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झारखंड@17 : राज्य में खुलीं विकास की नयी राहें, लेकिन बरकरार हैं चुनौतियां
अपनी सत्रह बरस की यात्रा में झारखंड ने विकास के कुछ मानदंडों को हासिल किया है, तो कुछ मामलों में प्रगति निराशाजनक रही है. राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर आंकड़ों और विश्लेषणों के जरिये राज्य की मौजूदा स्थिति और भविष्य की संभावनाओं के आकलन के साथ प्रस्तुत है यह विशेष पेज… अलख नारायण शर्मा […]
अपनी सत्रह बरस की यात्रा में झारखंड ने विकास के कुछ मानदंडों को हासिल किया है, तो कुछ मामलों में प्रगति निराशाजनक रही है. राज्य स्थापना दिवस के अवसर पर आंकड़ों और विश्लेषणों के जरिये राज्य की मौजूदा स्थिति और भविष्य की संभावनाओं के आकलन के साथ प्रस्तुत है यह विशेष पेज…
अलख नारायण शर्मा
अर्थशास्त्री
झारखंड को एक राज्य के रूप में स्थापित होने के आज 17 साल बाद भी कई ऐसी चुनौतियां हैं, जिनसे पार पाने की जरूरत है. हालांकि, झारखंड ने इन सालों में प्रगति भी की है, लेकिन वह प्रगति काफी नहीं है. आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक स्तर के अलावा रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि के स्तर पर अब भी बहुत कुछ किये जाने की जरूरत है.
झारखंड की प्रति व्यक्ति आमदनी राष्ट्रीय स्तर पर प्रति व्यक्ति आमदनी से 50 प्रतिशत कम है. जबकि, झारखंड ने बीते 17 साल में कोई सात-आठ प्रतिशत की दर से ग्रोथ किया है.
इसका मतलब यह हुआ कि राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने के लिए झारखंड को अपने आर्थिक विकास को तेज करना होगा. भारत की औसत प्रति व्यक्ति आमदनी तक पहुंचने के लिए झारखंड को कम-से-कम 11 प्रतिशत की दर से ग्रोथ करना होगा, तभी वह भारत के औसत प्रति व्यक्ति आमदनी के बराबर पहुंचेगा. यह बड़ी चुनौती है.
झारखंड की दूसरी बड़ी चुनौती यह है कि यही पर्याप्त नहीं है कि झारखंड का ग्रोथ रेट ही बढ़े. इस राज्य की गरीबी छत्तीसगढ़ के बाद सबसे ज्यादा गरीबी है. यहां तक कि जिस बिहार से यह राज्य निकला है, उस बिहार की प्रति व्यक्ति आमदनी झारखंड से 50 प्रतिशत ज्यादा है.
इसका अर्थ यह हुआ कि झारखंड में असमानता ज्यादा है. यह चुनौती हमेशा विकास में बाधक होती है और राज्य सरकार को चाहिए कि वह मानव विकास सूचकांक के हर स्तर पर विकास करने की कोशिश करे. चाहे वह बिजली हो, स्वच्छता हो, शिक्षा हो, भूख हो, गरीबी हो, बेरोजगारी हो, इन सभी स्तरों पर जब तक सम्यक रूप से नीति बनाकर काम नहीं किया जायेगा, तब तक मुश्किल है कि झारखंड अपने लक्ष्यों को प्राप्त करे.
हालांकि, झारखंड जैसे संसाधन-संपन्न राज्य के लिए यह कोई मुश्किल नहीं है कि वह इन सूचकांकों को ठीक नहीं कर सकता. लेकिन, इसके लिए इच्छाशक्ति तो चाहिए ही.
झारखंड में कृषि क्षेत्र में पचास प्रतिशत लोग काम करते हैं, लेकिन इससे मुश्किल से 14-15 प्रतिशत ही जीडीपी में योगदान मिल पाता है. वहीं खनन से 12 प्रतिशत जीडीपी आता है, जबकि इस क्षेत्र में सिर्फ 2.3 लोग काम करते हैं. मैन्यूफैक्चरिंग की जीडीपी में हिस्सेदारी 14 प्रतिशत है, जबकि यह क्षेत्र 6.5 प्रतिशत रोजगार देता है. इसका अर्थ यह हुआ कि झारखंड के विकास का पैटर्न बहुत विषम है. यह विषमता कई चुनौतियों को जन्म देती है.
