16.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस : झारखंड की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने के लिए ये कर रहे हैं काम

-मां बोली की सेवा में जुटे हैं ये बेटा-बेटी International Mother Language Day, jharkhands language, मातृभाषा स्वयं की संस्कृति, संस्कार और संवेदना को अभिव्यक्त करने का सच्चा माध्यम है. मातृभाषा वात्सल्यमयी मां के समान होती है. मातृभाषा का सम्मान यानी माता का सम्मान है. मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक, सांस्कृति व भाषायी पहचान होती […]

-मां बोली की सेवा में जुटे हैं ये बेटा-बेटी

International Mother Language Day, jharkhands language, मातृभाषा स्वयं की संस्कृति, संस्कार और संवेदना को अभिव्यक्त करने का सच्चा माध्यम है. मातृभाषा वात्सल्यमयी मां के समान होती है. मातृभाषा का सम्मान यानी माता का सम्मान है. मातृभाषा किसी भी व्यक्ति की सामाजिक, सांस्कृति व भाषायी पहचान होती है. जिस तरह से कबीरदास, सूरदास, तुलसीदास, जायसी ने अपनी मातृभाषा को अतंरराष्ट्रीय पहचान दिलायी है.

उसी तरह राजधानी में कई ऐसे लोग हैं, जो झारखंड की लोक भाषा को पहचान देने का काम कर रहे हैं. आज अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस ऐसे ही कुछ खास लोगों की बातें, जिन्होंने झारखंड की जनजातीय और क्षेत्रीय भाषा को बढ़ावा देने के लिए काफी काम किया है. किताबों से लेकर शब्दकोश तक प्रकाशित की गयी है. पेश है नौ भाषा पर काम करनेवाले लोगों पर पूजा सिंह की रिपोर्ट…

हिंदी में: आज अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं

पंचपरगनिया में: आइज अंतररासटीय मातरीभासा दिबसेक अवसरे राऊर सबेके हारदिक सुभकामना

कुरमाली में: आइज अंतरराष्ट्रीय मातृ भाषा दिवस कर तरा सभे काके हार्दिक शुभकामनाएं

नागपुरी में: आईज अंतररासटीय मातरीभाषा कर दिवसेक अबसरे राऊरमनके हारदिक सुभकामना

कुडुख में: ईन्ना संवसे खेखेल अयंग कत्था उल्ला गहि दव बेड़ा नु होरमारिन जिया ती दवबाखदन

झारखंड की नौ भाषाएं

जनजातीय भाषा- मुंडारी, संथाली, हो, कुडुख, खड़िया

क्षेत्रीय भाषा- पंचपरगनिया, कुरमाली, नागपुरी, खोरठा

झारखंड की प्रमुख नौ भाषाओं के प्रचार-प्रसार व साहित्य रचना में जुटे लोग

कुरमाली
डॉ मंजय प्रमाणिक

डॉ मंजय प्रमाणिक कुरमाली साहित्य पर काम करते हैं. उन्होंने कुरमाली साहित्य का इतिहास पर रिसर्च भी किया है. वृहद् कुरमाली व्याकरण, कुरमाली कहावतों में जीवन दर्शन, आधुनिक कुरमाली कविता (दासिन), आधुनिक कुरमाली कविता (डुडुंग), मांछी आंधरा जैसे उनकी 13 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. वह कहते हैं कि अपनी मातृभाषा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लिखना शुरू किया. लोगों से मिले उपहास को चैलेंज के तौर पर लिया और 2016 से लेखन कार्य शुरू किया. धीरे-धीरे कुरमाली भाषा वृहत रूप पकड़ रहा है. वर्तमान में रांची विवि के क्षेत्रीय भाषा में विद्यार्थियों को कुरमाली भाषा से अवगत करा रहा हूं.

