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ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा रोग में छींकने से भी टूट जाती हैं हड्डियां
डॉ रवि रंजन एमएस (ऑर्थो) कंसलटेंट ओर्थोपेडिक सर्जन (इंसाल ऑर्थोपेडिक हॉस्पिटल, रांची) मानव शरीर को सुचारु रूप से चलाने में शरीर की हर कोशिका और अंगों का सही ढंग से चलना बेहद जरूरी होता है. मानव शरीर का ढांचा, जिसे हम मानव कंकाल प्रणाली कहते हैं, उस पर ही शरीर का पूरा भार टिका होता […]
डॉ रवि रंजन
एमएस (ऑर्थो) कंसलटेंट ओर्थोपेडिक सर्जन
(इंसाल ऑर्थोपेडिक हॉस्पिटल, रांची)
मानव शरीर को सुचारु रूप से चलाने में शरीर की हर कोशिका और अंगों का सही ढंग से चलना बेहद जरूरी होता है. मानव शरीर का ढांचा, जिसे हम मानव कंकाल प्रणाली कहते हैं, उस पर ही शरीर का पूरा भार टिका होता है.
एक व्यस्क व्यक्ति के शरीर में लगभग 206 हड्डियां होती हैं. हड्डियों के समुचित विकास और मजबूती के लिए कैल्शियम और विटामिन डी की आवश्यकता होती है. कभी-कभी कैल्शियम की कमी या चोट लगने के कारण भी हड्डियां टूट जाती हैं. लेकिन इन सबके अतिरिक्त एक ऐसी बीमारी भी है, जिसमें मात्र छींकने से ही हड्डियां टूट जाती हैं.
इस बीमारी को ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफेक्टा यानी अस्थिजनन अपूर्णता कहते हैं. इसे मेडिकल टर्म में अस्थि भंग की बीमारी (Brittle bone disease), लॉबस्टीन सिंड्रोम (Lobstein syndrome), फ़रगिलिटस ओसियम (Fragilitas ossium), व्रोलिक रोग (Vrolik disease) भी कहते हैं. यह रोग हड्डियों को भंगुर बनाता है, जिससे हड्डियां आसानी से टूट जाती हैं. रोग का अनुपात 1:20,000 होता है.यानी यह बीमारी 20,000 लोगों में से किसी एक को होती है. यह रोग महिला या पुरुष दोनों में से किसी को भी हो सकता है.
रोग का स्वरूप : इस बीमारी का गंभीर रूप कई बार जानलेवा भी साबित हो जाता है और मरीजों की कम विकसित हुए फेफडों की वजह से मौत हो जाती है. यह एक अनुवांशिक रोग है और 85 प्रतिशत रोगियों में यह मर्ज माता-पिता से आता है, लेकिन 15 प्रतिशत में यह जन्म के बाद भी जीन म्यूटेशन द्वारा आ सकता है. हाल के शोधों में ऐसे रोगियों के लिए पेराथारमोन थेरेपी काफी कारगर पायी गयी है और इससे फ्रैक्चर की संभावना भी काफी कम हो जाती है. इस प्रकार के रोगियों को अक्सर चलने-फिरने में तकलीफ होती है.
इसलिए इनका शारीरिक विकास भी पूरा नहीं हो पाता है. मांसपेशियां मजबूत न होने के कारण रीढ़ की हड्डी में टेढ़ापन आ जाता है. ऐसे बच्चों में दांतों का विकास डेन्टिनोजेनेसिस इम्परफैक्टा एवं आंखों में नीला या पीलापन भी पाया जाता है. अच्छी बात यह है कि सारी तकलीफों के बावजूद ऐसे लोग उचित उपचार के बाद लगभग सभी काम कर पाते हैं.
सर्जरी भी है एक उपाय
कभी-कभी टूटी हुई हड्डियों यानी विकृत हड्डियों को शल्य चिकित्सा द्वारा ठीक किया जाता है. विभिन्न शल्य चिकित्सा पद्धतियों में संयुक्त प्रतिस्थापन और फ्रैक्चर की मरम्मत शामिल है. इसके अलावा रॉड (नेल), प्लेट और स्क्रू के जरिये टूटी या विकृत (किसी भी बीमारी के कारण) हड्डी को ठीक किया जाता है.
दवाओं के साइड इफेक्ट
हर रोगी में आंतरिक स्थिति के अनुरूप इसके प्रभाव देखने को मिलते हैं. किसी-किसी मरीज़ को गैस्ट्रिक असुविधा, मांसपेशियों में दर्द, आंखों में जलन और गंभीर सिर दर्द देखने को मिलते हैं.
भारत में इलाज
सरकारी दिशा-निर्देशों के बाद जॉइंट रिप्लेसमेंट सर्जरी की कीमत 5420 रुपये से 76,600 रुपये है. भारत में एलेंड्रोनेट, टेरीपैराटाइड जैसे ओरल बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स की कीमत 115.60 और 1259 रुपये है तथा विटामिन डी की कीमत लगभग 2774 है. मरीज की स्थिति के अनुसार सर्जरी का खर्च अलग-अलग भी हो सकता है.
