स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के सम्मेलन की शुरुआत हो गयी है. इसमें पूरी दुनिया से आये राजनीतिज्ञ, बुद्धिजीवी, पत्रकार व सामाजिक कार्यकर्ता आदि शामिल हो रहे हैं और वैश्विक अर्थव्यवस्था से लेकर जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों पर अपनी बात रखेंगे. इस सम्मेलन का आयोजन वैश्विक सहभागिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया जाता है. दावोस सम्मेलन से जुड़ी प्रमुख बातें आज के इन डेप्थ में…
भारत के लिए महत्वपूर्ण है दावोस सम्मेलन
देश में चुनावी सरगर्मियों का असर दावोस की बैठक पर भी दिख रहा है. अमेरिका, फ्रांस, चीन एवं ब्रिटेन के नेताओं के साथ भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बैठक में शामिल नहीं हो रहे हैं. भारत सरकार के कई मंत्री भी सम्मेलन में नहीं होंगे. लेकिन, कुछ राजनेता और शीर्ष उद्योगपति 140 सदस्यीय बड़े प्रतिनिधिमंडल में होंगे.
राजनेताआें में मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री, पंजाब के वित्त मंत्री, तेलंगाना के ग्रामीण विकास मंत्री प्रमुख हैं. गौतम अडानी, मुकेश अंबानी, नंदन निलेकणी, एन चंद्रशेखर, आनंद महिंद्रा जैसे लोग भारतीय उद्योग जगत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन, न्यू डेवलपमेंट बैंक के अध्यक्ष केवी कामथ एवं अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ भी इस सम्मेलन में शिरकत कर रही हैं.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा वैश्वीकरण की मौजूदा स्थिति के संबंध में 29 देशों के दस हजार लोगों के बीच कराये गये सर्वेक्षण में संरक्षणवाद, राष्ट्रवाद और तकनीक के असर पर चिंता व्यक्त की गयी है. तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने भी रोजगार एवं बाजार की चिंता है. ऐसे में वैश्वीकरण की व्यापक चिंताओं से भारत अछूता नहीं है.
दावोस में एक आयोजन में बोलते हुए नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने भारत की आर्थिक प्रगति में नगरीकरण की प्रमुख भूमिका को रेखांकित किया. उन्होंने वैश्विक अर्थव्यवस्था की चिंताओं के बावजूद मुद्राकोष द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर 7.5 प्रतिशत रहने के आकलन का उल्लेख करते हुए आधारभूत कारकों की मजबूती की चर्चा की.
पर्यावरण और संरक्षणवाद पर इस सम्मेलन में होनेवाली बातचीत एवं बहसों का भारत समेत अनेक उभरती अर्थव्यवस्थाओं के लिए बहुत महत्व है.
वेतन के मामले में महिलाआें से भेदभाव
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, पारिश्रमिक के मामले में महिलाओं को पुरुषों की बराबरी करने में अभी 202 साल लग जायेंगे. गौरतलब है कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम हर वर्ष अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी करता है. रिपोर्ट बताती है कि महिलायें पुरुषों की औसत कमाई का मात्रा 63 प्रतिशत ही कमाती हैं. रिपोर्ट में शामिल 149 देशों में से एक भी देश ऐसा नहीं है, जहां महिलाओं को पुरुषों के बराबर पारिश्रमिक प्रदान की जाती हो.
जानकारों का कहना है कि वैश्विक पारिश्रमिक में भेद बहुत व्यापक है और इस दिशा में परिवर्तन की गति भी बहुत धीमी है. डब्ल्यूईएफ की रिपोर्ट कहती है कि हालिया सालों में वैश्विक तौर पर पारिश्रमिक के मामले में लैगिंक असमानता का अंतर थोड़ा कम हुआ है, लेकिन कार्यस्थलों में महिलाओं की संख्या में कमी दर्ज की गयी है.
