India Climate Risk Index: भारत ने ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (सीआरआई) में अपने दीर्घकालिक और वार्षिक दोनों रैंकिंग में सुधार किया है. पर्यावरणीय थिंक टैंक जर्मनवॉच द्वारा मंगलवार को जारी ताजा रिपोर्ट के अनुसार, 1995-2024 की अवधि में भारत चरम मौसम घटनाओं से सबसे अधिक प्रभावित देशों की सूची में 9वें स्थान पर और वर्ष 2024 में 15वें स्थान पर रहा. पिछले वर्ष की तुलना में यह सुधार है, क्योंकि कम रैंक का मतलब कम जोखिम माना जाता है. रिपोर्ट के अनुसार, भारत 1994-2023 की अवधि में 8वें और वर्ष 2023 में 10वें स्थान पर था. इस तरह भारत की स्थिति में सुधार हुआ है.
रिपोर्ट में 1995 से 2024 तक की अवधि में चरम मौसम घटनाओं से हुई मौतों और आर्थिक नुकसान सहित छह सूचकांकों का विश्लेषण किया गया. रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार, भारत ने पिछले 30 वर्षों में लगभग 430 अत्यधिक मौसम संबंधी घटनाओं का सामना किया है, जिनके परिणामस्वरूप 80,000 से अधिक लोगों की मौत हुई और कुल आर्थिक नुकसान करीब 170 अरब डॉलर तक पहुंच गया. वहीं वैश्विक स्तर पर, 1995 से 2024 के बीच 9,700 से अधिक चरम मौसम घटनाओं में 8.32 लाख से ज्यादा लोगों की जान गई और इस दौरान 4.5 ट्रिलियन डॉलर (मुद्रास्फीति-समायोजित) का आर्थिक नुकसान हुआ..
भारत में पिछले 30 सालों में किन आपदाओं ने पहुंचाया नुकसान
इस रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत किस हद तक विभिन्न प्रकार के जलवायु खतरों के प्रति असुरक्षित है. पिछले 30 साल में भारत में प्रमुख प्राकृतिक घटनाओं में जान-माल का भारी नुकसान हुआ. रिपोर्ट में 1999 का ओडिशा सुपर साइक्लोन, 2013 की उत्तराखंड बाढ़, 2014 के चक्रवात हुदहुद, और 2020 के चक्रवात अम्फान से हुई मौतों को रेखांकित किया गया. इनसे भारी जनहानि हुई थी. इसके अलावा, 1998, 2002, 2003 और 2015 में आई लगातार और असामान्य रूप से तीव्र हीटवेव ने भी कई लोगों की जान ली, जिनमें तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा.
इस भयावह स्थिति में तूफान और बाढ़ से होने वाला नुकसान आर्थिक दृष्टि से सबसे बड़ा हिस्सा है. क्योंकि भारत के घनी आबादी वाले तटीय क्षेत्र और नदी घाटियाँ लगातार अस्तित्व के संकट का सामना कर रही हैं. यह विनाश का चक्र इतना बार-बार दोहराता है कि पुनर्निर्माण और राहत कार्य अगले जलवायु झटके के आने से पहले ही अधूरे रह जाते हैं, जिससे सतत विकास की गति बुरी तरह प्रभावित होती है.
वैश्विक स्तर पर, बाढ़, तूफान, हीटवेव और सूखा ने पहुंचाया नुकसान
वैश्विक स्तर पर, बाढ़, तूफान, हीटवेव और सूखा सबसे प्रमुख चरम मौसम की घटनाएं रहीं जिन्होंने सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया. 1995 से 2024 के बीच, हीटवेव और तूफानों के कारण कुल मौतों में से 33 प्रतिशत-33 प्रतिशत मौतें दर्ज हुईं. वहीं आर्थिक नुकसान के लिहाज से तूफानों का प्रभाव सबसे ज्यादा रहा, उन्होंने कुल नुकसान का 58 प्रतिशत हिस्सा पैदा किया.
दुनिया की 40% आपदा प्रभावित आबादी टॉप 11 देशों में
पिछले 30 वर्षों (1995-2024) में चरम मौसम से सबसे अधिक प्रभावित देश डोमिनिका, म्यांमार और होंडुरास रहे, जबकि वर्ष 2024 में सेंट विंसेंट एंड द ग्रेनाडाइन्स, ग्रेनेडा और चाड सबसे अधिक प्रभावित देशों में रहे. यूएन क्लाइमेट समिट (COP30) के दौरान जारी इस रिपोर्ट में बताया गया कि दुनिया की लगभग 40% आबादी यानी तीन अरब से अधिक लोग उन 11 देशों में रहती है, जो पिछले 30 वर्षों में चरम मौसम घटनाओं (जैसे हीटवेव, तूफान और बाढ़) से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं.
इस रैंकिंग में भारत (9वां), चीन (11वां), लीबिया (4), हैती (5वां) और फिलीपींस (7वां) शामिल हैं. इन 11 देशों में से कोई भी समृद्ध औद्योगिक राष्ट्र नहीं है. हालांकि इसके बाद इन्हीं का नाम है. यूरोपीय संघ के देश और विकसित औद्योगिक राष्ट्र जैसे फ्रांस (12वां), इटली (16वां) और अमेरिका (18वां) भी 1995-2024 की अवधि में चरम मौसम से सबसे अधिक प्रभावित 30 देशों में शामिल हैं.
अर्थव्यवस्थाएं अगली आपदा से पहले संभल नहीं पातीं
सीआरआई रिपोर्ट की सह-लेखक वीरा क्यूनजेल ने कहा, “हैती, फिलीपींस और भारत जैसे देश, जो सीआरआई में सबसे अधिक प्रभावित 10 देशों में हैं, विशेष चुनौतियों का सामना कर रहे हैं. इन देशों में बाढ़, हीटवेव या तूफान इतने नियमित रूप से आते हैं कि कई बार पूरी-की-पूरी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाएं अगली आपदा आने से पहले संभल भी नहीं पातीं.”
भारत की संवेदनशीलता हुई उजागर
जर्मनवॉच ग्लोबल क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स (CRI) की नई रिपोर्ट भारत की जलवायु आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशीलता को स्पष्ट रूप से उजागर करती है. वार्षिक सूचकांकों में भले ही भारत की स्थिति में मामूली सुधार देखा गया है, लेकिन दीर्घकालिक आंकड़े एक गंभीर चेतावनी के रूप में सामने आते हैं, क्योंकि भारी मानवीय क्षति और विशाल आर्थिक नुकसान का बड़ा हिस्सा बीमा में नहीं होता. यह सरकार और सबसे कमजोर लोगों पर भारी वित्तीय बोझ डालता है.
रिपोर्ट इस वास्तविकता को एक तत्काल चेतावनी के रूप में प्रस्तुत करती है और इस बात पर जोर देती है कि विकसित देशों को लॉस एंड डैमेज वित्तीय प्रतिबद्धताओं को शीघ्र पूरा करना चाहिए, ताकि भारत जैसे देश सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे, उन्नत पूर्व चेतावनी प्रणाली, और मजबूत अनुकूलन रणनीतियों में निवेश कर सकें, जिससे एक अरब से अधिक की आबादी को जलवायु संकटों से बेहतर सुरक्षा मिल सके. वहीं यह रैंकिंग इस बात को रेखांकित करती है कि भारत उन देशों में शामिल है जो बार-बार आने वाली चरम जलवायु घटनाओं से लगातार प्रभावित होते रहे हैं न कि केवल किसी एक दुर्लभ या असामान्य आपदा से.
ये भी पढ़ें:-

