आशीष खोवाल, चार्टर्ड एकाउंटेंट
सदस्य, झारखंड जीएसटी एडवाइजरी कमेटी
पिछले वर्ष जुलाई से ही पूरे देश में जीएसटी के लागू हो जाने के बाद वस्तुओं की आपूर्ति के लिए एक राज्य से दूसरे राज्य में ट्रांसपोर्ट परमिट के स्वरूप में भी बदलाव किया गया है. अब इसे नये स्वरूप में ई-वे बिल कहा जाता है यानी इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप में परमिट बनवाना. पिछले दिनों हुई जीएसटी काउंसिल की बैठक में यह घोषणा की गयी है कि ई-वे बिल को एक फरवरी 2018 से लागू हो जायेगा. सरकार इस प्रक्रिया में हो रही चोरी को रोकते हुए राजस्व को बढ़ाना चाहती है.
क्या है ई-वे बिल
किसी भी उत्पाद को राज्य के अंदर या बाहर ले जाने के लिए पहले ट्रांसपोर्ट परमिट की जरूरत होती थी. लेकिन अब जीएसटी लागू हो जाने के बाद सरकार ने ट्रांसपोर्ट परमिट को इलेक्ट्रॉनिक स्वरूप प्रदान किया है.
इसे ई-वे बिल के नाम से जाना जाता है. सामानों की ढुलाई एक राज्य से दूसरे राज्य में हो या एक ही राज्य के अंदर एक स्थान से दूसरे स्थान पर हो, तो पहले सरकार को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन यानी बताना होगा और इसके लिए ई-वे बिल जेनरेट करना अनिवार्य हो गया है. ई-वे बिल में सप्लायर, ट्रांसपोर्ट और प्राप्तकर्ता का विवरण दिया जाता है. जिस वस्तु की ढुलाई हो रही है अगर उसकी कीमत टैक्स सहित 50 हजार से अधिक है, तो उसके ट्रांसपोर्ट के लिए ई-वे बिल जेनरेट करना अनिवार्य है.
ई-वे बिल में दूरी के अनुसार दिन की वैधता भी निर्धारित की गयी है. 100 किमी की दूरी तय करने के लिए एक दिन की वैधता तय की गयी है. इसके बाद प्रत्येक 100 किमी की दूरी तय करने पर एक-एक दिन की वैधता बढती जायेगी. पहली बार ई-वे बिल बनाते समय अगर गलती हो जाती है, तो सुधार की कोई गुंजाइश नहीं होती, उसे नया ई-वे बिल ही बनाना पड़ेगा. ई-वे बिल के नियमों का उल्लंघन करने पर 10 हजार रुपये या टैक्स चोरी की कुल रकम में जो ज्यादा होगा, उतना पेनल्टी लग जायेगा.
कौन जनरेट करेगा ई-वे बिल
जीएसटी लागू हो जाने के बाद के इस दौर में सामान की ढुलाई शुरू होने से पहले ही ई-वे बिल जनरेट करना अनिवार्य है. इसमें अलग-अगल प्रावधान दिये गये हैं कि किस परिस्थिति में कौन ई-वे बिल जेनरेट करेगा.
वस्तुओं का ट्रांसपोर्ट सामान की कीमत कौन बनायेगा ई-वे बिल
बिक्री के लिए सामान की सप्लाई करने वाला 50 हजार से अधिक सप्लायर, ट्रांसपोर्टर या प्राप्तकर्ता कोई भी
किसी अन्य कारण से सामान की ढुलाई 50 हजार से अधिक सप्लायर, ट्रांसपोर्टर या प्राप्तकर्ता कोई भी
गैरपंजीकृत सप्लायर से पंजीकृत प्राप्तकर्ता तक ढुलाई 50 हजार से अधिक पंजीकृत प्राप्तकर्ता
गैरपंजीकृत सप्लायर से गैरपंजीकृत प्राप्तकर्ता किसी भी कीमत की वस्तु गैरपंजीकृत सप्लायर या ट्रांसपोर्टर
हैंडीक्राफ्ट सामानों का इंटर स्टेट ट्रांसफर किसी भी कीमत की वस्तु हैंडीक्राफ्ट सप्लायर
पंजीयन की प्रक्रिया
जीएसटी में पंजीकृत व्यक्ति के लिए : ई-वे बिल के लिए बिलकुल ही अलग वेब पोर्टल बनाया गया है. जीएसटी में पंजीकृत व्यक्ति को भी इस वेब पोर्टल पर अपना पंजीयन करना अनिवार्य है. अपने जीएसटीएन को डाल कर उसे प्राप्त ओटीपी के माध्यम से सत्यापित करना होगा. इसके बाद यूजर आइडी व पासवर्ड बना सकते हैं.
16 जनवरी 2018
से ई-वे बिल का ट्रायल शुरू हो गया है.
पूरे देश मेंे
इंटर स्टेट ट्रांसफर व झारखंड, बिहार सहित 15 राज्यों में इंट्रा स्टेट ट्रांसपोर्ट के लिए 01 फरवरी 2018 से लागू किया गया है.