दक्षिण पूर्व एशियाई देश लाओस में महिलाओं के लिए स्थिति थोड़ी बेहतर है और महिलायें पुरुषों के पारिश्रमिक का 91 प्रतिशत हासिल करती हैं. दूसरी तरफ, सीरिया, यमन और इराक जैसे देशों में महिलाओं व पुरुषों के पारिश्रमिक में सबसे ज्यादा भेद देखा गया है, जहां महिलायें पुरुषों के वेतन का मात्रा 30 प्रतिशत ही हासिल कर पाती हैं. वहीं, राजनीतिक भागीदारी के मामले में सबसे समतावादी देश आइसलैंड है, हालांकि महिलाओं को पारिश्रमिक के मामले में पुरुषों की तुलना में 33 प्रतिशत वेतन हासिल होता है.
महिलाओं की संख्या में इजाफा
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की मानें, तो दावोस में आयोजित होनेवाले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के वार्षिक सम्मेलन में महिलाओं की भागीदारी में लगातार पांचवे वर्ष वृद्धि दर्ज की गयी है. पिछले वर्ष जहां इस सम्मेलन में 21 प्रतिशत महिलाओं ने हिस्सा लिया था, वह इस वर्ष बढ़कर 22 प्रतिशत पर पहुंच गया है. इस फोरम द्वारा उपस्थिति की सार्वजनिक की गयी सूची के अनुसार, दावोस में 114 देशों के तकरीबन 3,000 प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं, जिनमें 696 महिलायें हैं.
इस सम्मेलन में विभिन्न देशों की महिला प्रतिनिधियों की उपस्थिति पर नजर दौड़ायें तो 37 प्रतिशत महिलाओं के साथ नॉर्वे शीर्ष पायदान पर है, जबकि 36.4 व 33.3 प्रतिशत के साथ केन्या व ऑस्ट्रिया क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर हैं. भारत की बात करें तो यहां महिला प्रतिनिधियों की उपस्थिति 13.2 प्रतिशत है.
फोरम में छह युवा को-चेयर
इस बार फोरम में छह युवाओं को को-चेयर चुना गया है, जिनमें चार महिलाएं हैं. इन सभी ने बिजनेस, राजनीति, पर्यावरण संरक्षण और सोशल आंत्रप्रेन्योरशिप जैसे क्षेत्र में अपने काम से नया मुकाम हासिल किया है. पिछले साल सभी सात को-चेयर महिलाएं थीं.
साल 2025 तक अधिकांश नौकरियां होंगी मशीनों के कब्जे में
चौथे औद्योगिक क्रांति की आहट के बीच दुनिया में मशीनीकरण की गति बहुत तेज हुई है. इस बीच वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्ल्यूईएफ) की वार्षिक रिपोर्ट में सामने आया है कि मशीनीकरण की इस गति के परिणामस्वरूप वर्ष 2025 तक कार्यस्थलों में 52 फीसदी नौकरियों पर मशीनों का कब्जा होगा. जाहिर है, मशीनीकरण की तेजी का सर्वाधिक असर मानव कौशल से जुड़ीं नौकरियों पर पड़ रहा है. हालांकि, रिपोर्ट कहती है कि दूसरी तरफ नयी नौकरियां भी पैदा होती रहेंगी. रिपोर्ट के अनुसार, विश्व में जारी रोबोट क्रांति से अगले पांच साल में 5.8 करोड़ नयी नौकरियां पैदा होंगी.
डब्ल्यूईएफ के शोध ‘द फ्यूचर ऑफ जॉब्स 2018’ के अनुसार, ऑटोमेशन और रोबोटों को कार्यस्थलों में शामिल करने से मनुष्यों के काम करने के तरीके में बदलाव भी आयेगा. दुनिया भर में अभी सारे कार्यों का 71 प्रतिशत कार्य इंसान ही करते हैं, यानी 29 प्रतिशत कार्य मशीनें अंजाम दे रही हैं. अनुमान के अनुसार, वर्ष 2022 तक कार्यस्थलों इंसानों का प्रतिशत घटकर 58 प्रतिशत हो जायेगा तथा मशीनें 42 प्रतिशत कार्यों को अंजाम देंगी.