आर्थोपेडिक सर्जरी में रिकवरी के लिए तीन महीने की जरूरत होती है. इसमें गतिहीनता तीव्र दर्द और कमजोर हड्डियों का कारण बन सकती हैं. विशेषज्ञ की सलाह से नियमित हल्के-फुल्के व्यायाम की जरूरत होती है. कैल्शियम और विटामिन डी युक्त आहार जरूर लें. धूप की रोशनी से भी विटामिन डी मिलता है, इसलिए धूप में बैठना भी सेहत के लिए अच्छा है. हमारे आस-पास ऐसे कई लोग होते हैं, जो गंभीर से गंभीर और लाइलाज बीमारी से ग्रसित होने के बावजूद अपनी ज़िंदगी बेहद उत्साह के साथ जीते हैं. उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए.
क्यों होती है यह बीमारी
हड्डियों के निर्माण में सहायक टाइप-1 कोलेजन नामक प्रोटीन को बनाने वाले जीन में दोष के कारण अस्थिजनन अपूर्णता हो जाती है. जीन संबंधी यह दोष वंशानुगत प्राप्त होता है, तो कुछ मामलों में जीन में किसी बदलाव से भी समस्या हो जाती है. जिन्हें यह बीमारी होती है, वे दोषपूर्ण संयोजी ऊतक (defective connective tissue) या दोषपूर्ण जीन (defective or the inability of genes) के कारण इसे बनाने में असमर्थता के साथ पैदा होते हैं. यह कोलेजन (collagen) उत्पादन को प्रभावित करता है, जो हड्डी को मजबूत बनाने के लिए जिम्मेदार संयोजी ऊतक में पाया जाने वाला प्रोटीन है.
इस बीमारी के लक्षण गंभीर और हल्के दोनों हो सकते हैं, लेकिन मुख्य लक्षण हड्डियों का बार-बार टूटना है. अन्य लक्षणों में जोड़ों का कमजोर होना, दांतों का कमज़ोर होना, आंख के सफेद हिस्से में नीले रंग का दाग होना, पैर और हाथों का आकार बाहर की ओर होना या विकृत होना, कम उम्र में सुनने में परेशानी, श्वसन संबंधी समस्या और हृदय संबंधी रोग आदि हो सकते हैं.
उपचार शुरू करने से पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि मरीज को कौन-सी और किस वजह से यह बीमारी हुई है, ताकि इलाज सही तरीके से हो सके. उसके बाद सिर्फ विशेषज्ञ डॉक्टर द्वारा बतायी हुई बातों का पालन करना होता है. इससे मरीज को सही समय पर सही इलाज मिल जाता है, क्योंकि अक्सर यह देखा गया है कि सही उपचार न मिलने की वजह से मरीज़ की हालत और ज़्यादा ख़राब हो जाती है.
प्रमुख लक्षण
कमजोर हड्डियां
थोड़ा भी झटका लगने से हड्डियां चटक जाना या अंदरूनी फ्रैक्चर
कमजोर जोड़
सपाट एवं कमजोर दांत
औसत से भी कम लंबाई व ढांचागत कमजोरी
आंख के सफेद हिस्से में नीले धब्बे होना
शुरुआती उम्र में सुनने में कमी
हाथ व पांव में कई जगह गांठें या विकृति
क्या है बीमारी का उपचार
चूंकि यह एक आनुवंशिक विकार है, अत: इसका कोई स्थायी इलाज नहीं. स्वस्थ जीवन शैली विकल्प जैसे- व्यायाम, दर्द निवारक दवाएं, ब्रेसिज़ और फ्रैक्चर वाली हड्डियों की उचित देखभाल उपयोगी हैं. एंटीबायोटिक्स और एंटीसेप्टिक्स के उपयोग से हड्डियों के संक्रमण को ठीक किया जा सकता है.
अन्य कई उपचार हैं, जो बीमारी के विभिन्न चरणों में मरीज की मदद करते हैं. उनमें हड्डी को मजबूत करने वाली दवा और आहार की खुराक, फिजियोथेरेपी और आर्थोपेडिक सर्जरी शामिल हैं. जिन वयस्कों और बच्चों को यह बीमारी है, उन्हें हड्डी के घनत्व यानी डेंसिटी को बनाये रखने के लिए ओरल बिसफ़ॉस्फ़ोनेट्स जैसे कि एलेंड्रोनेट, टेरीपैराटाइड या अन्य दवाओं की आवश्यकता होती है. यदि मरीज़ नियमित अपने आहार को पर्याप्त मात्रा में नहीं ले पाते हैं, तो डॉक्टर विटामिन डी व कैल्शियम सप्लीमेंट भी देते हैं.
ओस्टोजेनेसिस अपूर्णता का उपचार मुख्यत: इस रोग के लक्षणों का प्रबंधन करने के लिए किया जाता है, क्योंकि इसका कोई इलाज नहीं है. इसके सभी उपचार का मुख्य उद्देश्य फ्रैक्चर, दर्द में कमी, स्वतंत्र कार्य को बढ़ाना और सामान्य स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है. पीड़ित रोगी को बहुत देखभाल की जरूरत होती है, क्योंकि शरीर अनेक बीमारियों से घिरा रहता है. हड्डियों के लगातार टूटने के कारण मांशपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं.
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