राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय खेलों में भारतीय खिलाड़ी शानदार जीत हासिल कर रहे हैं. हालांकि हमारे सामने उन खेलों और अपने खिलाड़ियों को और भी मजबूत करने की चुनौती बरकरार है. इस साल क्रिकेट विश्वकप जैसा बड़ा आयोजन है, तो वहीं अगले साल होनेवाले टोक्यो ओलिंपिक्स की तैयारियां भी हमें करनी हैं.आइपीएल के ग्लैमर तले दब कर रह जानेवाले खेलों की बात छोड़ दें, तो फुटबॉल और हॉकी में भी हम कुछ कमजोर हैं. इस साल कैसी रहेगी खेलों की दुनिया और किन खेलों-खिलाड़ियों से कितनी रहेंगी संभावनाएं, इनका विस्तार से विश्लेषण कर रहे हैं वरिष्ठ खेल पत्रकार अभिषेक दूबे…
अभिषेक दूबे
वरिष्ठ खेल पत्रकार
तस्वीरें कई शब्दों पर भारी होती हैं और कई तो इतने कि उन्हें शब्दों में समेटा ही नहीं जा सकता. भारतीय क्रिकेट के दीवानों के लिए 1983 की एक तस्वीर, जिसमें लंदन में लॉर्ड्स की बालकनी और कपिल देव के जांबाजों के हाथ में वर्ल्ड कप की ट्रॉफी है, ऐसी ही है.
एक बार फिर इस वर्ष विराट कोहली की कप्तानी में भारतीय टीम विश्वकप कप जीतने का सपना लिए इंग्लैंड में होगी. भारतीय क्रिकेट दीवानों की दिली तमन्ना होगी कि कोहली की विराट सेना के हाथों एक बार फिर 1983 का इतिहास दोहराया जाये व ट्रॉफी चूमते भारतीय खिलाड़ियों की फोटो अखबार के पहले पन्ने पर जगह बनाये. हालांकि तब से अब तक भारतीय क्रिकेट और खेल में काफी बदलाव आ चुका है.
वर्ष 1983 में क्रिकेट की दुनिया में नौसिखुआ कही जानेवाली हमारी टीम, 2019 तक ग्लोबल क्रिकेट सुपर पावर बन चुकी है. वह क्रिकेट के तीनों ही फॉर्मेट में दुनिया की मजबूत टीमों से जरा भी कमतर नहीं है.
इन वर्षों में क्रिकेट भारतीय खेल का लैंप पोस्ट बना रहा, लेकिन साथ ही यह भी सच है कि इस बीच दूसरे खेलों ने भी आहिस्ता-आहिस्ता अपनी पहचान बना ली है. देखा जाये तो क्रिकेट की तुलना में इन खेलो में मुकाबला ज्यादा मुश्किल होता है. वेट लिफ्टिंग, रेस्लिंग, जिम्नास्टिक समेत विभिन्न खेलों में इस वर्ष कई ऐसे प्रतिस्पर्धा होनी है जिसके बल पर टीम इंडिया 2020 टोक्यो ओलिंपिक्स के लिए या तो क्वालीफाई करेगी या फिर अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देगी.
ओलिंपिक्स खेलों में केडी जाधव के पदक के अलावा भारत के पास दिखाने के लिए कुछ खास नहीं था. हां, मिल्खा सिंह का 1960 रोम ओलिंपिक्स में किया गया जबर्दस्त प्रदर्शन हर किसी के जेहन में ताजा था, लेकिन उनके पदक न जीतने की कसक भी कम नहीं थी. भारतीय फुटबॉल और विश्व फुटबॉल के बीच की खाई इतनी अधिक हो चुकी थी कि उसे पाटना नामुमकिन लग रहा था.
उड़नपरी पीटी उषा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अभी पहचान बनानी शुरू ही की थी और उनका सर्वश्रेष्ठ आना अभी बाकी था, इस बीच 1983 में टीम इंडिया की जीत ने विश्व पटल पर भारत को नयी पहचान दी.
