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सादगी कमाल जॉर्ज बेमिसाल : विरोधी ईंट-पत्थर फेंक रहे थे, जॉर्ज भाषण देते रहे…

भारतीय राजनीति में प्रतिरोध केप्रतीक रहे जॉर्ज फर्नांडिस राज्यसभा और लोकसभा का सफर तय करते हुए कई बार देश के केंद्रीय मंत्री बने़ पर सामाजिक जीवन में एक विद्रोही स्वभाव वाले लीडर की पहचान रही. मुंबई में ट्रेड युनियन आंदोलन से लेकर बिहार के पिछड़े इलाकों में लोगों की चेतना जगायी. आम आदमी के लिए […]

भारतीय राजनीति में प्रतिरोध केप्रतीक रहे जॉर्ज फर्नांडिस राज्यसभा और लोकसभा का सफर तय करते हुए कई बार देश के केंद्रीय मंत्री बने़ पर सामाजिक जीवन में एक विद्रोही स्वभाव वाले लीडर की पहचान रही. मुंबई में ट्रेड युनियन आंदोलन से लेकर बिहार के पिछड़े इलाकों में लोगों की चेतना जगायी. आम आदमी के लिए हमेशा सहज, उपलब्ध रहने वाले जॉर्ज खास तौर से युवाओं को प्रेरित करते रहे. उन्होंने संचारमंत्री, उद्योगमंत्री, रेलमंत्री और रक्षामंत्री का दायित्व निभाया़, लेकिन इसके बावजूद वो आडंबर से कोसों दूर रहे़
विरोधी ईंट-पत्थर फेंक रहे थे, जॉर्ज भाषण देते रहे…
प्रमोद कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
वाकया 1980 का है. तब केंद्र में जनता पार्टी की सरकार गिरने के बाद देश में लोकसभा उप चुनाव की घोषणा हो चुकी थी. जॉर्ज फर्नांडिस अपने संसदीय क्षेत्र मुजफ्फरपुर पहुंचे थे. कंपनीबाग मैदान में सभा का आयोजन किया गया. सभा में जॉर्ज साहब उसी तरह बोल रहे थे, जिस तरह उन्होंने जनता पार्टी की सरकार से इस्तीफा देने के बाद लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में बोला था.
भीड़ में से अचानक युवकों का समूह विरोध में नारेबाजी करते हुए ईंट-पत्थर मंच पर फेंकने लगा. लेकिन, जॉर्ज रुके नहीं. वह बोलते रहे. उनका भाषण तो ओजस्वी होता ही था. सभा के एक वक्ता हिंद केशरी यादव (जो बाद में मंत्री भी रहे) के सिर पर ईंट का एक टुकड़ा जा लगा. निशाना तो जॉर्ज को ही बनाकर फेंका गया था, लेकिन वह बच गये. जॉर्ज अपना भाषण खत्म कर ही बैठे.
इसी कंपनी बाग के मैदान में जॉर्ज को जेल से रिहा कर लोकसभा भेजने के लिए 1977 में बाबू जगजीवन राम ने महथी जन सभा को संबोधित किया था. तब भीड़ के कारण दीवार गिर गयी थी. उस सभा में रात नौ बजे से तीन बजे सुबह तक अपने भाषणों से सुषमा स्वराज ने श्रोताओं को बांधे रखा. 1977 के लोकसभा चुनाव में जॉर्ज भारी मतों से विजयी हुए थे.
1977 के आम चुनाव में जॉर्ज की उम्मीदवारी की घोषणा हाेते ही 1974 के आंदोलनकारी चुनाव प्रचार में जुट गये थे. चुनाव लोकशाही बनाम तानाशाही के बीच था. चुनाव की घोषणा होते ही जब जेपी की सभा चक्कर मैदान में हुई तो उस समय जॉर्ज की उम्मीदवारी की चर्चा भी नहीं थी.
साधु भाई, प्रो नलिनी रंजन सिंह और प्रो श्याम सुंदर दास भावी उम्मीदवार थे. लेकिन, लोकनायक जेपी की इच्छा थी कि जॉर्ज ही यहां से उम्मीदवार बनें. मुजफ्फरपुर का मुशहरी लोक नायक जयप्रकाश नारायण की कर्मभूमि थी. भला वे जार्ज को छोड़ कर किसकी बात करते. जेल में रहते हुए जार्ज फर्नांडीस और शरद राव जैसे उनके विश्वस्तों का चुनाव का प्रबंधन ऐसा था कि कांग्रेस के नीतीश्वर प्रसाद सिंह 70 हजार वोट में सिमट गये.
जॉर्ज जब 1977 में जेल से चुनाव लड़ रहे थे, तो उनकी पत्नी लैला कबीर भी अपने पति को जेल से रिहा करवाने और देश में लोकशाही बहाल करने के लिए नुक्कड़ सभाएं करती थीं. कन्हौली खादी भंडार के पास मुंशी साह की नाश्ते की दुकान के पीछे जॉर्ज की पत्नी लैला कबीर ने नुक्कड़ सभा को संबाेधित किया था. इन्हीं सभाओं ने माहौल को बुलंद कर दिया. जॉर्ज जनता सरकार में मंत्री नहीं बनना चाहते थे. मुजफ्फरपुर के लोगों के धरना देने पर वह केंद्र सरकार में मंत्री बनने काे तैयार हुए.
जॉर्ज खुद कपड़े व थाली की करते थे सफाई
जॉर्ज साहब नालंदा से लगातार तीन बार सांसद बने, लेकिन वह नालंदा जब भी आते तो स्थानीय भैंसासुर में मॉडल स्कूल के पास बने मो. अरशद के मकान में रुकना नहीं भूलते. जॉर्ज साहब के निधन की सूचना से मो. अरशद भी दुखी हैं.
वे बताते हैं कि जॉर्ज साहब जब भी उनके घर पर रुकते थे तो खुद अपने कपड़े एवं थाली साफ करते थे. सुबह एक गिलास दूध पीना वह नहीं भूलते थे. मो अरशद के पिता मो मंजूर अहमद ने बताया कि उन्होंने अपने 75 वर्षों की जिंदगी में जॉर्ज साहब जैसा इंसान अब तक नहीं देखा. उन्होंने कहा कि रक्षा व रेलमंत्री जैसे बड़े पदों पर रहकर भी जॉर्ज साहब में अभिमान नहीं था.
Prabhat Khabar Digital Desk
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