मशीनों की हिस्सेदारी साल 2025 में 52 प्रतिशत की हो जायेगी. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम का मानना है कि इंसानों के लिये नयी भूमिकाओं की तैयारी पर अभी से ध्यान देना जरूरी है, जिससे मशीनीकरण के बीच काम करने के अवसर बरकरार रहें. इसके अलावा, मशीनों एवं कंप्यूटरीकृत कार्यक्रमों के साथ के साथ तालमेल बिठाने के लिए अपने कौशल को निखारना होगा.
िकसने क्या कहा?
डब्लयूईएफ की बैठक में दक्षिण एशिया के लिए रणनीतिक दृष्टिकोण के ऊपर आधारित सत्र में बोलते हुए रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि आनेवाले समय में भारतीय अर्थव्यवस्था चीन की तुलना में बड़ी हो जायेगी. चूंकि भारतीय अर्थव्यवस्था का बढ़ना जारी रहेगा, इसलिए हमारा देश उन क्षेत्रों में बुनियादी ढांचा बनाने के लिए बेहतर स्थिति में होगा, जिसे बनाने का वादा आज चीन कर रहा है.
-रघुराम राजन
पराजय अब पराजित हो गयी है
‘वर्ष 2012 के दिसंबर में जब मैं अपने कार्यालय में वापस लौटा तो कहा जा रहा था कि जापान विकसित नहीं हो सकता क्योंकि इसकी आबादी बूढ़ी हो रही है. ऐसे में अपने घटते कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित कर जापानी अर्थव्यवस्था में आशा का संचार करने में हमारी सरकार सफल रही. इसका नतीजा यह हुआ है कि आज हमारे यहां दो मिलियन अतिरिक्त महिलाएं कार्यरत हैं. जापान के लिए पराजय अब पराजित हो गयी है. मैं मानता हूं कि विकास के लिए आशा सबसे महत्वपूर्ण कारक है.
– शिंजो अबे, प्रधानमंत्री, जापान
‘उभरते बाजारों में 2.2 बिलियन से अधिक उपभोक्ता ऑनलाइन हैं, और 550 मिलियन प्रति वर्ष कम से कम एक ऑनलाइन उत्पाद खरीद रहे हैं. हम वैश्वीकरण में विश्वास करते हैं, लेकिन कई लोग इसमें विश्वास नहीं करते क्योंकि यह समावेशी नहीं है.’
– जैक मा, कार्यकारी अध्यक्ष, अलीबाबा ग्रुप
प्रमुख बातें क्या है वर्ल्ड
इकोनॉमिक फोरम?
हायफा अल-मंसूर को क्रिस्टल अवार्ड
सउदी अरब की महिला फिल्मकार हायफा अल-मंसूर को वर्ल्ड इकोनाॅमिक फोरम 2019 सम्मेलन में क्रिस्टल अवाॅर्ड से नवाजा गया है. इस अवाॅर्ड को प्राप्त करनेवाली हायफा सउदी अरब की पहली महिला फिल्मकार हैं.
हायफा को यह अवाॅर्ड अरब देशों में सांस्कृतिक बदलाव का नेतृत्व करने के लिए मिला है. क्रिस्टल अवाॅर्ड के जरिये उन असाधारण कलाकारों और सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्य करनेवाले अंतरराष्ट्रीय कलाकारों को सम्मानित किया जाता है, जिनके महत्वपूर्ण योगदान से दुनिया में बेहतरी को बढ़ावा मिलता है. पिछले वर्ष यह अवाॅर्ड शाहरुख खान, केट ब्लैंकेट और सर एल्टाॅन जाॅन को उनके समाज सेवा कार्यों के लिए दिया गया था.