गैरपंजीकृत व्यक्ति व ट्रांसपोर्टर के लिए पंजीकरण प्रक्रिया
ई-वे बिल पोर्टल पर अपना पैन विवरण देकर पंजीकरण कर सकते हैं.
आधार में पंजीकृत मोबाइल नंबर पर ओटीपी जायेगा, जिसे सत्यापित करना होगा.
उपयोगकर्ता को अपने व्यवसाय से जुड़ी जानकारी देना होगा.
ई-वे बिल पोर्टल पर अपना यूजर आइडी व पासवर्ड बना सकते हैं.
ई-वे बिल जेनरेट करने के लिए जो ऑनलाइन फॉर्म उपलब्ध कराये गये हैं, वह दो हिस्सों में बंटा होता है. पहला हिस्सा पार्ट-ए के नाम से जाना जाता है. इसमें सप्लायर व प्राप्तकर्ता की पूरी जानकारी, ढुलाई की जानेवाली वस्तु का विवरण, एचएसएन कोड व मूल्य सहित कहां से कहां तक ढुलाई की जायेगी एवं ट्रांसपोर्ट को दिये जानेवाले दस्तावेज की पूरी जानकारी देनी होती है. वहीं दूसरे हिस्से को पार्ट-बी कहा जाता है, जिसमें तय वाहन की जानकारी देनी होती है.
इंट्रा और इंटर स्टेट ई-वे बिल
आसान शब्दों में कहें तो राज्य के अंदर ही सामानों को ट्रांसपोर्ट करने के लिए इंट्रा स्टेट ई-वे बिल बनेगा. वहीं, राज्य के बाहर यानी अन्य राज्यों में वस्तुओं को भेजने या मंगाने के लिए इंटर स्टेट ई-वे बिल बनवाना होगा.
ट्रांसपोर्ट करते समय दुर्घटना हो
अगर सामान को एक राज्य से दूसरे राज्य में पहुंचाने के दौरान सामान ढोने वाली गाड़ी दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, तो उस सामान को दूसरी गांड़ी में ट्रांसफर करने के बाद उसे ई-वे बिल पार्ट-बी में नये वाहन संख्या को अपडेट करना होगा.
पंजीकरण और
ई-वे बिल जेनरेट करने के लिए http://ewaybi–.nic.in पर लॉगइन करना होगा.
कैसे काम करेगा ई-वे बिल
जब विक्रेता ई-वे बिल को जीएसटीएन पोर्टल पर अपलोड करेंगे तो एक यूनीक ई-वे नंबर (ईबीएन) जनरेट होगा. यह नंबर सप्लायर, ट्रांसपोर्ट और सामान पाने वाले, तीनों के लिए होगा. वे इस नंबर को जीएसटीआर-1 फार्म में विवरण देने के समय इसका उपयोग कर सकते हैं. ई-वे बिल जेनरेट होने के 72 घंटे के अंदर ही वस्तुओं के प्राप्तकर्ता को सामान को स्वीकार करने की अपनी सहमति या असहमति दर्ज करनी होगी. अगर वह ऐसा नहीं करता है तो 72 घंटे के बाद यह मान लिया जायेगा कि सामान स्वीकार कर लिया गया है.
1. अगर किसी कारण से विक्रेता या क्रेता ई-वे बिल नहीं बनाते हैं और सामान की कीमत 50 हजार से अधिक है तो ट्रांसपोर्टर की जवाबदेही होती है कि वह प्राप्त चालान, बिल की कॉपी या इनव्यास के आधार पर ई-वे बिल जेनरेट करेगा.
2. सामान को एक जगह से दूसरे जगह तक ट्रांसफर करने से पहले ट्रांसपोर्टर को ई-वे बिल में आवागमन की जानकारी अपडेट करना होगा.
3. अगर एक ही गाड़ी से बहुत से वस्तुओं को ले जाना हो, तो उन वस्तुओं के कॉनसॉलिडेटेड ई-वे बिल जेनरेट करना होगा.
ई-वे बिल जेनेरेट करने के 24 घंटे के अंदर उसे रद्द किया जा सकता है.
इस स्थिति में जरूरत नहीं
– सामान को किसी बिना मोटर वाले संसाधन के माध्यम से ट्रांसफर हो रहा, जैसे रिक्शा आदि.
-ई-वे बिल से कुछ उत्पादों के ट्रांसफर को बाहर रखा गया है. इनमें कॉन्ट्रासेप्टिव, ज्युडिशियल और नॉन ज्युडिशियल स्टैंप पेपर, न्यूजपेपर, ज्वैलरी, खादी, रॉ सिल्क, इंडियन फ्लैग, ह्युमन हेयर, काजल, दिये, चेक, म्युनसिपल वेस्ट, पूजा सामग्री, एलपीजी, किरोसिन, हीटिंग एड्स और करेंसी शामिल हैं.