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गयाधाम में ही श्राद्ध क्यों ? जानें और किन जगहों पर है श्राद्ध का महत्व
दुनिया में जिनका कोई नहीं उनके लिए भी यहां होता है सामूहिक पिंडदान नीरज कुमार आज से पितृपक्ष आरंभ हो रहा है. इसके साथ ही पितरों के तर्पण का 15 दिवसीय कर्मकांड भी शुरू हो गया है. क्षधाम अर्थात गयाजी में 15 दिवसीय पितृपक्ष के दौरान देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए शांति […]
दुनिया में जिनका कोई नहीं उनके लिए भी यहां होता है सामूहिक पिंडदान
नीरज कुमार
आज से पितृपक्ष आरंभ हो रहा है. इसके साथ ही पितरों के तर्पण का 15 दिवसीय कर्मकांड भी शुरू हो गया है. क्षधाम अर्थात गयाजी में 15 दिवसीय पितृपक्ष के दौरान देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु अपने पूर्वजों के लिए शांति व मोक्ष प्राप्ति की कामना के साथ ही अपने कुल में सुख-समृद्धि के लिए श्राद्धकर्म व पिंडदान करते हैं, पर उनका क्या, जिनका कोई नहीं यानी जिनकी मृत्यु के बाद परिवार में रोनेवाला भी नहीं बचा हो, ऐसे लोग, जिनके पीछे बचे परिजनों को पिंडदान के बारे में पता ही नहीं हो, वे लोग जो अकाल मौत के शिकार हो गये हों, पर पीड़ित परिजन शारीरिक व आर्थिक कारणों से पिंडदान के लायक नहीं रह गये हों, पर इनकी आत्माओं को भी शांति मिले, इन्हें भी मोक्ष प्राप्त हो,
इसके लिए गया में सूर्यकुंड क्षेत्र के रहनेवाले समाजसेवी स्वर्गीय सुरेश नारायण ने वर्ष 1999 में रामानुजाचार्य मठ के महंत आचार्य श्री राघवाचार्य जी के निर्देशन में सामूहिक पिंडदान की परंपरा शुरू की थी. देश-विदेश में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं व हादसों में मरनेवालों के लिए उन्होंने स्वयं पुत्रवत पिंडदान करना शुरू किया था. उनकी मान्यता थी कि इसमें जाति, धर्म व संप्रदाय भी आड़े नहीं आते. इसी परोपकारी उद्देश्य के साथ उन्होंने हर बार एक वर्ष के दौरान दुनियाभर में मृत्यु को प्राप्त लोगों के हित में पिंडदान करने के पुनीत अभियान की शुरुआत की थी.
अपने जीवन के अंतिम वर्ष तकसुरेश नारायण अपने निजी खर्च से इस परंपरा का निर्वहन करते मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी, श्रद्धा व सम्मानबोध का परिचय देते रहे. उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र व सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता चंदन कुमार सिंह ने इस पवित्र परंपरा का न केवल निर्वहन किया, बल्कि उसके दायरे को और भी विस्तार दिया है. उनके पिता जहां सामूहिक पिंडदान करते थे, उसी जगह पर वर्ष 2014 से चंदन कुमार भी जाने-अनजाने, परिचित-अपरिचित व अपने-पराये, सबके लिए पिंडदान किये जा रहे हैं.
इन जगहों पर भी श्राद्ध का है महत्व
वैसे तो पितृ पक्ष में श्राद्ध के लिए सबसे बेहतर गया जी को माना जाता है, मगर देश में कई और ऐसे स्थान हैं, जहां श्राद्ध करने की महिमा बतायी जाती है.
प्रयाग, उत्तर प्रदेश
तीर्थों में प्रयाग सबसे अच्छा माना जाता है. यहां त्रिवेणी संगम के पास निश्चित स्थान पर मुंडन होता है. विधवा स्त्रियां भी मुंडन कराती हैं. यहां के घाटों पर हमेशा ही श्राद्ध कर्म होते दिख जाते हैं. त्रिवेणी तट पर पक्का घाट नहीं है. वहां पंडे अपनी चौकियां तट पर और जल के भीतर भी लगाये रहते हैं.
ब्रह्मकपाल, उत्तराखंड
ब्रह्मकपाल श्राद्ध कर्म के लिए पवित्र तीर्थ माना जाता है. यह बद्रीनाथ धाम के पास स्थित है. धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में श्राद्ध कर्म करने के बाद कहीं भी पितृ श्राद्ध और पिंडदान करने की जरूरत नहीं होती. इस तीर्थ के पास ही अलकनंदा नदी बहती है. पांडवों ने भी यहां पिंडदान किया था.
