रामकिशोर साहू
न मद, न मोह न माल. अर्थात जिसमें न अहंकार हो, न नाशवान शरीर व पदार्थों को अपना सर्वस्व समझे और न माल हो- इसका साक्षात स्वरूप मदन मोहन मालवीय हैं. यथा नाम तथा गुण की उक्ति को चरितार्थ करनेवाले इस महामानव को लोग महामना के नाम से जानते हैं. कथावाचक पिता ब्रजनाथ व्यास मालवा से आकर प्रयाग में बसे थे, जहां मदन मोहन मालवीय का जन्म आज ही के दिन 25 दिसंबर 1861 में हुआ था. बीए पास करने के बाद गवर्नमेंट हाई स्कूल में शिक्षक की नौकरी मिली. अध्यापन के क्रम में छात्रों में उत्तम चरित्र गढ़ने को इन्होंने प्राथमिकता दी. मालवीय जी की प्रबल सोच यह थी की छात्रों में नैतिकता के गुण भर कर हम अतीत को वर्तमान में ला सकते हैं. शिक्षा यानी जीवन की सीख, छात्र यानी जिज्ञासु बालक और शिक्षक यानी बिल्कुल सच्चा मार्गदर्शक हम बना और बन सकें. तभी उन्नत राष्ट्र का निर्माण संभव है.
मालवीय जी बहुत गरीबी में पढ़े थे. उनकी मां मूना देवी के पास एक चांदी का कड़ा था, जिसे वह बंधक रख कर स्कूल की फीस देती थी. पिता कथा वाचन से प्राप्त एक-एक पैसे जोड़ कर रखते थे और बंधक कड़े को छुड़ाते रहते थे. मालवीय जी हमेशा सोचते थे कि हमारे देश में एक विशाल विश्वविद्यालय हो, जहां हमारे बच्चे आसानी से पढ़ सकें. इन्हें विदेश न जाना पड़े.
पाश्चात्य सभ्यता उन्हें अखरती थी. इन्होंने बहुत चिंतन-मनन किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि बनारस में एक हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की जाये. इसको लेकर उन्होंने संकल्प लिया और इस संकल्प को पूरा करने के लिए दिन-रात काम किया. काशी नरेश मदन मोहन मालवीय से प्रभावित थे. उन्होंने विश्वविद्यालय के लिए भूमि दान किया. दिनांक 04 फरवरी 1916 को बसंत पंचमी के दिन बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रखी. अपने मजबूत संकल्प को मूर्त्त रूप देने के लिए वे गले में भिक्षा की झोली बांध कर संपूर्ण देश के दौरे पर निकल पड़े भूख, प्यास, नींद सब गायब. कायम रहा तो सिर्फ भिक्षाटन. गरीबों, सेठ, साहूकारों, राजाओं के यहां जाकर भिक्षा की झोली अनुनय के साथ फैला दी. इनका संकल्प और समर्पण रंग लाया और थोड़े ही दिनों में इन्होंने एक करोड़ रुपये एकत्र कर लिया. विश्वविद्यालय 1919 में बन कर तैयार हो गया. 1939 तक मालवीय जी कुलपति रह कर 20 वर्षों तक यशस्वी कार्य किये. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भी इस विश्वविद्यालय को अपनी उल्लेखनीय सेवाएं दी. राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी ख्याति फैल गयी. आज यहां आर्ट्स, साइंस, इंजीनियरिंग एवं टेक्नोलॉजी, आयुर्वेद आदि क्षेत्रों में छात्र अध्ययनरत हैं.
भारत रत्न, महान शिक्षाशास्त्री, विरल कर्मयोगी मदन मोहन मालवीय को महात्मा गांधी नवरत्न कहते थे. 12 नवंबर 1946 को इनका देहावसान हुआ. इस आदर्श भारतीय पुरुष को हमें हमेशा याद रखना चाहिए.
(लेखक राष्ट्रपति से पुरस्कृत शिक्षक हैं)