वर्ष 2018 भारतीय खेल के नाम रहा. इस वर्ष भारत ने कॉमनवेल्थ खेलों में 66 पदक और एशियाई खेलों में 57 पदक जीते. लेकिन यहां महत्वपूर्ण यह है कि जिस साल खेलो इंडिया गेम्स की नींव रखी गयी, उसी साल ये पदक भारत को उन खेलों में प्राप्त हुए जिनमें वह पारंपरिक तौर पर मजबूत रहा है. इन पदकों को जीतने में नये खिलाडियों का भी योगदान रहा, जो यह उम्मीद बंधाती है कि आनेवाले समय में ये खिलाड़ी भारतीय खेल की पहचान बनेंगे.
क्रिकेट विश्वकप, 2019
वर्ष 2019 का क्रिकेट विश्वकप महेंद्र सिंह धोनी का आखिरी विश्वकप होगा. झारखंड के माही 2011 विश्व चैंपियन टीम और 2007 टी-20 विश्व चैंपियन टीम के कप्तान रह चुके हैं. वे टेस्ट क्रिकेट में नंबर एक रैंकिंग वाली भारतीय टीम के कप्तान और आइपीएल के सबसे कामयाब कप्तान रभी रहे हैं.
वे सीमित ओवर क्रिकेट इतिहास के सबसे बेहतरीन फिनिशर में एक हैं. आखिरी गेंद तक संयम और ठंडे दिमाग से मुकाबले में बने रहना, हारी बाजी को जीत में पलटने का आत्मविश्वास, खुद से आगे हमेशा टीम को रखना और आक्रामकता का मतलब आपा नहीं खोना, माही के सांकेतिक विरासत हैं.
विकेट के आगे आक्रामक बल्लेबाजी और विकेट के पीछे प्रदर्शन में लगातार निखार, धोनी द्वारा दिया गया व्यावहारिक विरासत है, जो उनके जाने के बाद भी भारतीय टीम के काम आयेगी. विराट कोहली पर इस सांकेतिक विरासत को आगे ले जाने की चुनौती है. बीते दौर की विरासत और आनेवाले कल की चुनौतियों के बीच भारतीय क्रिकेट के लिए बेहतरीन खबर यह है कि ऋषभ पंत के तौर पर भारत को ऐसा विकेटकीपर बल्लेबाज मिल चुका है, जिनमें रिकी पोंटिंग भी धोनी से बेहतर संभावनाएं तलाश रहे हैं. बहरहाल, 2019 विश्वकप टीम के लिए, धोनी के अलावा ऋषभ पंत और दिनेश कार्तिक की भी मजबूत दावेदारी होगी.
भारतीय टीम में 2019 विश्वकप के लिए दो काबिल आलराउंडर भी उपलब्ध हैं, तेज गेंदबाज व आल राउंडर हार्दिक पंड्या और स्पिन गेंदबाज व आल राउंडर रविंद्र जाडेजा. भारतीय टीम की पास गेंदबाजी में अनेक विकल्प उपलब्ध हैं. पेस और स्पिन गेंदबाजी में विकल्पों की लंबी फेहरिस्त की वजह से इसे न्यू-टीम इंडिया भी कहा जा सकता है.
भारत में पहले भी कपिल देव से लेकर जवागल श्रीनाथ और मनोज प्रभाकर से लेकर जहीर खान जैसे उम्दा गेंदबाज रहे हैं, लेकिन ऐसा पहली बार है जब टीम इंडिया के पास जसप्रीत बुमराह के रूप में एक पेस बैटरी है. जसप्रीत बुमराह को क्रिकेट के कई दिग्गज मौजूदा दौर का सबसे धारदार तेज गेंदबाज मान चुके हैं और भुवनेश्वर कुमार के साथ उनकी जोड़ी सीमित ओवर क्रिकेट में विश्व की सबसे धारदार जोड़ी है. तेज गेंदबाजी में मोहम्मद शमी, इशांत शर्मा और उमेश यादव के तौर पर बेहतरीन विकल्प हैं.