लोहागर, राजस्थान
श्राद्ध कर्म के लिए एक तीर्थ ऐसा भी है, जिसकी रक्षा स्वयं ब्रह्माजी करते हैं. वह राजस्थान का प्रसिद्ध तीर्थ स्थल लोहागर है. यह पिंडदान और अस्थि विसर्जन के लिए मशहूर है. जिस व्यक्ति का श्राद्ध यहां किया जाता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यहां का मुख्य तीर्थ पर्वत से निकलने वाली सात धाराएं हैं.
मेघंकर, महाराष्ट्र
मेघंकर तीर्थ महाराष्ट्र के पास बसे खामगांव से लगभग 75 किमी दूरी पर है. इस तीर्थ का वर्णन ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण आदि में आता है. यह पैनगंगा नदी के तट पर है. मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में ब्रह्माजी के यज्ञ में प्रणीता पात्र से इस नदी की उत्पत्ति हुई. पश्चिम वाहिनी होने के कारण यह नदी और भी पुण्यपद मानी जाती है.
सिद्धनाथ, मध्य प्रदेश
सिद्धनाथ तीर्थ उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे है. यहां एक विशाल पवित्र वट वृक्ष है, इसे सिद्धवट कहते हैं. मान्यता है कि इस वट वृक्ष को माता पार्वती ने अपने हाथों से लगाया था. हर मास की कृष्ण चतुर्दशी तथा श्राद्ध पक्ष में यहां दूर-दूर से लोग पिंडदान व तर्पण करने आते हैं. कहते हैं कि यहां हुआ श्राद्ध सिद्ध योगियों को ही नसीब होता है.
पिंडारक ,गुजरात)
इस क्षेत्र का प्राचीन नाम पिंडारक या पिंडतारक है. यह द्वारिका से लगभग 30 किमी दूरी पर है. यहां एक सरोवर है, जिसमें यात्री श्राद्ध करके दिये हुए पिंड सरोवर में डाल देते हैं. वे पिंड सरोवर में डूबते नहीं, बल्कि तैरते रहते हैं. यहां महर्षि दुर्वासा का आश्रम था. महाभारत युद्ध के बाद मृत बांधवों का श्राद्ध करने आये पांडवों ने लोहे का एक पिंड बनाया और जब वह पिंड भी जल पर तैर गया, तब उन्हें इस बात का विश्वास हुआ कि उनके बंधु-बांधव मुक्त हो गये हैं.
लक्ष्मणबाण, कर्नाटक
भगवान श्रीराम ने पुत्रधर्म का पालन करते हुए यहां अपने पिता राजा दशरथ का श्राद्ध किया था. यह स्थान है- लक्ष्मणबाण. सीताहरण के बाद श्रीराम व लक्ष्मण माल्यवान पर्वत पर रुके थे. वर्षा ऋतु के चार महीने दोनों ने यहीं साथ में बिताये थे. इस पर्वत के एक भाग का नाम प्रवर्षणगिरि है. यहां के मंदिर में राम, लक्ष्मण और सीता की मूर्तियां हैं. यह मंदिर एक शिला में गुफा बनाकर बनाया गया है. इसमें सप्तर्षियों की भी मूर्तियां हैं.
डॉ कृष्णदेव मिश्र, अध्यक्ष, हिंदी विभाग, स्वामी धरणीधर कॉलेज, परैया, गया
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में तीन एषणाएं अत्यंत प्रबल होती हैं. पुत्रेषणा, वित्तेषणा व लोकेषणा अर्थात उनकी शेष परंपरा कायम रखने के लिए संतान की कामना, जीवन में सुख साधनों के लिए धन की कामना व लोक में ख्याति की कामना, किंतु इन सब में पुत्रेषणा सर्वाधिक प्रबल है, क्योंकि जो संपन्न नहीं हैं, जो अति दरिद्र हैं, वैसे क्षुधार्त और तृर्षात लोग भी निस्संतान रहना नहीं चाहते. ऐसे लोग भी संतान प्राप्ति के बाद अतिशय प्रफुल्लित होते हैं.