इसके बारे में सरकार को गहराई से सोचना पड़ेगा. दरअसल, टाटा को छोड़कर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में ज्यादातर उद्योग धंधे पब्लिक सेक्टर के हैं, और ये उद्योग बहुत बड़े पैमाने पर हैं. झारखंड जैसे गरीब और प्रति व्यक्ति कम आमदनी वाले राज्य में छोटे और मझोले उद्योगों का होना बहुत जरूरी है, ताकि वे लोगों की आर्थिक स्थितियों के हिसाब से वस्तुओं का निर्माण कर सकें.
दरअसल, बड़ी औद्योगिक इकाइयों से ज्यादा रोजगार उत्पन्न नहीं होता, उनकी सीमाएं होती हैं और वे शहरों तक ही सीमित रहते हैं. जबकि छोटे और मझोले उद्योगों से ज्यादा रोजगार उत्पन्न होता है. इसलिए मैन्यूफैक्चरिंग और खनन क्षेत्र में जीडीपी तो बहुत आता है, (लगभग 27 प्रतिशत) लेकिन इन दोनों क्षेत्रों से बमुश्किल 10 प्रतिशत ही रोजगार उत्पन्न होता है. इसलिए झारखंड सरकार को चाहिए कि वह छोटे और मझोले उद्योगों की ओर ध्यान दे, ताकि ज्यादा-से-ज्यादा और ग्रामीण क्षेत्रों तक भी रोजगार की उपलब्धता बन सके.
झारखंड की आधी शहरी आबादी रांची, जमशेदपुर, बोकारो और धनबाद- इन चार शहरों में रहती है. जो छोटे शहर हैं, वहां कम लोग रहते हैं और उनका ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ाव बहुत कम है.
यह स्थिति झारखंड के सर्वांगीण विकास में बाधक है. ग्रामीण क्षेत्र को शहरी क्षेत्र से जोड़ना बहुत जरूरी है, ताकि विकास बराबर हो सके. हार्टीकल्चर, फूड प्रोसेसिंग, खनन, कृषि, मैन्यूफैक्चरिंग आदि क्षेत्रों में छोटे उद्योगों को लगाने के बहुत जरूरी है. हाल के सालों में झारखंड में पर्यटकों की संख्या बढ़ी है.
सरकार सुदूर गांवों का विकास कर और तमाम पर्यटन की जगहों को सड़कों से जोड़कर राज्य के विकास को बढ़ा सकती है.झारखंड में शिक्षित महिलाओं में पचास प्रतिशत में बेरोजगारी है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह संख्या 18 प्रतिशत है. वहीं राज्य के युवाओं में भी पचास प्रतिशत बेरोजगारी है. यही तो बड़ी समस्या है, जो आर्थिक विकास को रोके हुए है.
शिक्षा की हालत भी बहुत अच्छी नहीं है आैर यह रोजगार बढ़ाने में बड़ी बाधक है. मेरे ख्याल में राज्य सरकार को इसके लिए एक ‘हायर एजुकेशन मिशन’ का व्रत लेना चाहिए और 2025 तक सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी एजुकेशन को अनिवार्य कर देना चाहिए, और 25 प्रतिशत इनरोलमेंट ग्रोथ के लक्ष्य को पूरा करने का संकल्प लेना चाहिए.
क्योंकि, भारत के औसत स्किल (कौशल) के मुकाबले झारखंड में स्किल बहुत कम है. इसके लिए जरूरी है कि एजुकेशन सिस्टम बहुत सुदृढ़ हो, तभी बच्चों में कौशल का विकास हो पायेगा और राेजगार बढ़ने के साथ-साथ राज्य में प्रति व्यक्ति आमदनी भी बढ़ेगी. स्वास्थ्य का हाल भी ऐसा ही है. झारखंड में प्राथमिक स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत बहुत कमजोर है.
शिक्षा और स्वास्थ्य को ठीक करने के लिए साल 2025 का लक्ष्य अगर अब से भी निर्धारित कर लिया गया, तो उम्मीद है कि यह राज्य तेजी से विकसित होगा.
राज्य में नक्सली हिंसा एक बहुत बड़ी समस्या रही है. हालांकि, हाल के दिनों में इसमें कुछ कमी जरूर आयी है.लेकिन, अब भी इस समस्या की अनदेखी नहीं की जा सकती. गरीबी और बेरोजगारी ही इस समस्या के मूल में हैं. इसलिए इनमें सुधार करके ही नक्सली समस्या को खत्म किया जा सकता है. मेरी समझ से जब झारखंड का सम्यक विकास होगा, तभी नक्सली समस्या दूर होगी, क्योंकि तब नक्सल प्रभावित क्षेत्र भी विकास की मुख्यधारा में शामिल होंगे और सुकून की जिंदगी जीने की कोशिश करेंगे.
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