भारतीय टीम प्रबंधन ने खलील और सिराज को भी एक मजबूत बेंच स्ट्रेंथ बनाने के संकेत दिये हैं. स्पिन गेंदबाजी में भारत के पास रविंद्र जाडेजा, कुलदीप यादव और यजुवेंद्र चहल हैं. साफ तौर पर 30 मई से लेकर 14 जुलाई तक, इंग्लैंड में होनेवाले विश्वकप 2019 के लिए टीम इंडिया की मजबूत दावेदारी होगी.
टोक्यो ओलिंपिक्स
वर्ष 2019 एक तरह से 2020 टोक्यो ओलिंपिक्स की तैयारियों का वर्ष भी होगा. इस पूरे वर्ष में ओलिंपिक्स में क्वालीफाई करने के मुकाबले लगातार खेले जायेंगे. वर्ष 2018 जाते-जाते पीवी सिंधु को वह खिताब दिला गया, जिसका भारतीय खेल दीवानों को लंबे अरसे से इंतजार था.
सिंधु ने वर्ल्ड टूर फाइनल्स का खिताब अपने नाम किया. यह स्पष्ट है कि ओलिंपिक्स में सिल्वर मैडल जीतने और वर्ल्ड टूर फाइनल्स खिताब के बाद सिंधु निस्संदेह भारतीय बैडमिंटन इतिहास की सबसे कामयाब खिलाड़ी बन गयी हैं.
इससे भी महत्वपूर्ण ये है कि उन्होंने अपने ऊपर लगनेवाले चोकर (फाइनल मैच तक पहुंच कर लगातार हारने के कारण) का का दाग भी साल 2018 के अंत तक हमेशा के लिए हटा दिया है.
इस वर्ष सिंधु अपने फॉर्म को बनाये रखना चाहेंगी ताकि 2020 टोक्यो ओलिंपिक्स में वे स्वर्ण पदक जीतने के लिए गंभीर कोशिशें कर सकें. सायना नेहवाल के लिए भी यह खिताबी दौड़ में बने रहने के लिए अहम होगा. लेकिन बैडमिंटन में सबसे अधिक निगाहें भारत के पुरुष खिलाडियों पर होंगी जिनके सामने बेहतर प्रदर्शन में की चुनौती होगी.
ओलिंपिक की तैयारी
भारतीय खेल मंत्रालय ने अगले तीन ओलिंपिक्स की तैयारियों के लिए दो स्तर पर काम करना शुरू किया है. पहला, नीचे के स्तर पर नयी प्रतिभाओं की तलाश और लगातार उनके हुनर को तराशने का काम. दूसरा, ऊपर के स्टार पर टॉप्स यानी टारगेट ओलिंपिक पोडियम स्कीम.
इसके पहले कदम की शुरुआत पुणे में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम्स 2019 में होगी. इसमें कामयाब प्रतिभाएं आने वाले वर्षों में टॉप्स में शामिल होने की दावेदार बनेंगी, जो आनेवाले वर्षों में भारत को ओलिंपिक्स में अधिक से अधिक पद दिला सकती हैं, लेकिन ओलिंपिक्स पदक तालिका में ऊपर होने के लिए, भारत को अभी भी लंबा सफर तय करना है. इसके लिए खेल और फिटनेस को लेकर एक नयी संस्कृति तैयार किये जाने की जरूरत है.
टेनिस मुकाबलों पर निगाहें
टेनिस में लिएंडर पेस और महेश भूपति दौर के बाद, ग्रैंड स्लैम मुकाबले में भारतीय दावेदारी के लिए जैसे विराम लग गया है. वहीं भारतीय महिला टेनिस की सबसे कामयाब खिलाड़ी सानिया मिर्जा भी निजी वजहों से फिलहाल सक्रिय खेल से दूर हैं. ऐसे में हर किसी की नजर टेनिस की नयी पौध पर होगी.
