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मछली पालन से बदल रही है किसानों की जिंदगी
सुनील मिंज पिछले दिनों मैंने पलामू और लातेहार के कुछ प्रखंडों का दौरा यह समझने के लिए किया कि वाकई पानी की खेती जमीन की खेती से अधिक लाभकारी है? मनिका में मेरी मुलाकात सरदम दाग गांव के सत्येंद्र सिंह से उनके नवनिर्मित तालाब के समीप हुई. विकास सहयोग केंद्र पिछले कई सालों से जलाशयों […]
सुनील मिंज
पिछले दिनों मैंने पलामू और लातेहार के कुछ प्रखंडों का दौरा यह समझने के लिए किया कि वाकई पानी की खेती जमीन की खेती से अधिक लाभकारी है?
मनिका में मेरी मुलाकात सरदम दाग गांव के सत्येंद्र सिंह से उनके नवनिर्मित तालाब के समीप हुई. विकास सहयोग केंद्र पिछले कई सालों से जलाशयों में मत्स्य पालन हेतु शृंखलाबद्ध अभियान चला रहा है. उसी कार्य में सत्येेंद्र सिंह की मुलाकात संस्था के लोगों से हुई. वह मत्स्य पालन प्रशिक्षण हेतु रांची के धुर्वा स्थित सरकारी संस्थान में भेजे गये. प्रशिक्षण तो ले लिया, पर उनके पास अपना तालाब नहीं था. तब उन्होंने विचार किया कि क्यों नहीं दो क्यारी को तालाब में बदल दिया जाए. इस काम के लिए संस्था से 37 हजार रुपये बतौर ऋण मिले. इस पैसे से उन्होंने 10-10 डिसमिल के 40/70 फीट के दो तालाब खोद डाले. अभी इस तालाब में तीन-चार फीट पानी है.
सत्येंद्र सिंह ने सरकारी अनुदान से 10 लाख स्पॉन पश्चिम बंगाल से ला कर इनमें डाला. यह स्पॉन 21 दिन के बाद फ्राई के आकार का हो गया, जिसे सत्येंद्र सिंह ने 15 किलो मीटर दूर से आये किसानों को बेचना शुरू किया. उसने 80 हजार फ्राई बेच कर 25 हजार रुपये कमाये. अब भी उनके तालाब में 30 हजार मूल्य का फ्राई बाकी था.
वह बताते हैं, इस 20 डिसमिल जमीन में खेती कर वह अधिक से अधिक दो क्विंटल धन पैदा करते थे, जिसका मूल्य दो हजार रुपये होता था, लेकिन मत्स्य पालन से उन्होंने सिर्फ एक माह में 55 हजार रुपये कमाये.
उन्हें सरकार से फ्राई कैचिंग नेट, 25 किग्रा मछली का चारा और 500 रुपये का मोबाइल रिचार्ज कूपन मिला है, ताकि वह सरकार के मत्स्य विभाग और अन्य किसानों से बात कर सकें. उन्होंने किसानों को संदेश दिया कि जिस किसान के तालाब में दो-तीन महीने बरसात का पानी जमा रहता है, वे स्पॉन डाल कर अच्छी आमदनी कर सकते हैं. अगर उनके तालाब में तीन-चार महीने पानी जमा रहता है, तो वे फिंगर रिंग और इयर रिंग मछली का पालन कर उसे अधिक दाम में बेच सकते हैं.
सरदम दाग के एक अन्य किसान हैं बीरेंद्र सिंह. उन्होंने भी मत्स्य पालन की ट्रेनिंग धुर्वा में ली है. इनके पास पुराना तालाब है. मेड़ पर महुए का पेड़. और दूसरे भी गाछ हैं. यहां मछली के साथ मुर्गी-बतख पालन भी किया जा सकता है, लेकिन बीरेंद्र ने सिर्फ मत्स्य पालन ही किया है. उन्होंने तालाब में 10 लाख स्पॉन डाला है. 21 दिनों के बाद उन्होंने तैयार फ्राई बेचना शुरू किया. उन्होंने 300 रुपये प्रति हजार फ्राई की दर से 30 हजार फ्राई बेच कर 9 हजार रुपये कमाये. इतनी ही मछलियां अब भी तालाब में हैं. इस बिजनेस में उन्होंने मात्र 1470 रुपये की पूंजी लगायी थी.
छतरपुर थानांतर्गत छतरपुर पंचायत के सडमा गांव के 35 वर्षीय प्रकाश उरांव का सपना है कि उसके तालाब से 5 लाख फ्राई का उत्पादन हो और उसे वह एक रुपया प्रति मछली की दर से बेच कर 5 लाख रुपये की आमदनी करें.
उनके पास बड़ा सरकारी तालाब है, जिसमें तीन लाख स्पॉन डाला गया है. अगर उसका सरवाइवल रेट 25 की जगह 17 प्रतिशत भी रहा, तो वह आसानी से पांच लाख रुपये की कमाई करेंगे, वह भी सिर्फ एक महीने में. बहरहाल, प्रकाश उरांव, मनोज सिंह, जगेशर विश्वकर्मा जैसे हजारों किसान पानी की खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं.
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