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इंडोनेशिया : आतंकी महिलाओं की सोच में बदलाव की बड़ी पहल, आतंक के खिलाफ लड़ेंगी महिला उलेमाएं

आतंकी घटनाओं में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए इंडोनेशिया ने महिला मौलवियों को प्रशिक्षित किया है, ताकि वे महिलाओं को इसलामिक बातों की सही जानकारी दें. नेशनल कंटेंट सेल इंडोनेशिया में मुसलिम नारीवादी शोधकर्ता लाइस मार्कोस ने पाया कि घरेलू कामकाजी महिलाएं समय के साथ खुद को बदलती हुई आतंकी समूह से जुड़ने […]

आतंकी घटनाओं में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी को देखते हुए इंडोनेशिया ने महिला मौलवियों को प्रशिक्षित किया है, ताकि वे महिलाओं को इसलामिक बातों की सही जानकारी दें.
नेशनल कंटेंट सेल
इंडोनेशिया में मुसलिम नारीवादी शोधकर्ता लाइस मार्कोस ने पाया कि घरेलू कामकाजी महिलाएं समय के साथ खुद को बदलती हुई आतंकी समूह से जुड़ने लगी हैं. मार्कोस इन महिलाओं को उग्रवाद से जुड़ने से रोकने में मदद कर रहीं हैं.
वह बताती हैं कि यहां उग्रवाद को बढ़ावा देने और रोकने में महिलाओं की अहम भूमिका है. पिछले कुछ सालों में इंडोनेशिया में जिहाद से जुड़नेवालों की संख्या में इजाफा हुआ है. इनमें से कुछलोग सिरिया जा कर आइएस से भी जुड़े हैं. इस देश में ऐसे लोगों के हौसला अफजाई में भी कई महिलाएं शामिल हैं.अगस्त 2015 से अब तक कई इंडोनेशियाई महिलाओं को जिहाद फैलाने में उनकी भूमिकाओं के लिए गिरफ्तार किया गया है. दीन यूलिया नोवी को दिसंबर 2016 में गिरफ्तार किया गया था.
वह आत्मघाती बन कर इंडोनेशिया के राष्ट्रपति आवास में खुद को उड़ाने की साजिश कर रही थी. ऐसी ही एक अन्य महिला इका पुष्पितासारी को बाली में एक आत्मघाती हमले की योजना बनाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. यहां कि कुछ महिलाएं आइएस के ऑनलाइन नेटवर्क का भी संचालन करती पायी गयी थीं. इंडोनेशिया में दुनिया की सबसे ज्यादा मुसलिम आबादी है.
पिछले कुछ वर्षों में जब देश का नाम आतंकवाद के केंद्र के रूप में उजागर हुआ, तो देश के विचारक इससे निजात पाने के तरीके खोजने लगे. इसलिए आतंक के खिलाफ संदेश प्रसारित करने के लिए महिला मौलवियों का इस्तेमाल करने पर विचार किया गया, जिसे इडोनेशियाई उलामा काउंसिल (एमयूआइ) ने सिरे से खारिज कर दिया.
उन्होंने कुरान और हदीस की पुस्तक को आधार बनाते हुए ऐसा करने से इनकार कर दिया था, लेकिन पिछले माह जब देशभर से महिला उलेमा आतंकवाद के विरुद्ध लड़ने के लिए एकत्र हुईं, तो यह फैसला लिया गया कि इंडोनेशिया में महिलाएं उल्लामाई धार्मिक ग्रंथों के नये सिरे से व्याख्याओं के माध्यम से अपनी शिक्षा और महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ायेंगी. इसके साथ ही वे महिलाओं को अतिवादी समूहों से जुड़ने से रोकेंगी. नोर रफीया, जकार्ता के कुरान अध्ययन संस्थान की प्राध्यापक और उलेमा हैं. उनका मानना है कि परिवारों में महिलाओं को समानता नहीं मिलने के कारण वे इस प्रकार के समूहों से जुड़ रहीं हैं.
महिलाओं को परिवार में पुरुषों के बराबर सम्मान नहीं मिलता. इस वजह से वे आतंक की ओर आसानी से मुड़ जाती हैं. इंडोनेशिया के एक संस्थान ने अपने शोध में पाया कि यहां से आइएस ज्वाइन करनेवाली महिलाओं ने आइएस लड़ाकों से विवाह करके लड़ाकों की शारीरिक जरूरतें पूरा करने का काम किया, लेकिन कुछ महिलाएं लड़ाका भी बनीं. वर्ष 2014 में मार्कोस के रिसर्च ऑगेनाजेशन ने 20 ऐसी ही महिलाओं का साक्षात्कार लिया, जो आतंकी समूह से जुड़ी थीं. उन्होंने पाया कि इन महिलाओं के पास समूह से जुड़ने के कई कारण थे, लेकिन इन सब में एक बात समान थी कि वे पुरुषों के समान हक चाहती थीं.
इंडोनेशिया में एशियन मुसलमान एक्शन नेटवर्क वर्तमान में इसलाम के नाम पर उग्रवाद के विनाशकारी प्रभावों के बारे में अपने समुदायों से बात करने में सक्षम महिलाओं की पहचान करने का काम कर रही है. इस एक्शन नेटवर्क की निदेशक द्वि रुबियांति खलीफा बताती हैं कि सभी महिला उलेमा इन मुद्दों पर बात करने में सहज नहीं होतीं, क्योंकि ये मुद्दे संवेदनशील होते हैं. हमें आम महिलाओं को कुरान और हदीस से जिहाद की अवधारणा को समझना होगा.
Prabhat Khabar Digital Desk
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