इस वर्ष का पहला ग्रैंड स्लैम, ऑस्ट्रेलियाई ओपन में निगाहें रोहन बोपन्ना और साकेत के युगल मुकाबले पर तो होंगी ही, साथ ही टेनिस के दीवानों को रामकुमार रामनाथन, सुमित नागपाल और प्रजनेश गुन्नेस्वरम जैसे युवाओं के अगले स्तर तक जाने का इंतजार भी रहेगा. इसी वर्ष फरवरी में कोलकाता में भारत और इटली के बीच डेविस कप क्वॉलिफायर्स पर हर किसी की निगाहें होंगी.
भारतीय खिलाड़ियों से उम्मीदें
जितना हम खेलेंगे, उतना हम फिट रहेंगे. इससे अधिक से अधिक खिलाड़ियों के सामने आने की संभावना भी बनी रहेगी. हालांकि, भारतीय खिलाड़ी अब भिन्न-भिन्न खेलो में भी पदक पा रहे हैं, लेकिन उन खेलो को और मजबूत करने की चुनौती है.
अगर इन नये खेलों में टाइगर वुड्स, लॉ बैरन और उसैन बोल्ट जैसे खिलाड़ी आगे आयेंगे, तो अधिक से अधिक युवा इन्हें हीरो मानकर खेल में करियर बनाने को आगे आयेंगे और नये मुकाम हासिल करेंगे. तीसरा, अब वह दौर आ गया है जब हम ओलिंपिक्स में सिर्फ शामिल होने के लिए नहीं, बल्कि जीतने का जज्बा लिये आगे बढ़ें. ये ‘बिग विन मेंटलिटी’ यानी बड़ी जीत की मानसिकता हमारे खिलाड़ियों को पोडियम तक ले जायेगी. चौथा, खेल संगठनो में बाबू राज को खत्म करके पेशेवर व्यवस्था बनाने की जरूरत है.
इस व्यवस्था में खिलाड़ी वीवीआइपी हो. इस दिशा में खेल मंत्री राज्यवर्धन राठौर ने कई अहम पहल किये हैं, लेकिन अभी इसे और मजबूती दिये जाने की जरूरत है. पांचवा, खेल को लेकर ऐसे वातावरण बनाना जरूरी है जहां बड़ी संख्या में कोच, फिजियो, न्यूट्रिशनिस्ट, मैनेजर और सपोर्ट स्टाफ हों. भारत में स्पोर्ट्स, स्किल इंडिया मिशन का अहम हिस्सा बन सकता है. 2019 इस बारे में मजबूत संकेत दे जायेगा, ऐसी उम्मीद है.
टीम इंडिया का बल्लेबाजी क्रम
वर्ष 2019 क्रिकेट विश्वकप का होगा. भारतीय क्रिकेट इतिहास में यह ऐसा पहला विश्वकप होगा जब चयनकर्ताओं के सामने यह चुनौती नहीं होगी कि किस तरह से 15 क्रिकेटरों की मुकम्मल टीम तैयार की जाये, जो टीम इंडिया की शान को इंग्लिश सरजमीं पर बनाये रख सकें.
पचास ओवर के क्रिकेट में ओपनिंग जोड़ी के तौर पर जहां रोहित शर्मा और शिखर धवन की जोड़ी विश्वविजेता साबित हो चुकी है, वहीं पृथ्वी शॉ और मयंक अग्रवाल नये विकल्प के तौर पर उभर रहे हैं. हां, लोकेश राहुल का मौजूदा फॉर्म भले ही चिंता का सबब बना हो, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं कि फॉर्म में रहने पर वे अपने आक्रमण से विपक्षी के पसीने छुड़ा सकते हैं. तीसरे नंबर पर टीम इंडिया के पास कप्तान विराट कोहली के तौर पर मौजूदा विश्व क्रिकेट का सबसे उम्दा बल्लेबाज मौजूद है.