मुंडारी
डॉ मनसिद्ध बड़ायुद्ध

डॉ मनसिद्ध बडायुद्ध मुंडारी भाषा के जानकार हैं. वह 1981 में गोस्सनर कॉलेज रांची में जनजातीय व क्षेत्रीय भाषा के अंतर्गत मुंडारी भाषा के व्याख्याता के पद पर नियुक्त हुए. इसके बाद मुंडारी भाषा को पहचान दिलाने के क्षेत्र में काम करना शुरू किया. उनकी मुंडारी भाषा में जोनोका कजि ओडो : कजि रअ : जुगुतुको, नवीन मुंडारी व्याकरण, मुंडाओं की स्वर्णिम लोकोक्तियां, मुंडारी मुहावरा कोष, मुंडारी साहित्य का इतिहास पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है. वे कहते हैं कि मुंडारी भाषा का ज्ञान बच्चों में स्कूल के समय से देना चाहिए. इससे बच्चों में छोटी उम्र से ही अपनी भाषा के प्रति सम्मान बढ़ेगा.

खोरठा
श्याम सुंदर महतो

श्याम सुंदर महतो श्याम ने खोरठा भाषा पर लेखनी कर रहे हैं. वह बोकारो स्टील प्लांट से रिटायर होने के बाद से खोरठा के प्रचार-प्रसार में जुट गये. वह 1986 से खोरठा विषय पर लिख रहे हैं. उनकी लिखी मुक्तिक डहर, तोंज हाम, लोक खोरठा गीत, खोरठा साहित्य प्रकाशित हो चुकी है. उनकी लिखित खोरठा में 159 बुक्स अप्रकाशित हैं. उन्होंने खोरठा शब्दकोष, खोरठा तुकांत भी तैयार किया है. उनका कहना है कि खोरठा भाषा को बढ़ावा देने का शौक बहुत पहले से था, लेकिन इसे रिटायरमेंट के बाद से ज्यादा फोकस किया. मैं जहां भी जाता हूं, अपनी मातृभाषा में ही बातें करने की कोशिश करता हूं.

कुड़ुख
डॉ महेश भगत

कुड़ुख भाषा को पहचान दिलाने के लिए झारखंड की नहीं, देश भर में डॉ महेश भगत की पहचान है. वे एसजीएम कॉलेज पंडरा में कुड़ुख भाषा के प्रोफेसर होने के साथ ऑल इंडिया कुड़ुख लेटरेरी सोसायटी ऑफ इंडिया नयी दिल्ली के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उन्होंने सोसायटी के साथ मिल कर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई सेमिनार आयोजित किये, जिसमें कुड़ुख भाषा के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम किया. उनकी लिखी सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. पांच से सात पुस्तकों का संकलन व संपादन किया है. वह कहते हैं कि आज के समय में मातृभाषा के प्रति विद्यार्थियों का रूझान काफी बढ़ रहा है.

पंचपरगनिया
डॉ हाराधन कोइरी

डॉ हाराधन कोइरी पंचपरगनिया के संघर्षशील युवा रचनाकार हैं. इन्होंने हिंदी भाषा में एमए और पीएचडी की डिग्री ली, लेकिन कविता लेखन मातृभाषा पंचपरगनिया में करते हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख पंचपरगनिया भाषा में प्रकाशित हो चुके हैं. वर्तमान में डॉ हाराधन गीता पंचपरगनिया के नाम से श्रीमद‍्भगवतगीता का अनुवाद कर रहे हैं. उनकी पंचपरगनिया काव्य संग्रह ‘घरबाड़ी’ भी शीघ्र प्रकाशित होनेवाली है. वह कहते हैं कि अपनी मातृभाषा को आगे बढ़ाने के लिए उद्देश्य से लिखना शुरू किया. श्रीमद‍्भगवतगीता को पंचपरगनिया भाषा में अनुवाद कर रहा हूं. साथ ही कई काव्य संग्रह पर काम कर रहा हूं.

