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जयंती विशेष : लोकनायक जयप्रकाश के विचार थे पश्चिमी चिंतन से प्रभावित, पर व्यवहारिक रूप से शुद्ध भारतीय

रबींद्र नाथ चौबेआज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर नमन… जेपी के विचारों की यात्रा हमें वर्तमान युगबोध से ईमानदारी से साक्षात्कार करने की प्रेरणा देती है. युगबोध के प्रति ईमानदारी, लगातार क्रियाशीलता और सहजता जे पी के गुण थे जो उन्हें महान बनाते हैं. उनके इन गुणों के कारण ही उनकी विचार यात्रा विकसित […]

रबींद्र नाथ चौबे
आज लोकनायक जयप्रकाश नारायण की जयंती पर नमन… जेपी के विचारों की यात्रा हमें वर्तमान युगबोध से ईमानदारी से साक्षात्कार करने की प्रेरणा देती है. युगबोध के प्रति ईमानदारी, लगातार क्रियाशीलता और सहजता जे पी के गुण थे जो उन्हें महान बनाते हैं. उनके इन गुणों के कारण ही उनकी विचार यात्रा विकसित होते हुए गतिशील रही. इसी क्रम में सम्पूर्ण क्रांति का आह्वान और उसके लिए आंदोलन, उनके व्यक्तित्व को श्रेष्ठ और सम्पूर्ण बनाता है. जेपी के विचार पश्चिमी चिंतन से बहुत प्रभावित थे, पर जीवन के रहन सहन और व्यवहारिक मूल्यों में वे भारतीय थे. इसके उल्टे डॉ लोहिया चिंतन में भारतीय और व्यवहार में पश्चिमी थे.

जेपी चिंतन में पश्चिमी प्रभाव के कारण ही पश्चिमी लोकतंत्र के संविधानवाद, संसद, न्यायपालिका, मतदान,जन प्रतिनिधि आदि संस्थायें जो पश्चिम में दो तीन शताब्दी में विकसित और सफल हुई थी, के प्रति झुकाव और महत्वपूर्ण मानते रहे हैं. जबकि भारत में लोकतंत्र लाखों गणराज्य, विकेन्द्रीकृत शासन और भारतीय संस्कृति के पंचायती मूल्यों के आधार पर सफल होगी जिसकी झलक भारतीय संस्कृति, गांधी के क्षैतिज ग्राम स्वराज और लोहिया के चौखम्बा राज्य में निहित है.

हालांकि विनोबा जी के प्रभाव में उन्होंने ग्राम स्वराज में अपने को समर्पित किया. लेकिन वह राज्य के मूल ढांचा को बदले बिना ऊपरी ढांचा का प्रभावहीन आंदोलन साबित हुआ. इस प्रकार जेपी मुख्य धारा से अलग से हो गये. उनके जीवन के अंतिम पर्व ने जिसके दो हिस्से रहे. पहला लोकतंत्र को आम जन का बनाने के लिए प्रचलित संविधानवाद, संसद, न्यायपालिका आदि नाकाफी बताते हुए उसे सुधार करते रहने के निर्दलीय जन आंदोलन जरूरी और दूसरा उसे पूर्ण बनाने के लिए निरंतर सभी क्षेत्रों में साकारात्मक बदलाव के लिए सम्पूर्ण क्रांति जरूरी. ये दोनों जेपी को सम्पूर्ण और भविष्य का इतिहास पुरुष बनाते हैं.

जेपी सहज थे. विचारों और प्रतिभा का सम्मान करते थे. आंदोलन के क्रम में जेपी जमशेदपुर में दो बार आये और दोनों बार मुझे उनका प्यार मिला. पहली बार उनके साथ ओमप्रकाश दीपक जी थे जो जमशेदपुर में सिर्फ मुझे जानते थे और लोहियावादी में वे पहले व्यक्ति थे. जेपी से पूर्ण रूप से जुड़ चुके किशन जी को उनके साथियों को थोड़ी हिचकिचाहट थी क्योंकि आंदोलन का नेतृत्व लेने के पहले जे पी पार्टीलेस लोकतंत्र चला रहे थे. इसलिए उनके जमशेदपुर आने के दस दिन पूर्व किशन जी मेरे यहां आये थे और दीपक जी से स्पष्टीकरण प्राप्त करने की बात कही. जेपी के आगमन पर साथ आये दीपक जी से मैंने यह बात कही तो उन्होंने सफाई दी कि अभी जेपी पूरी तरह से दल वाले लोकतंत्र को सुधारने के लिए आंदोलन कर रहे हैं. हालांकि मेरी बात उन्होंने ने जेपी से की और मुझसे कहा कि तुम मिलानी सभागार में रखी बौद्धिक लोगों की बैठक में जरूर रहना तुम्हे स्पष्ट हो जायेगा. मुझे प्रसन्नता हुई कि जेपी ने बहुत ही स्पष्ट तौर पर कहा कि इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को जनहित में सही लोकतंत्र बनाना है.

दूसरी बार जेपी आये तो उनके साथ प्रो रामजी सिंह थे. उसके पूर्व कलकत्ता से निकलने वाली हमलोगों की साप्ताहिक पत्रिका चौरंगी वार्ता (जो बाद में सामयिक वार्ता हो गयी) में मेरी एक रिपोर्ट छपी थी. वह रिपोर्ट थी विरसा सेवा दल के नेता मोसेज गुडिया का आदित्यपुर फुटबॉल मैदान में उनके द्वारा दिये गये भाषण में जेपी आंदोलन पर आदिवासी विरोधी होने के आरोप पर. प्रो रामजी सिंह ने मेरे रिपोर्ट को जेपी को दिखलायी. जेपी ने मुझे बुलाया और कहा कि तुम मोसेज गुडिया से मिलकर स्पष्ट कर दो कि हमारा आंदोलन यहां के लोगों को सत्ता प्रदान करने के लिए छोटे राज्य के पक्ष में है. जेपी ने उस दिन रीगल में हुई सभा मेरा नाम लेकर समझाया. बाद में मै मोसेज गुडिया से ओल्ड हजारीबाग रोड रांची में मिलकर छोटे राज्य की जरूरत पर जेपी की बात समझायी.

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