तैयार है. दिलचस्प यह रहा कि बीजिंग ने काई को प्रधानमंत्री मोदी के सम्मान में भोज (banquet) आयोजित करने का प्रस्ताव भी दिया था. हालांकि, मोदी की व्यस्तता के चलते यह मुलाकात केवल संक्षिप्त बातचीत तक सीमित रह गई. यह प्रस्ताव खुद इस मुलाकात की अहमियत को और बढ़ा देता है.
भारत का नया संदेश
तियानजिन बैठक के बाद विदेश मंत्रालय के बयान में दो नए संदेश सामने आए. पहला, कि भारत और चीन “विकास साझीदार हैं, प्रतिद्वंद्वी नहीं.” दूसरा, कि उनके संबंधों को “किसी तीसरे देश की नजर से नहीं देखा जाना चाहिए.” यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका ने भारत के निर्यात पर 50 फीसदी तक का शुल्क लगाया है और रूस से तेल खरीद पर आपत्ति जताई है. ऐसे में दिल्ली ने संकेत दिया है कि उसकी चीन नीति वाशिंगटन से तय नहीं होगी.
काई ची की ताकत
काई को चीन का “नंबर-5” नेता माना जाता है. वे पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति में एजेंडा तय करने का काम करते हैं और शी जिनपिंग के चीफ ऑफ स्टाफ भी हैं. यह पहली बार है जब माओ के बाद किसी नेता ने दोनों पद एक साथ संभाले हों. 2017 में बीजिंग के पार्टी चीफ बनने के बाद उन्होंने प्रवासी आबादी पर कठोर कार्रवाई की, जिसकी व्यापक आलोचना हुई. काई वे पहले नेता हैं जिन्होंने सार्वजनिक मंच से शी जिनपिंग को माओ के बराबर बताते हुए “पायलटिंग एट द हेल्म” शब्द का इस्तेमाल किया. SOAS चीन इंस्टीट्यूट के निदेशक स्टीव त्सांग के अनुसार, “काई की ताकत शी जिनपिंग के अटूट भरोसे पर टिकी है. उनका राजनीतिक वजूद इसी विश्वास से संचालित है.”
क्यों अहम है यह मुलाकात?
शिन्हुआ के हवाले से आई खबर के मुताबिक, काई ची ने कहा कि चीन भारत के साथ “मैत्रीपूर्ण आदान-प्रदान और पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग बढ़ाने, मतभेदों को प्रबंधित करने और हल करने, तथा संबंधों को आगे सुधारने और विकसित करने” के लिए तैयार है.कूटनीतिक जानकारों की राय में इस बयान का महत्व सिर्फ शब्दों तक सीमित नहीं है. काई ची, जो कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सबसे भरोसेमंद सहयोगी माने जाते हैं, नीतियों को लागू करने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं. यही कारण है कि अगर भारत-चीन संबंधों में कोई ठोस बदलाव आता है, तो उसकी दिशा और क्रियान्वयन काई ची के हाथों से होकर ही गुजरेगा.
तियानजिन में हुई मुलाकात को भी सिर्फ औपचारिक बातचीत मानना गलत होगा. इसके जरिए संकेत साफ है कि बीजिंग अब भारत के साथ रिश्तों को रीसेट करने की जिम्मेदारी सीधे अपने सत्ता केंद्र से संभाल रहा है. हालांकि असली परीक्षा आगे होगी, क्या यह कूटनीतिक पहल सीमा विवाद, व्यापार असंतुलन और आपसी अविश्वास जैसे जटिल मुद्दों पर ठोस प्रगति में तब्दील होती है या फिर यह महज एक राजनीतिक संदेश बनकर रह जाएगी.
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