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प्रेम में क्यों मिलता है बार-बार धोखा

दैवज्ञ श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषविद् कुं डली में सप्तम भाव प्रेम व विवाह का प्रतिनिधि है, लेकिन ग्रहों की विशिष्ट परिस्थितियों में यह मारक भाव भी माना जाता है. इसका कारक ग्रह शुक्र है. लग्न को देखनेवाला यह भाव किसी भी तरह के साथी के बारे में बताता है. जीवनसाथी, करीबी दोस्त, सुंदरता, लावण्य जैसे विषय […]

दैवज्ञ श्रीपति त्रिपाठी, ज्योतिषविद्
कुं डली में सप्तम भाव प्रेम व विवाह का प्रतिनिधि है, लेकिन ग्रहों की विशिष्ट परिस्थितियों में यह मारक भाव भी माना जाता है. इसका कारक ग्रह शुक्र है. लग्न को देखनेवाला यह भाव किसी भी तरह के साथी के बारे में बताता है. जीवनसाथी, करीबी दोस्त, सुंदरता, लावण्य जैसे विषय इसी भाव से जुड़े हुए हैं.
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी को प्यार में बार-बार धोखा मिले, तो समझना चाहिए कि उसकी कुंडली में सप्तम भाव में ग्रहों की स्थिति, ग्रह सह-संबंध, दृष्टि ठीक नहीं है.
जब जन्म कुंडली में सप्तम भाव राहु, केतू, शनि, मंगल आदि पाप ग्रहों से पीड़ित हों और किसी भी अच्छे ग्रह का उसे सहारा न हो, तो ऐसे में प्रेम में छल मिलता है. ऐसे जातकों के लिए अंतर व प्रत्यंतर में राहु आने पर प्रेम के योग विशेष रूप से बनते हैं. ऐसे प्रेम संबंध कभी भी स्थायी व सुखद नहीं रहते और उसे प्यार में हमेशा चोट खानी पड़ती है.
दरअसल, शनि, राहु-केतू व मंगल ग्रह शुभ नहीं माने जाते. प्यार-प्रेम के मामले में तो ये अलगाव पैदा करनेवाले होते हैं. विच्छेदक ग्रह हैं. प्यार ही नहीं, जिस भी भाव में ये मौजूद होते हैं, वहां पर इनकी दृष्टि पड़ते ही परिणाम सकारात्मक की बजाय नकारात्मक मिलने लगते हैं.
हालांकि क्षणिक तौर पर इन अस्थायी संबंधों का भोग वह करता है, लेकिन उसे संतुष्टि नहीं मिलती. जिन जातकों पर इन ग्रहों की दृष्टि होती है, उसके जीवन में प्रेम टूट कर आता है, किंतु वह उस भोग से संतुष्ट होने की बजाय समस्याओं में घिरता चला जाता है.
दांपत्य जीवन सुख से गुजरे, यह आस सभी की रहती है, लेकिन जन्म समय पर पड़ने पर वाले ग्रहों का प्रभाव इस पर भी पड़ता है. इनमें से भी कुछ ग्रह ऐसे होते हैं, जिनके प्रभाव से दांपत्य जीवन में खटास आ जाती है और जीवन नरक-सा महसूस होने लगता है.
यह भाव जीवनसाथी का भाव माना गया है. सप्तम भाव का स्वामी यदि षष्टम, अष्टम या दशम भाव में गया हो, तो दांपत्य जीवन बाधा का कारक बनता है. सप्तमेश केतू के साथ होने पर भी दांपत्य जीवन में कहीं न कहीं बाधा का कारण बनता है. सप्तमेश पाप ग्रहों के साथ दृष्टि संबंध या युति करे, तब भी सुख नहीं मिलता. सप्तमेश मृत अवस्था में हो या वक्री हो या अस्त हो तब भी दांपत्य जीवन में बाधा का कारण बनता है.
ग्रहों के आपसी तालमेल या गण का न मिलना भी दांपत्य सुख में खटास ला देता है. एक-दूसरे के लग्न में मैत्री की बाधाएं बनती हैं. किसी भी सूरत में षडाष्‍टक योग नहीं होना चाहिए. कभी-कभी शनि-चंद्र साथ होकर सप्तम भाव में होने पर भी दांपत्य में बाधा का कारण बनते हैं.
सप्तमेश का रत्न कभी नहीं पहनना चाहिए, नहीं तो मारक भी बन जाता है. सप्तमेश दूषित होने पर दान करना श्रेष्ठ माना गया है. सूर्य-राहु सप्तम भाव में न हों, न ही सप्तमेश के साथ होना चाहिए. सप्तमेश नवांश में नीच का या शत्रु ग्रहों से युक्त हो या शनि मंगल से युक्त हो तब भी दांपत्य जीवन कष्टप्रद होता है. अत: उक्त ग्रहों से संबंध स्थिति जन्म पत्रिका में न हो, तो दांपत्य जीवन सुखमय रहेगा.

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