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जीवन की लय गड़बड़ा देता है हार्मोन का असंतुलन, इन बातों का रखें ध्यान

हार्मोनों का जीवन पर गहरा प्रभाव होता है. ये न केवल शरीर की वृद्धि और विकास को प्रभावित करते हैं, बल्कि शरीर की सभी गतिविधियों को नियंत्रित भी करते हैं. यूं कहें कि ये हार्मोन हमारे मूड, इमोशन, व्यवहार के लिए जिम्मेदार होते हैं. लेकिन जब इन हार्मोनों के स्त्रावन में जरा भी असंतुलन आ […]

हार्मोनों का जीवन पर गहरा प्रभाव होता है. ये न केवल शरीर की वृद्धि और विकास को प्रभावित करते हैं, बल्कि शरीर की सभी गतिविधियों को नियंत्रित भी करते हैं. यूं कहें कि ये हार्मोन हमारे मूड, इमोशन, व्यवहार के लिए जिम्मेदार होते हैं. लेकिन जब इन हार्मोनों के स्त्रावन में जरा भी असंतुलन आ जाता है, तो शरीर के पूरे सिस्टम में गड़बड़ी आ जाती है और हमारे स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है.
वैसे तो हार्मोन स्त्री और पुरुष दोनों के शरीर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, चूंकि महिलाओं की शारीरिक रचना बहुत जटिल होती है, इसलिए उनके शरीर में यौवनावस्था शुरू होने से लेकर बच्चे को जन्म देने तक में इन हार्मोन्स की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है.
महिलाओं में यह बहुत सामान्य है कि जीवन के विभिन्न चरणों, जैसे- मासिक चक्र प्रारंभ होने और उसके चालू रहने के दौरान, गर्भावस्था के समय और मीनोपॉज के दौरान हार्मोनों के स्तर में उतार-चढ़ाव आये.
इसकी वजह से उन्हें कई दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. अमेरिका की प्रसिद्ध स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ अन्ना कैबेका ने अपनी किताब ‘द हार्मोन फिक्स’ में लिखा है- लगभग पचास प्रतिशत महिलाओं में हार्मोन असंतुलन उनके जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है.
क्या होते हैं हार्मोन्स : हार्मोन किसी कोशिका या ग्रंथि द्वारा स्त्रावित ऐसे रसायन होते हैं, जो शरीर के दूसरे हिस्से में स्थित कोशिकाओं को भी प्रभावित करते हैं. शरीर की वृद्धि, मेटाबॉलिज्म और इम्यून सिस्टम पर हार्मोन्स का सीधा प्रभाव होता है. हमारे शरीर में कुल 230 हार्मोन होते हैं, जो शरीर की अलग-अलग क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं.
हार्मोन की छोटी-सी मात्रा ही कोशिकाओं के मेटाबॉलिज्म को बदलने के लिए काफी होती है. ये एक केमिकल मैसेंजर की तरह एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक सिग्नल पहुंचाते हैं. अधिकतर हार्मोनों का संचरण रक्त द्वारा होता है. कई हार्मोन दूसरे हार्मोनों के निर्माण और स्त्राव को नियंत्रित भी करते हैं.
फीमेल हार्मोन्स : फीमेल हार्मोन्स महिलाओं के शरीर को ही नहीं, उनके मस्तिष्क और भावनाओं को भी प्रभावित करते हैं. किसी महिला के शरीर में हार्मोनों का स्त्राव लगातार बदलता रहता है. यह कई बातों पर निर्भर करता है, जिसमें तनाव, पोषक तत्वों की कमी या अधिकता और व्यायाम की कमी या अधिकता प्रमुख है. फीमेल हार्मोन यौवनावस्था, मातृत्व और मोनोपॉज के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. मासिक धर्म और प्रजनन तंत्र को नियंत्रित रखते हैं.
ओवरी (अंडाशय) द्वारा सबसे महत्वपूर्ण जिन हार्मोनों का निर्माण होता है, वे फीमेल सेक्स हार्मोन हैं. इन्हें सेक्स स्टेराइड भी कहते हैं. ये केवल दो ही होते हैं- एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रॉन. अंडाश्य कुछ मात्रा में टेस्टोस्टेरॉन और एंड्रोजन भी बनाती है, लेकिन इन्हें मेल हार्मोन माना जाता है.