आयु: पुत्राण यश: स्वर्ग कीर्ति पुष्टिं बलं श्रियम्
पसून सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात पितृ पूजनात.
|| मार्कंडेय पुराण ||
तात्पर्य यह है कि पितृ पूजन अर्थात श्राद्ध करने से संतान को उपर्युक्त सारी चीजें प्राप्त होती हैं. उपर्युक्त श्राद्ध कर्म के लिए गया क्षेत्र की महिमा अत्यंत महीयसी है, क्योंकि सर्वप्रथम तो संपूर्ण गया क्षेत्र पंचकोश अर्थात 15 वर्ग किलोमीटर की परिधि में कोई ऐसा क्षेत्र नहीं है, जो मोक्षप्रद तीर्थ नहीं है, यथा-
गयायां नहि तत्स्थानै यत्र तीर्थां न विद्यते.
|| गरुड़ पुराण ||
भारतीय आर्ष ग्रंथों में यह भी बतलाया गया है कि सृष्टि के सारे तीर्थ प्रतिदिन एक बार फल्गु तीर्थ अर्थात गयाधाम में अवश्य आते हैं. पृथ्वी पर गया सर्वाधिक पुण्यमय तीर्थ है. उसमें भी गया सिर और उसमें भी फल्गु उसका मुख भाग है. यथा-
पृथिव्यां यानि तीर्थानि ये समुद्रा: सारांसि च
फल्गुतीर्थ गमिस्यन्ति वारमेकं दिनेदिने.
पृथिव्यां च गया पुण्या गयायां च गयाशिर:
श्रेष्ठं तथा फल्गुतीर्थं तन्मुखं च सुरस्य हि.
|| गरुड़ पुराण ||
गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी समेत सारे संसर्गज पाप नष्ट हो जाते हैं. इसे इस तरह कहा गया है –
ब्रह्महत्या सुरापानं स्तेयं गुर्वंगनागमम्
पापं तत्संगजं सर्वं गया श्राद्धाद्विनश्यति.
यही कारण है कि पितृपक्ष के अवसर पर सारे पितर गया क्षेत्र में पक्षभर इस आशा से भ्रमण करते हैं कि उनकी संतान परंपरा का कोई व्यक्ति गया आयेगा और श्राद्ध तथा तर्पण करेगा, तो उन्हें तृप्ति और मुक्ति, दोनों का लाभ मिलेगा. शास्त्रीय मान्यता है कि गया तीर्थ के लिए संतान के प्रस्थान करने मात्र से ही पितरों के
लिए स्वर्ग का सोपान निर्मित होने लगता है. श्राद्ध और तर्पण के बाद का तो कहना ही नहीं है. वे परमधाम को प्राप्त करते हैं. यही कारण है कि गयाधाम में अपनी संतान को देख कर पितर अत्यंत प्रफुल्लित होकर उत्सव मनाते हैं कि यहां आया हुआ संतान पैरों से भी फल्गु का जल स्पर्श करके हमें निश्चित ही कुछ-न-कुछ प्रदान कर देगा.
गया प्राप्तं सुतं दृष्टवा पितृणामुत्सवो भवेत्
पद्मयामपि जलं स्पष्ट्वा अस्मभ्यै किल दस्यति.
|| गरुड़ पुराण ||
पितृपक्ष पर्यंत गया में प्रतीक्षा करने के उपरांत जब पितृगण अपने किसी संतान का पिंड तर्पणादि प्राप्त नहीं कर पाते, तो वे अपने संतान मोह को धिक्कारते हुए लौट जाते हैं. एकमात्र गयातीर्थ की यात्रा सृष्टि के समस्त तीर्थों की यात्रा का फल देती है तथा यहां किया गया श्राद्ध सैकड़ों अश्वमेघ यज्ञों का फल प्रदान करता है. अत: गया क्षेत्र में श्राद्ध अतिशय महत्वपूर्ण है. संतान का पुत्रत्व तीन ही कर्मों से सफल होता है.
1. जीवनभर आज्ञा का पालन 2. मृत्यु तिथि (क्षयाह) के अवसर पर बहुत सारे लोगों को भोजन कराना और 3. गया श्राद्ध
जीवितो वाक्य करणात् क्षयाहे भूरि भोजनात्
गयायां पिंडदानाच्य त्रिभि: पुत्रस्य पुत्रता.
गया ही ऐसा तीर्थ है, जहां पितरों के श्राद्ध करने से 10 पीढ़ियों का उद्धार हो जाता है तथा मनुष्य देव ऋण, पितृ ऋण व ऋषि ऋण, तीनों से मुक्त हो जाता है. गया मोक्षधाम है. अवतारी पुरुषों ने भी गयाधाम में श्राद्ध कर इस पुण्यभूमि की महिमा प्रतिपादित की है.
