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सांसों का दुश्मन है पल्मोनरी फायब्रोसिस
डॉ गुरमीत छाबड़ा सीनियर कंसल्टेंट, रेसपिरेटरी मेडिसीन, क्यूआरजी हेल्थसिटी, फऱीदाबाद दुनियाभर में लगभग 50 लाख लोग पल्मोनरी फाइब्रोसिस बीमारी के शिकार हैं. सही जानकारी के अभाव में हर साल भारत में हजारों लोग इस बीमारी से मरते हैं. पल्मोनरी फायब्रोसिस फेफड़ों से संबंधित गंभीर रोग है. यह तब होता है जब फेफड़ों के उत्तक क्षतिग्रस्त […]
डॉ गुरमीत छाबड़ा
सीनियर कंसल्टेंट, रेसपिरेटरी मेडिसीन, क्यूआरजी हेल्थसिटी, फऱीदाबाद
दुनियाभर में लगभग 50 लाख लोग पल्मोनरी फाइब्रोसिस बीमारी के शिकार हैं. सही जानकारी के अभाव में हर साल भारत में हजारों लोग इस बीमारी से मरते हैं. पल्मोनरी फायब्रोसिस फेफड़ों से संबंधित गंभीर रोग है. यह तब होता है जब फेफड़ों के उत्तक क्षतिग्रस्त होकर मोटे और कड़े हो जाते हैं. ये कड़े और मोटे उत्तक फेफड़ों के लिए कार्य करना मुश्किल बना देते हैं. जैसे-जैसे समस्या गंभीर होती जाती है, रोगी की सांसे उखड़ने लगती हैं और सांस लेना दूभर हो जाता है.
यह एक लाइलाज बीमारी है, जो जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करती है. वैसे कुछ थेरेपीज हैं, जो इस रोग से पीड़ित लोगों का जीवन कुछ आसान बनाती हैं और लक्षणों को मैनेज करने में सहायता करती हैं. कुछ मामलों में लंग ट्रांसप्लांट भी कारगर है, मगर यह काफी महंगा उपाय है और ज्यादातर मामलों में सफल भी नहीं.
अमेरिकन लंग एसोसिएशन के अनुसार, पल्मोनरी फायब्रोसिस के 200 से अधिक प्रकार हैं, लेकिन ज्यादातर का कोई स्पष्ट कारण पता नहीं है. इसके लक्षण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अलग हो सकते हैं. कई लोगों में लक्षण तेजी से गंभीर होते हैं, तो कुछ लोगों में धीरे-धीरे गंभीर होते जाते हैं.
क्या हैं कारण : इस रोग में फेफड़ों के एयर सैक्स (एलवियोलाई) के आस-पास के उत्तक मोटे और क्षतिग्रस्त हो जाते हैं. इससे रक्त प्रवाह में ऑक्सीजन पहुंचाने में परेशानी आती है. जिन मामलों में इसके कारणों का पता नहीं लग पाता, उसे ‘इडियोपैथिक पल्मोनरी फायब्रोसिस’ कहते हैं. वैसे लंबे समय तक विषैले पदार्थों और प्रदूषकों के संपर्क में रहना और अनुवांशिक भी इसकी चपेट में आने का कारण बन सकते हैं.
रिस्क फैक्टर्स
उम्र : हालांकि बच्चों और नवजात को भी यह समस्या होती है, लेकिन अधेड़ और बुजुर्गों में इसके मामले अधिक देखे जाते हैं.
लिंग : पुरुषों में यह समस्या महिलाओं की तुलना में अधिक होती है.
धूम्रपान : धूम्रपान नहीं करनेवालों की तुलना में उन्हें होने की आशंका अधिक है, जो धूम्रपान करते हैं या फिर करके छोड़ चुके हैं.
कुछ विशेष कार्यक्षेत्र : खदान, खेत, भवन निर्माण क्षेत्र आदि में काम करनेवालों में पल्मोनरी फायब्रोसिस का खतरा अधिक होता है.
अनुवांशिक कारक : कुछ परिवारों में पल्मोनरी फायब्रोसिस का इतिहास होता है.
नजरअंदाज न करें इन लक्षणों को
सांस उखड़ना (डिस्पनिया).
सूखी खांसी, थकान
बिना स्पष्ट कारण के तेजी से वजन कम होना.
मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द रहना.
पैरों और हाथों की उंगलियों के सिरे चौड़े और गोल हो जाना.
इसी बीमारी से जूझती लड़की की कहानी है ‘द स्काई इज पिंक’
प्रियंका चोपड़ा जल्दी ही अपनी नयी फिल्म ‘द स्काई इज पिंक’ में दिखेंगी. यह रियल लाइफ गर्ल ‘आयशा चौधरी’ की जिंदगी पर आधारित है, जो 13 वर्ष की अवस्था में पल्मोनरी फाइब्रोसिस का शिकार हो गयी थी.
