अमिताभ पांडे, खगोल विशेषज्ञ
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मिशन फेल कहना गलत
अमिताभ पांडे, खगोल विशेषज्ञ आखिरी पलों में इसरो का संपर्क विक्रम लैंडर से टूट जाने के बाद चंद्रयान-2 की सफलता को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं. चंद्रयान मिशन की कामयाबी की आस में रात में जागकर जो लोग टीवी देख रहे थे, वे कुछ निराश हो गये. निराशा स्वाभाविक भी है, क्योंकि चांद […]
आखिरी पलों में इसरो का संपर्क विक्रम लैंडर से टूट जाने के बाद चंद्रयान-2 की सफलता को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं. चंद्रयान मिशन की कामयाबी की आस में रात में जागकर जो लोग टीवी देख रहे थे, वे कुछ निराश हो गये. निराशा स्वाभाविक भी है, क्योंकि चांद से महज 2.1 किमी दूर तक चंद्रयान-2 से संपर्क था, लेकिन तभी विक्रम लैंडर से इसरो का संपर्क टूट गया. कुछ लोगों ने इसे फेल करार दिया है. लेकिन, साइंस की यही खूबसूरती है कि इसमें कभी कोई प्रयोग या मिशन फेल नहीं होता, बल्कि वही आगे कामयाब होने की बुनियाद होता है.
हम सबको याद करना चाहिए कि किस तरह से सत्तर साल पहले पंडित नेहरू के समय में वैज्ञानिकता को बढ़ावा देने और अंतरिक्ष शोध के लिए इसरो की शुरुआत हुई, वह धीरे-धीरे आज इस मुकाम तक आ पहुंचा है कि हम चांद की सतह पर उतरने की कोशिश कर रहे हैं.
पूरे दक्षिण एशिया के देशाें में हम एकलौते देश हैं, जिसने चांद पर पहुंचने की क्षमता विकसित की थी. दुनिया के जिस भी देश ने चांद पर लैंडर, रोवर उतारने की कोशिश की, वे सब फेल हुए हैं. लेकिन, हम इस उपलब्धि को हासिल करने में सफल हुए हैं.
विक्रम लैंडर अपने सिग्नल सिस्टम से अपने ऑर्बिटर को सिग्नल भेजता है और फिर ऑर्बिटर से हमको धरती पर यानी इसरो के सिग्नल रिसीवर सिस्टम में संदेश प्राप्त होता है. इस सिग्नल के जरिये ही पता चलता है कि वह लैंडर कितनी दूरी पर है, किस गति से चल रहा है वगैरह. यह डेटा जब पूरी तरह से आना बंद हो गया, इसे ही विक्रम लैंडर से संपर्क टूट जाना कहा जाता है.
इसलिए लोगों को लग रहा है कि यह मिशन हमारे हाथ से निकल गया है. लेकिन हम ऐसा नहीं कह सकते, वैज्ञानिक भी ऐसा नहीं कह सकते, क्योंकि अभी आगे क्या होगा, इस बारे में कुछ भी ठोस कहना फिलहाल संभव नहीं है. अभी पूरा विश्लेषण के बाद जानकारी आनी बाकी है कि आखिरी क्षणों में वहां क्या हुआ, जिसकी वजह से संपर्क टूटा.
हमारा पूरा मिशन फेल नहीं हुआ है, बल्कि चंद्रयान-2 का सिर्फ आखिरी हिस्सा फेल हुआ है. दरअसल, लैंडर के लिए चांद की सतह पर चलना इतना आसान भी नहीं होता है, क्योंकि उसकी सतह धरती की तरह नहीं है. वहां हवा भी नहीं है, जबकि धरती पर हवा किसी चीज के गति-निर्धारण में सहायक होती है. वहां बड़े-बड़े क्रेटर (गड्ढे) हैं, वहां की मिट्टी की प्रकृति अलग है और वहां भूकंप भी आते हैं.
चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में एक ऐसा कैमरा भी लगा है, जो बहुत सी तस्वीरों के साथ जानकारियां भेजने में सक्षम है. इस कैमरे के जरिये चांद की सतह का एक गूगल मैप की तरह तस्वीर लेनी थी, ताकि यह पता चल सके कि वहां किस प्रकार के तत्व मौजूद हैं. चांद पर पानी की संभावना है. निकट भविष्य में हमारे वैज्ञानिक वहां जाकर शोध करेंगे, इसके लिए पानी बहुत जरूरी है. क्योंकि पानी ही जीवन का जरूरी तत्व है.