मोबाइल एप बनेगा गयाजी में सहारा
गया में पितृपक्ष को राजकीय मेला घोषित किये जाने के बाद मेले का रूप-स्वरूप बदला है. दूर-दराज के मुल्कों से यहां पहुंचनेवालों को गया के बारे में तरह-तरह की जानकारियां जुटाने की जरूरत पड़ती है, इसमें दो राय नहीं. इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए पितृपक्ष में गया श्राद्ध के इच्छुक तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए एक मोबाइल एप (Pind Dan GAYA) भी जारी किया गया है. वर्ष 2016 से यह एप काम कर रहा है. इस बार तीसरा वर्ष होगा, जब मोबाइल यूजर्स पितृपक्ष मेले के दौरान इसका लाभ ले सकेंगे. इस बीच, इस एप पर इनफॉरमेशन का दायरा भी बढ़ गया है. साथ ही इसकी गुणवत्ता में भी सुधार किया गया है. इसे यूजर्स फ्रेंडली बनाने की कोशिश की गयी है.
इस मोबाइल एप के जरिये पिंडदान से संबंधित तमाम जानकारियां हासिल की जा सकती हैं. यहां पिलग्रीमेज साइट्स (तीर्थस्थल), वेदियों के नाम, हर रोज किये जाने वाले श्राद्धकर्म की विस्तृत जानकारी, पिंडदान व तर्पण के तौर-तरीके, आवासन, पंडाजी की सूची, शहरी परिवहन के लिए तय रूट व भाड़े की जानकारी, रेलवे टाइमटेबल, हेल्थ कैंप, पुलिस कैंप, ऐतिहासिक, पुरातात्विक व सांस्कृतिक महत्व के क्षेत्रों की जानकारी, प्रशासनिक व्यवस्था, टूर पैकेज, आपदा प्रबंधन (बचाव), नक्शा, डोनेशन व कंप्लेन तथा फीडबैक आदि के लिए यह एप काफी उपयोगी है.
दूसरे धर्मों में पूर्वजों की पूजा के अनुष्ठान
हिंदुओं में ही नहीं, दुनिया के दूसरे धर्मों में भी पूर्वजों की याद और उनकी आत्मा की शांति के लिए अनुष्ठान किये जाने का उल्लेख मिलता है. आइए, कुछ ऐसे अनुष्ठानों के बारे में जानते हैं.
शबे बरात मुस्लिम धर्मावलंबियों द्वारा मनाया जाता है. हालांकि इस पर्व का मकसद है सालभर किये गये गुनाहों की माफी मांगना, मगर इस रात चलने वाले अनुष्ठानों में लोग अपने साथ-साथ अपने उन पूर्वजों के लिए मगफिरत (मोक्ष) की दुआ मांगते हैं, जिनका इंतकाल हो गया है. पूरी रात लोग गुनाह की तौबा करते हैं और इबादत और तिलावत का दौर चलता है.
इस्टर ईसाई धर्मावलंबियों का त्योहार है. वैसे तो यह त्योहार सूली पर चढ़ाये जाने के 40 दिन बाद ईशु के फिर से जिंदा होने की खुशी में मनाया जाता है, मगर इस मौके पर ईसाई लोग अपने पूर्वजों को भी याद करते हैं. उनके कब्र की साफ-सफाई कर उस पर फूल चढ़ाते हैं, क्योंकि उनका मानना है सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं, वह एक रोज फिर से जिंदा होता है.
वरोज पारसियों का काफी महत्वपूर्ण त्योहार है. यह नये साल का अवसर माना जाता है, मगर इस त्योहार के लिए पांच दिन पहले से पारसी अपने पूर्वजों को याद करने में जुट जाते हैं. साल शुरू होने से पहले वाले पूरे पांच दिनों तक एक ही काम होता है, पूर्वजों को याद करना और गाथा धर्मग्रंथ का पाठ. उनका यह आयोजन हिंदुओं के श्राद्ध के जैसा ही होता है.
तीर्थयात्रियों के लिए वर्ष 2018 के टूर पैकेज
पितृपक्ष में गया आने वालों के लिए सरकार ने कई टूर पैकेज तैयार किये हैं. पैकेज-ए : एक दिन में पटना-पुनपुन-गया-पटना के लिए प्रति व्यक्ति शुल्क 10 हजार, दो के लिए साढ़े 10 हजार और चार के लिए 18 हजार रुपये रखा गया है.