इन सबके बावजूद आयशा ने हार नहीं मानी और न ही इस बीमारी को अपने सपनों पर हावी होने दिया और एक सफल मोटीवेशनल स्पीकर के रूप में खुद को स्थापित किया. आयशा के फेफड़ों का सिर्फ 35% हिस्सा ही ठीक से काम कर पा रहा था, जिसके कारण उन्हें चलने, मुड़ने और सीढ़ियां चढ़ने में बहुत परेशानी होती थी. वह जल्द थक जाती थीं. 15 साल की उम्र से उन्हें पोर्टेबल ऑक्सीजन की जरूरत पड़ने लगी. इसके बाद भी उन्होंने लोगों को मोटीवेट करना नहीं छोड़ा. दुखद रहा कि साल 2015 में महज 18 साल की उम्र में वह इस जिंदगी को विदा कह गयीं.
बचाव के कदम
धूम्रपान छोड़ें : जीवनशैली और खानपान की आदतों में बदलाव लाएं. धूम्रपान करनेवाले अनिवार्य रूप से इसे छोड़ें. आपके फेफड़ों के लिए सेकेंडरी स्मोकिंग भी हानिकारक होता है, इसलिए ऐसे लोगों से दूर रहें.
पोषक खान-पान : पल्मोनरी फायब्रोसिस में वजन तेज़ी से कम होने लगता है, क्योंकि एक तो खाने में परेशानी होती है, दूसरा सांस लेने के लिए अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत पड़ती है. इसलिए ऐसा भोजन लें, जिसमें पर्याप्त कैलोरी हो. एक दिन में तीन बार मेगा मील की जगह छह बार मिनी मील लें. फल और सब्जियां खाएं. साबूत अनाज, कम वसा वाला दूध और लीन मीट लें. ट्रांस फैट और सैचुरेटेड फैट के सेवन से बचें. नमक और चीनी का सेवन भी कम करें.
एक्टिव रहें : शारीरिक रूप से सक्रिय रहना और नियमित व्यायाम फेफड़ों की सामान्य कार्यप्रणाली बनाये रखने में सहायक है, जिससे तनाव भी दूर रहता है.
आराम करें : रोज 6-8 घंटे की नींद लें और दिन में भी थोड़ी देर के लिए आराम करें. इससे आपके शरीर में उर्जा का प्रवाह बढ़ेगा, जो आपको बीमारी के कारण उपजे तनाव से निबटने में भी सहायता करेगा.
वैक्सीन लें : श्वसन तंत्र का संक्रमण इस रोग के लक्षणों को गंभीर बना देता है. आप डॉक्टर की सलाह से न्यूमोनिया का वैक्सीन और फ्लू शॉट लें. फ्लू के मौसम में भीड़-भाड़ वाली जगहों पर जाने से भी बचें.
देरी न करें डायग्नोसिस में
तुरंत लक्षणों को पहचान कर डायग्नोसिस कराने से न केवल बीमारी को बढ़ने से रोक सकते हैं, बल्कि उचित उपचार द्वारा संभावित जटिलताओं के खतरे को कम कर जीवनकाल को भी बढ़ाने में सहायता मिलती है. कुछ जरूरी टेस्ट किये जाते हैं, जैसे- चेस्ट एक्स-रे, सीटी स्कैन, पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट, आर्टियल ब्लड गैस टेस्ट, टिशु बायोप्सी.
पहचान में अंतर को जानें : चूंकि टीबी और दमा जैसी बीमारियों और पल्मोनरी फाइब्रोसिस के लक्षणों में काफी समानता होती है, इसलिए कई बार डॉक्टर रोग की पहचान करने में चूक कर जाते हैं. ऐसे में इनके अंतरों को जानना चाहिए.
टीबी में बुखार आता है जबकि पल्मोनरी फाइब्रोसिस में सामान्यत: बुखार नहीं आता. टीबी की खांसी में खून आता है जबकि इसमें सामान्यत: खांसी में खून नहीं आता है. टीबी के मरीजों के नाखून में कोई परिवर्तन नहीं आता जबकि पल्मोनरी फाइब्रोसिस के मरीज के नाखून तोते की चोंच की तरह हो जाते हैं. बलगम की जांच में टीबी के जीवाणु मिलने पर ही इसे टीबी समझना चाहिए.
क्या हैं उपचार
पल्मोनरी फायब्रोसिस के कारण जो उत्तक क्षतिग्रस्त हो गये हैं, उन्हें ठीक तो नहीं किया जा सकता, मगर कुछ उपायों से लक्षणों की गंभीरता में कमी जरूर ला सकते हैं. गंभीर मामलों में ऑक्सीजन थेरेपी आखिरी उपाय बचता है.
ऑक्सीजन थेरेपी सांस लेना आसान बनाती है. यह रक्त में ऑक्सीजन का स्तर कम होने से जो जटिलताएं होती हैं, उन्हें रोकती है या कम करती है. नींद में सुधार लाती है, जिससे रोगी अच्छा महसूस करते हैं. इसके अलावा प्रारंभिक अवस्था के लिए कुछ नयी दवाइयां बाजार में आयी हैं, जो लक्षणों में कमी करती है. लंग ट्रांसप्लांट भी एक विकल्प है, मगर ज्यादातर मामलों में डोनर रिजेक्शन और संक्रमण देखे जाते हैं.
इनपुट : शमीम खान
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