यौवनावस्था आरंभ होते ही किशोरियों में जो शारीरिक बदलाव एस्ट्रोजेन के स्त्राव के कारण ही आते हैं. इसके बाद सबसे बड़ा बदलाव मासिक चक्र के बंद होने (मीनोपॉज) के दौरान आता है.
हार्मोन असंतुलन का प्रभाव : हार्मोन असंतुलन के कारण महिलाओं का मूड अक्सर खराब रहने लगता है और वे चिड़चिड़ी हो जाती हैं. यह असंतुलन स्वास्थ्य संबंधी सामान्य परेशानियां जैसे- मुहांसे, चेहरे और शरीर पर अधिक बालों का उगना, समय से पहले उम्र बढ़ने के लक्षण नजर आना से लेकर मासिक धर्म संबंधी गड़बड़ियां, सेक्स के प्रति अनिच्छा, गर्भ ठहरने में मुश्किल आना और बांझपन जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है.
फीमेल हार्मोन की गड़बड़ी के अलावा कई महिलाओं में पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरॉन का अधिक स्त्राव हिरसुटिज्म की वजह बन जाता है. इससे सेक्सुअल डिस्ट्रीब्यूशन (शरीर की त्वचा का वह हिस्सा जहां महिलाओं और पुरुषों में बालों की मात्रा अलग-अलग होती है) में बालों का उग आना, कुछ महिलाएं एलोपेसिया (बालों का अत्यधिक झड़ना) की शिकार हो जाती हैं.
असंतुलन के कारण : महिलाओं के शरीर में हार्मोन असंतुलन कई कारणों से प्रभावित होता है, जिसमें जीवनशैली, पोषण, व्यायाम, तनाव, भावनाएं और उम्र प्रमुख हैं. कई लोगों की यह अवधारणा है कि हार्मोन असंतुलन मीनोपॉज के बाद होता है जबकि यह गलत है. कई महिलाएं सारी उम्र हार्मोन असंतुलन से परेशान रहती हैं. आज हार्मोन असंतुलन इसलिए अधिक हो रहा है कि उनमें जीवनशैली, खान-पान की आदतें बदल गयी हैं.
जंक फूड और दूसरे खाद्य पदार्थों में कैलोरी की मात्रा तो बहुत अधिक होती है, लेकिन पोषक तत्वों की मात्रा बहुत कम होती है. इससे शरीर को आवश्यक विटामिन, मिनरल्स, प्रोटीन और दूसरे आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल पाते. कॉफी, चाय, चॉकलेट और सॉफ्ट ड्रिंक आदि का अधिक इस्तेमाल करने से भी महिलाओं की एड्रीनलीन ग्रंथि अत्यधिक सक्रिय हो जाती है, जो दूसरे हार्मोन के स्त्राव को प्रभावित करती है. गर्भनिरोधक गोलियां भी हार्मोनों के स्त्रावन को प्रभावित करती हैं. तनाव भी हार्मोन असंतुलन का एक प्रमुख कारण है.
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी : मोनोपॉज से गुजर रही महिलाओं में हार्मोन असंतुलन दूर करने के लिए सिंथेटिक हार्मोन देने की यह पद्धति कुछ वर्ष पूर्व विशेषकर पश्चिमी देशों में बहुत लोकप्रिय थी. मोनोपॉज के बाद इस तकनीक द्वारा महिलाएं ज्यादा युवा और स्वस्थ नजर आती थीं. लेकिन विश्व स्तर पर किये गये डब्ल्यूएचआइ (वीमन हेल्थ इनीशिएटिव) द्वारा इसे गलत साबित कर दिया गया है. इससे हृदय संबंधी रोग, गर्भाशय का कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और स्ट्रोक के खतरे कई गुना बढ़ जाते हैं. कई देशों में तो इसका प्रयोग लगभग बंद हो गया है.
हार्मोन असंतुलन के लक्षण
मासिक धर्म के दौरान अत्यधिक ब्लीडिंग होना.
मासिक चक्र गड़बड़ा जाना.
उत्तेजना, भूख न लगना, अनिद्रा.
ध्यान केंद्रित न होने की समस्या.
अचानक वजन का बढ़ जाना.
सेक्स के प्रति अनिच्छा.
रात में अधिक पसीना आना.
इन बातों का रखें ध्यान
कम वसायुक्त, अधिक रेशेदार आहार लें.
ओमेगा-3 और ओमेगा-6 युक्त भोजन हार्मोन संतुलन में सहायक हैं. यह सनफ्लॉवर के बीजों, अंडों, सूखे मेवों और चिकन में पाया जाता है.
शरीर में पानी की कमी न होने दें.
7-8 घंटे की नींद जरूर लें.
तनाव से बचें, सक्रिय रहें.
चाय, कॉफी, शराब के सेवन से बचें.
मासिक धर्म संबंधी गड़बड़ियों में तुरंत उपचार लें.
मेडिटेशन और डीप रिलैक्शेसन द्वारा मन व शरीर को शांत रखें.

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