एकदिवसीय क्रिकेट में चौथा नंबर जरूरी टीम इंडिया के लिए थोड़ी परेशानी उत्पन्न कर सकता है, लेकिन अंबाती रायुडू फिलहाल इस पोजीशन के लिए फ्रंट सीट पर हैं. इस पोजीशन के लिए भारत ने बीते साल सबसे अधिक प्रयोग किये हैं और इसके लिए मनीष पांडेय, श्रेयश अय्यर और केदार जाधव जैसे बल्लेबाज वेटिंग लिस्ट में होंगे. वैसे इंग्लैंड में स्थिति को देखते हुए अजिंक्या रहाणे जैसे बल्लेबाज को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. भारतीय टीम में मध्य क्रम एकमात्र वह पहलू है जिसे लेकर टीम मैनेजमेंट और चयनकर्ताओं को गंभीरता से विचार करना होगा.
भारतीय हॉकी टीम को बड़ी जीत का इंतजार
यह संयोग ही है कि 1975 में जब क्रिकेट में विश्वकप की शुरुआत हुई, इसी वर्ष भारत ने अंतिम बार हॉकी विश्वकप जीता था. तब से लेकर इस वर्ष अपने ही देश में हुए विश्वकप तक बार-बार उम्मीदें बंधीं और टूटीं.
लेकिन हॉकी में हम अपना पुराना रुतबा हासिल नहीं कर पाये. वर्ष 1975 में भारत हॉकी विश्व चैंपियन जरूर बना, लेकिन शायद ये दीया के बुझने से पहले की अंतिम दमदार लपटे थीं. एक दौर ऐसा था जब अंतरराष्ट्रीय खेल मानचित्र पर हॉकी भारत की पहचान थी, लेकिन 1975 से 1983 के बीच बीच भारतीय हॉकी ने अपनी पुरानी साख गंवा दी. ओलिंपिक्स में भी हमने अंतिम बार 1980 में स्वर्ण जीता था, उसके बाद हम अंतिम चार में भी नहीं पहुंच सके थे.
बीते वर्ष ओड़िशा ने विश्वकप हॉकी की मेजबानी की, जिसमें भारतीय टीम क्वाॅर्टर फाइनल्स में पहुेची थी. भारतीय हॉकी टीम में बीते साल से लगातार सुधार हो रहा है, लेकिन अपने स्वर्णिम अतीत को छूने के लिए उसे एक बड़ी जीत का इंतजार है. विश्वकप 2018 के सेमीफाइनल्स या फिर फाइनल्स में पहुंच कर इस ओर मजबूत कदम रखा जा सकता था. भारतीय हॉकी टीम का अगला टार्गेट 2020 में हाेनेवाला टोक्यो ओलिंपिक्स है और इस लिहाज से वर्ष 2019 टीम के लिए अहम होगा.
नीरज-हिमा पर टिकी रहेंगी निगाहें
जेवेलिन थ्रो में नीरज चोपड़ा के बेहतर प्रदर्शन ने ओलिंपिक्स में उनसे पदक की उम्मीद जगा दी है. इसके लिए इस वर्ष के अंत में होनेवाली विश्व चैंपियनशिप में उनके प्रदर्शन पर निगाहें टिकी रहेंगी. वहीं 400 मीटर दौड़ की जूनियर वर्ल्ड चैंपियन बन हिमा दास ने भी ओलिंपिक्स में पदक की आस जगा दी है.
