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जानिए क्या है गुरु तत्व

डॉ श्रीपति त्रिपाठी शास्त्र वाक्य में गुरु को ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार्य है. गुरु को ब्रह्मा इसलिए कहा गया, क्योंकि वह शिष्य को गढ़ता है, उसे नव जन्म देता है. गुरु, विष्णु भी है, क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है. गुरु साक्षात महेश्वर भी है, क्योंकि […]

डॉ श्रीपति त्रिपाठी
शास्त्र वाक्य में गुरु को ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार्य है. गुरु को ब्रह्मा इसलिए कहा गया, क्योंकि वह शिष्य को गढ़ता है, उसे नव जन्म देता है. गुरु, विष्णु भी है, क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है. गुरु साक्षात महेश्वर भी है, क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है.
संत कबीर कहते हैं- ‘हरि रुठे गुरु ठौर है, गुरु रुठे नहिं ठौर ॥’
अर्थात भगवान के रूठने पर तो गुरु की शरण रक्षा कर सकती है, किंतु गुरु के रूठने पर कहीं भी शरण मिलना संभव नहीं. जिसे ब्राह्मणों ने आचार्य, बौद्धों ने कल्याण मित्र, जैनों ने तीर्थंकर और मुनि, नाथों तथा वैष्णव संतों और बौद्ध सिद्धों ने उपास्य सद्गुरु कहा है, उस श्रीगुरु से उपनिषद की तीनों अग्नियां भी थर-थर कांपती हैं. त्रैलोक्य पति भी गुरु का गुणगान करते हैं. ऐसे गुरु के रूठने पर कहीं भी ठौर नहीं.
कबीरदास जी कहते हैं-
सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।
लोचन अनंत, अनंत दिखावण हार।।
अर्थात सद्गुरु की महिमा अपरम्पार है. उन्होंने शिष्य पर अनंत उपकार किये हैं. उसने विषय-वासनाओं से बंद शिष्य की बंद आंखों को ज्ञानचक्षु द्वारा खोलकर उसे शांत ही नहीं, अनंत तत्व ब्रह्म का दर्शन भी कराया है.
आगे इसी प्रसंग में वे लिखते हैं-
भली भई जुगुर मिल्या, नहीं तर होती हांणि।
दीपक दिष्टि पतंग ज्यूं, पड़ता पूरी जांणि ।।
अर्थात, अच्छा हुआ कि सद्गुरु मिल गये, वरना बड़ा अहित होता. जैसे सामान्य जन पतंगे के समान माया की चमक-दमक में पड़कर नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही मेरा भी नाश हो जाता. जैसे पतंगा दीपक को पूर्ण समझ लेता है, सामान्यजन माया को पूर्ण समझ उस पर खुद को न्योछावर कर देते हैं, वैसी ही दशा मेरी भी होती! अतः सद्गुरु की महिमा तो ब्रह्मा, विष्णु और महेश भी गाते हैं, मुझ मानुष की बिसात ही क्या. ऐसे परम गुरु सदाशिव को नमन!

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