हमारा ऑर्बिटर अभी दो-तीन साल तक वहां इसकी जानकारी इकट्ठा करता रहेगा. हो सकता है कि इससे ज्यादा समय तक वह काम करता रहे. इसलिए एक लैंडर के संपर्क टूट जानेभर से ही हमारा मिशन फेल हो गया, यह कहना बहुत गलत बात होगी. हमारे वैज्ञानिकों के प्रयास जारी रहेंगे और निकट भविष्य में संभव है कि हम बड़ी कामयाबी हासिल करेंगे.
इन मिशन में भी आयीं खामियां
बेरेशीट : इस्राइल के इस निजी लूनर लैंडर को 22 फरवरी, 2019 को लॉन्च किया गया था. इसकी योजना चंद्र सतह से हाई-रिजोल्यूशन इमेज और मैरे सेरेनिटेटिस में इसके लैंडिंग साइट के चुंबकीय क्षेत्र की माप लेना था. दुर्भाग्यवश 11 अप्रैल को लैंडिंग के समय इसके मुख्य इंजन के फेल हो जाने से यह अभियान यहीं समाप्त हो गया.
एलक्रॉस : लूनर क्रेटर ऑब्जर्वेशन एंड सेंसिंग सेटेलाइट (एलक्रॉस) नासा का लूनर इंपैक्टर्स था, जिसे 18 जून, 2009 को लॉन्च किया गया था. लॉन्च व्हीकल से अलग होने के बाद इस इंपैक्टर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक स्थित क्रेटर, कैबेउस के प्रभाव क्षेत्र की ओर निर्देशित किया गया था. 9 अक्तूबर, 2009 को यह यान ध्रुव में ही दुर्घटनाग्रस्त हो गया.
लूना 23 : सोवियत संघ का यह अंतरिक्ष यान 28 अक्तूबर, 1974 को लॉन्च किया गया था. चंद्रमा पर लैंडिंग के दौरान यह यान क्षतिग्रस्त हो गया.
सोयुज एल3 : इस यान को तत्कालीन सोवियत संघ द्वारा 23 नवंबर, 1972 को लॉन्च किया गया था. सोयूज कैप्सूल का परीक्षण करने के लिए इसे डिजाइन किया गया था. लॉन्चिंग के 90 सेकेंड बाद ही इसके 30 में से 6 इंजन बंद हो गये और यह अभियान विफल रहा.
लूना 18 : इस अंतरिक्ष यान को 2 सितंबर, 1971 को सोवियत संघ द्वारा लॉन्च किया गया था. चंद्रमा के 54 चक्कर लगाने के बाद यह यान 7 सितंबर को चंद्रमा की सतह पर उतरा. सतह पर उतरने के बाद इसका धरती से संपर्क टूट गया.
अपोलो 13 : 11 अप्रैल, 1970 को लॉन्च हुआ अमेरिकी यान, अपोलो 13 के ऑक्सीजन टैंक में बीच रास्ते में ही ब्लास्ट हो गया था. हालांकि, इसमें सवार यात्री सुरक्षित वापस गये थे. यह अभियान असफल रहा था.
कॉस्मॉस 305 : साेवियत संघ का यह यान 22 अक्तूबर, 1969 को लॉन्च किया गया था. धरती की कक्षा में पहुंचने के बाद इस यान का रॉकेट विफल हो गया और चंद्रमा पर नहीं पहुंच सका.
कॉस्मॉस 300 : 23 सितंबर, 1969 को लॉन्च हुए सोवियत संघ के इस यान का राॅकेट भी धरती की कक्षा में पहुंचने के बाद विफल हो गया था और चांद पर नहीं पहुंच सका था.
इसके अलावा सोवियत संघ का लूना 4, 5, 6, 7, 8, 9, 15, लूना 1969ए, बी व सी, जोंड एल1एस-1, जोंड 1969ए, कॉस्मॉस 111, स्पुतिनिक 25, अमेरिका का सर्वेयर 2 व 4, रेंजर 1, 2, 3, 4, 5, 6, पायनियर पी-3, पायनियर 1, 2, 3, 4 अंतरिक्ष यान भी चंद्रमा पर पहुंचने के क्रम में या वहां पहुंचने के बाद दुर्घनाग्रस्त हो गये या उनका धरती से संपर्क खत्म हो गया.
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