भारतीय फुटबॉल की दिशा और दशा
दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल फुटबॉल की अगर बात करें तो यहां भारत और बाकी देशों के बीच लंबी खाई है. इस खाई को एकदम से पाटना नामुमकिन है, लेकिन 2007 में अंडर 17 फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी के बाद जमीनी स्तर पर भारत लगातार बेहतर करने के प्रयास कर रहा है. इसी वर्ष पांच जनवरी से शुरू हुए एएफसी एशिया कप फुटबॉल में भारत हिस्सा ले रहा है. भारतीय ग्रुप में थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन जैसी टीमें हैं. इस टूर्नामेंट में भारतीय फुटबॉल टीम का इन टीमों के खिलाफ प्रदर्शन भारतीय फुटबॉल की दिशा और दशा का बैरोमीटर साबित होगा.
टीम इंडिया और आइपीएल
वर्ष 2019 आम चुनाव का साल भी है और ऐसे में ये फैसला लिया जाना है कि इंडियन प्रीमियर लीग कब और कहां होगा. विश्वकप से पहले, फॉर्म और तैयारी के लिहाज से आइपीएल भारतीय टीम के लिए अहम होगा. भारत ही नहीं, दुनिया की टीमें एक तरफ जहां अपने खिलाडियों को अधिक से अधिक इस टूर्नामेंट के जरिये मैच के लिए फिट कराना चाहेंगी, वहीं दूसरी ओर चोट और थकान के जोखिम से भी बचना चाहेंगी.
इन दोनों के बीच ये टीमें किस तरह संतुलन बनाती हैं, इस पर दुनिया भर की नजर होगी. लेकिन तीसरी बार विश्वकप जीतने के लिए विराट कोहली और टीम प्रबंधन को गलतियों से बचना होगा, जो उन्होंने 2018 में किया. साल 2019 की शुरुआत में भारत ऑस्ट्रेलियाई जमीन पर, अपने बीते 72 साल के इतिहास में, पहली बार किसी टेस्ट सीरीज में लगभग जीत के करीब है. यह वो सीरीज है, जिसने विराट कोहली की कप्तानी को मजबूती दी है.
अगर भारत को वेस्ट इंडीज और ऑस्ट्रेलिया जैसी बीते दौर की सर्वकालीन मजबूत टीम बनना है तो ओपनिंग जोड़ी को सहेजने पर खासा ध्यान देना होगा. वर्ष 2018 में भारत के पास दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में जीत हासिल करने का बेहतरीन मौका था. इंग्लैंड और दक्षिण अफ्रीका में ऐसा नहीं हो सका, क्योंकि भारत ने टीम चयन में बड़ी गलतियां की. साल 2018 के विपरीत 2019 -20 में ये बड़ी टीमें भारत आयेंगी. जाहिर है कि बीते साल के मुकाबले इस साल चुनौती आसान रहेगी, लेकिन ये भविष्य की टीम को मांजने का मौका होगा, जिससे बाद के विदेश दौरे की तैयारी की जा सके.
बॉक्सिंग के नये भार वर्ग में
खेलने की चुनौती
भारतीय बॉक्सरों के सामने इस वर्ष सबसे बड़ी चुनौती ओलिंपिक्स के लिए नये भार वर्ग में खुद को ढालने की होगी. 48 किलो भार वर्ग में छठी बार विश्व चैंपियन बनीं एमसी मैरी कॉम को टोक्यो में पदक जीतने के लिए 51 किलो भार वर्ग में खेलना होगा. टोक्यो ओलिंपिक में यही भार वर्ग शामिल किया गया है. मैरी कॉम के साथ ही कुछ अन्य पुरुष बॉक्सरों को भी अपने भार वर्ग में बदलाव करना होगा. इस बार ओलिंपिक्स में पुरुषों की 10 की जगह आठ और महिलाओं की तीन की जगह पांच भार वर्ग ही शामिल किये गये हैं.
इन खेलों पर रहेगी नजर
रेसलिंग, वेटलिफ्टिंग, एथलेटिक्स, शूटिंग आदि खेलों में भी इस वर्ष क्वाॅलीफाइंग मुकाबले होंगे, जिसमें बेहतर प्रदर्शन कर भारतीय एथलिट टोक्यो 2020 के लिए अपना टिकट पक्का करना चाहेंगे.