पैकेज-बी : एक रात, दो दिन में पटना-पुनपुन-गया-बोधगया-राजगीर-नालंदा-पटना के लिए प्रति व्यक्ति शुल्क 12 हजार, दो के लिए साढ़े 15 हजार व चार के लिए 24 हजार 800 रुपये रखा गया है.
पैकेज-सी : एक दिन में गया-से-गया प्रति व्यक्ति शुल्क सात हजार, दो के लिए 10 हजार व चार व्यक्ति के लिए 15 हजार रुपये होगा.
पैकेज-डी : एक रात, दो दिन में गया-से-गया प्रति व्यक्ति शुल्क साढ़े 11 हजार, दो व्यक्ति के लिए 15 हजार व चार के लिए साढ़े 22 हजार रुपये होगा.
पैकेज-ई : एक रात, दो दिन में गया-बोधगया-राजगीर-नालंदा-गया प्रति व्यक्ति शुल्क 11 हजार 200, दो के लिए साढ़े 15 हजार व चार व्यक्ति के लिए साढ़े 24 हजार रुपये देय होगा.
पैकेज में दी जाने वाली सुविधाएं
यात्रियों के लिए ट्रांसपोर्टेशन, आवासन, भोजन व पूजन सामग्री के अतिरिक्त पंडा व पुरोहित का दक्षिणा भी शामिल है.
सांस्कृतिक आदान-प्रदान से भी जुड़ा है प्रत्यक्ष पिंडदान का भाव
धार्मिक व संस्कृतिक कार्यक्रमों के तहत कर्मकांड एक प्रत्यक्ष प्रक्रिया हैं. यह सीधे तौर पर दर्शन व स्पर्श से जुड़ा है. इसके तहत सांस्कृतिक आदान-प्रदान का मामला भी महत्वपूर्ण है. वहीं, तकनीकी से प्रेरित लोग देश-दुनिया के कई धर्मस्थलों व तीर्थस्थलों पर ऑनलाइन पूजा-पाठ, दानोपदान, अर्पण-तर्पण व पिंडदान आदि की पहल कर रहे हैं. इसके विपरीत गया में अब भी प्रत्यक्ष पिंडदान ज्यादा होते हैं.
ऐसा करने वाले लोग ऑनलाइन पिंडदान के विरोध में हैं. उनकी मान्यता है कि मृत्यु के उपरांत मोज्ञ-प्राप्ति के लिए होने वाला पिंडदान बर्थडे और मैरिज सेरेमनी पर भेजे जानेवाले शुभकामना संदेशों से पृथक है. उनके लिए यह भावनाओं का प्रश्न है, आस्था का सवाल है. वैसे, इस समूह के लोग यह अवश्य मानते हैं कि जो लोग शारीरिक तौर पर गयाजी तक पधारने में सक्षम नहीं हैं, उनके लिए ऑनलाइन पिंडदान सहायक हो सकता है. बहरहाल, ऑनलाइन पिंडदान को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य सरकार भी प्रचार-प्रसार में जुटी है.
ऑनलाइन पिंडदान पर लोगों की राय
इंटरनेट व सोशल मीडिया को धर्म व कर्मकांड से जोड़ पाना संभव नहीं है. इसका सीधा संबंध हमारी आस्था, श्रद्धा व आत्मिक अनुभूति से है. ऑनलाइन पिंडदान गलत कदम है. इससे गया या किसी भी दूसरे धर्मस्थल-तीर्थस्थल पर रचे-बसे लोगों की आजीविका व वहां की सामाजिक-सांस्कृतिक संपन्नता भी प्रभावित होगी.
गजाधर लाल पाठक, सचिव, विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति.
ऑनलाइन पिंडदान बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है. जब तक पिंड, पिंडवेदी का स्पर्श, फल्गु के जल व भगवान विष्णु के चरण का स्पर्श नहीं होगा, तब तक गयाश्राद्ध सुफल नहीं हो सकता. गयाजी को संस्कृतियों का संगमस्थल कहा गया है. जिसको जब जो मन कर रहा है, आजकल अपने राग में डफली बजाने लग रहा है. ये सब बेकार की बातें हैं.
कन्हैया लाल मिश्र, अध्यक्ष विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति.
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