नागपुरी
डॉ राम प्रसाद

नागपुरी भाषा को ख्याति दिलानेवालों में से एक हैं रिटायर प्रोफेसर डॉ राम प्रसाद. उन्होंने स्वतंत्रोत्तर नागपुरी साहित्य एक शास्त्रीय अध्ययन में डीलिट की उपाधि ली. साथ ही नागपुरी भाषा के प्रचार-प्रसार में जुट गये. 1980-81 में उनकी संपादित पुस्तक कोरी भइर पजरा को काफी सराहा गया. इसके अलावा भी उन्होंने कई नागपुरी किताबों का संपादन किया है. उनकी लिखी नागपुरी लोक कथा संग्रह में 92 कथाओं का संग्रह है. दिल्ली से प्रकाशित भारतीय भाषा कोष में उनकी नागपुरी लोरी साहित्य, नागपुरी लोक साहित्य, बाल साहित्य पर कई आलेख आ चुके हैं. वे कहते हैं कि बचपन से नागपुरी भाषा में कहानियां सुना करता था. इसे ही किताबों में उतारने का प्रयास किया.

हो
जय किशोर मंगल

हो भाषा के प्रचार-प्रसार से लेकर उसे आम आदमी के लिए सर्वसुलभ बनाने की दिशा में जय किशोर मंगल लेखन कार्य कर रहे हैं. उन्होंने हो भाषा पर ही पीएचडी भी की है. हो जनजाति के विविध संस्कारों का सामाजिक व सांस्कृतिक अध्ययन पर रिसर्च किया है. उनके लिखी पुस्तक ‘हो साहित्य के तत्व व आयाम’ जल्द प्रकाशित होनेवाली है. वे हो भाषा पर चार अन्य पुस्तकें भी लिख रहे हैं. वह हो भाषा में कहानियां, आकाशवाणी में हो पर वार्ता, अंग्रेजी से हो में ट्रांसलेटर की भूमिका भी निभा रहे हैं. वह बताते हैं कि रांची विवि में पढ़ाई के दौरान ही हो पर लोगों के रूझान को जाना. समाज में हो भाषा के प्रति लोगों को नयी दिशा लाने के उद्देश्य से लेखन शुरू किया.

संताली
डॉ इवा मार्ग्रेट हंसदा

यूं तो डॉ इवा मार्ग्रेट अंग्रेजी भाषा की शिक्षिका हैं, लेकिन उन्होंने अपनी मातृभाषा संताली के प्रति लगाव व प्रेम को नहीं छोड़ा. वह संताली भाषा में बच्चों को ट्रांसलेशन करना सिखाती हैं. भारत सरकार के सीआइअाइएल मैसूर की ओर से 2018 में हिंद स्वराज पुस्तक को अंग्रेजी से संथाली भाषा में ट्रांसलेट कर चुकी हैं. वह बताती हैं कि घर में संताली भाषा में बोली जाती है. बचपन से इसे सुना और इसके बारे में जाना है. इसलिए संताली भाषा के प्रति शुरू से ही लगाव रहा है. जब मुझे भारत सरकार द्वारा संथाली ट्रांसलेशन करने का मौका मिला, तो मेरे लिए सुनहरा अवसर साबित हुआ. मातृभाषा में काम करने से बेहतर कुछ भी नहीं है.

खड़िया
वंदना टेटे

वंदना टेटे खड़िया भाषा की जानकार हैं. इसके प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से बरियातू में गीता चाड़ी नाम से स्कूल चला रही हैं. जिसमें बच्चों के अलावा बड़े-बुजुर्गों को खड़िया भाषा, समाज, संस्कृति के बारे में जागरूक कर रही हैं. उनकी खड़िया और हिंदी भाषा में कविता संग्रह ‘कोन जोगा’ प्रकाशित हो चुकी है. इसे काफी सराहा गया है. जल्द ही खड़िया भाषा में उनकी कहानी संग्रह प्रकाशित होगी. वह बताती हैं कि खड़िया साहित्य को प्रोत्साहित करने के लिए मंच देने की कोशिश है. पिछले तीन सालों से खड़िया भाषा को जागरूक करने के लिए स्कूल चला रही हूं. वर्तमान में स्कूल में 20 बच्चे खड़िया भाषा को सीख रहे हैं.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel