निजता एक बुनियादी अधिकार आला अदालत का ऐलान
इस साल के शुरू में देश के एक प्रमुख उद्योगपति ने कहा था कि डेटा एक नया प्राकृतिक संसाधन है. इसकी तुलना तेल से करते हुए उन्होंने कहा था कि सूचना को परिष्कृत कर इसे अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है.
इस बयान को डिजिटल होते जीवन के रोजमर्रा के संदर्भ में देखें, तो डेटा सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन कर उभरती है. सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने आधार परियोजना और अन्य मसलों की पृष्ठभूमि में फैसला दिया है कि निजता नागरिक का बुनियादी अधिकार है. इस फैसले में न्यायाधीशों ने निजता को सूचना के साथ जीवन जीने के तौर-तरीकों के से जोड़कर इस विषय को व्यापकता दी है, जिसका कई स्तरों पर प्रभाव आगामी दिनों में सामने आयेगा. इस निर्णय के आलोक में निजता के मसले पर चर्चा आज के इन दिनाें में…
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आधार कैम्पेन
सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों का यह सर्वसम्मत फैसला ऐतिहासिक रहा कि निजता एक मौलिक अधिकार है! यह एक ऐसा निर्णय है, जिसका इस देश के नागरिक के रूप में हम सभी स्वागत करते हुए जश्न मना सकते हैं.
हम इस फैसले तक आधार/विशिष्ट पहचान परियोजना के विरुद्ध एक लगातार लड़ाई के द्वारा पहुंच सके हैं, जिसे चुनौती देते हुए वर्ष 2012 में पहली याचिका समेत कई अन्य याचिकाएं दाखिल की गयी थीं. इन सभी को समेकित करते हुए सुप्रीम कोर्ट उसकी सुनवाई कर रहा था.
साल 2015 में कोर्ट के समक्ष केंद्र सरकार ने यह कहा था कि निजता एक मौलिक अधिकार नहीं है और इसलिए राज्य पर इसकी रक्षा का दायित्व भी नहीं है. इसी बिना पर यह सवाल भी नहीं किया जा सकता था कि आधार निजता का उल्लंघन करता है या नहीं. इस मौलिक अधिकार की मान्यता के लिए अतीत के कई अन्य फैसलों को पुष्ट करने अथवा उन्हें पलटने की जरूरत थी. इसी वजह से इसकी सुनवाई जजों के संख्याबल के लिहाज से एक अधिक शक्तिशाली पीठ द्वारा की जानी थी. इस मामले में 9 जजों की संख्या अपेक्षित थी, जिसे गठित किया जाना एक टेढ़ी खीर बना था. यह संदर्भ सरकार द्वारा उठाया एक सोचा-समझा कदम था, जिसका उद्देश्य आधार मामलों की सुनवाई रोकना तथा उसमें विलंब करना था.
दो वर्षों के इस विलंब ने आधार परियोजना को तीव्र गति देते हुए उसे हमारे जीवन के सभी पहलुओं तक प्रवेश कर जाने का मौका दे दिया. हमें राशन, पेंशन और मनरेगा के लिए भी अपना आधार देना जरूरी हो गया. हाल ही में बच्चों से भी यह कहा गया कि उन्हें आधार के बगैर मध्याह्न भोजन नहीं मिलेगा. भोपाल गैस पीड़ितों से यह कहा गया कि इतिहास की इस सबसे बड़ी आपदा के लिए उन्हें मिलती मुआवजा राशि बगैर अपना आधार दिखाये नहीं मिल सकती. ऐसा प्रतीत हुआ कि सरकार एक ऐसी परिस्थिति पैदा कर रही है, जहां आधार की व्यापकता उसकी समस्त आलोचनाएं ठंडी कर देगी.
हम सब के सौभाग्य से सुप्रीम कोर्ट ने 9 जजों की एक पीठ तेजी से गठित कर ली जिसने एक रिकॉर्ड समय में यह फैसला भी कर डाला. एक बहुमत निर्णय जस्टिस चंद्रचूड़ ने सुनाया जिनके साथ चीफ जस्टिस खेहर, जस्टिस अग्रवाल तथा जस्टिस नजीर भी थे. दूसरी ओर, जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस नरीमन, जस्टिस सप्रे और जस्टिस कृष्ण कौल थे, जिन्होंने एक अलग मगर समवर्ती फैसला सुनाया. कुल मिला कर यह एक जोरदार जीत रही.
यह फैसला इस अर्थ में सुंदर तथा अर्थपूर्ण है कि इसके अनुसार निजता का अधिकार स्वतंत्रता तथा लोकतंत्र के दिल में बसा है. यह उन मूल्यों की पुष्टि करता है जिनके आधार पर हमारे संविधान एवं देश का निर्माण हुआ था.
निजता का मौलिक अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 में स्थित है जो जीवन एवं स्वतंत्रता का अधिकार है. इसके अतिरिक्त यह ‘आजादी एवं गरिमा के अन्य पहलुओं से भी संदर्भित है, जिनकी संविधान के भाग तीन में स्थित मौलिक अधिकारों द्वारा मान्यता तथा गारंटी दी जाती है.’
इस निर्णय का हम सब पर तथा कोर्ट के विचाराधीन अन्य कई मामलों पर दूरगामी असर पड़ेगा. सबसे अहम, यह स्पष्ट करता है कि पूर्व के एक फैसले को जिसने धारा 377 को वैध बताया था, कानून के लिहाज से बुरा माना जा सकता है, क्योंकि अब निजता एक मौलिक अधिकार है.
बहुमत फैसले का अनुच्छेद 127 कहता है कि ‘समलैंगिकों, उभयलैंगिकों तथा ट्रांसजेंडरों (एलजीबीटी समुदायों) के अधिकारों को ‘तथाकथित अधिकारों’ के रूप में अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता. ‘तथाकथित’ शब्द एक स्वतंत्रता का क्रियान्वयन एक अधिकार के रूप में किया जाना व्यक्त करता है जो भ्रमपूर्ण है. यह एलजीबीटी समुदायों की निजता आधारित दावेदारियों का एक अनुपयुक्त गठन है. उनके अधिकार ‘तथाकथित’ नहीं, बल्कि वास्तविक हैं जिनकी बुनियाद ठोस संवैधानिक सिद्धांतों में है. वे अधिकार जीवन के अधिकार में निहित हैं, वे निजता एवं गरिमा में निवास करते हैं.’ धारा 377 के विरुद्ध मामला समीक्षाधीन है और यह मान्यता निश्चित रूप से इसे मजबूत करेगी.
यह फैसला हमें गोमांस पर प्रतिबंध जैसे कई कानूनों एवं नीतियों को चुनौती देने का आधार भी मुहैया करेगा. अपने फैसले में जस्टिस चेलामेश्वर ने कहा ‘मैं यह नहीं समझता कि कोई भी राज्य द्वारा यह कहा जाना पसंद करेगा कि उसे क्या खाना एवं क्या पहनना चाहिए तथा व्यक्तिगत, सामाजिक या राजनीतिक जीवन में उसे किसके साथ संबद्ध होना चाहिए.’ और निश्चित रूप से यह आधार पर तो असर डालेगा ही.
इस तथ्य की मान्यता कि निजता एक मौलिक अधिकार है केंद्र सरकार पर यह सिद्ध करने का एक बड़ा बोझ डालेगी कि आधार परियोजना कानूनी और उचित है. अब आधार मामले सामान्य सुनवाई की ओर लौटेंगे. हमारे जीवन में आधार का वर्तमान अनियंत्रित प्रसार अंततः समाप्त हो जायेगा और आधार यह पायेगा कि इसे हर हालत में सीमित तथा सिकुड़ा होना ही चाहिए. अब हम संवैधानिक रूप से रक्षित हैं.
हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि राज्य को अपने नागरिकों पर अधिकार पाना पसंद हैं और उसके द्वारा इस अधिकार की जरूरत एवं इच्छा के लिए बहुतेरे बहाने गढ़े जाते हैं जैसे, प्रेम, सुशासन, वास्तविक चिंता, दक्षता, आदि. इस डिजिटल युग में राज्य का यह अधिकार कई रूप में सामने आ सकता है मसलन, जन निगरानी, फोन टैपिंग, डेटाबेस सृजन एवं सर्वशक्तिमान आधार परियोजना. अपने अधिकारों का औचित्य साबित करने की कोशिश में राज्य अपनी सीमाएं तथा व्यक्ति के अनुल्लंघनीय अधिकार भूल जा सकता है.
हमें हमारे अधिकार किसी शासक की उदारता से नहीं मिला करते, बल्कि उनके लिए किये हमारे संघर्षों से और हम सबके द्वारा एक साथ अथक रूप से कार्य करने से उन्हें जीता जाता है. हमने निजता के मौलिक अधिकार को भी जीता है.
जस्टिस कौल के फैसले की अंतिम पंक्ति है: ‘नयी व्यवस्था के लिए जगह खाली करती हुई पुरानी व्यवस्था बदलती है.’ इस नयी व्यवस्था का स्वागत है.
(अनुवाद: विजय नंदन)
क्यों महत्ववूर्ण है गोपनीयता का अधिकार
संविधान के अनुच्छेद-21 के अनुसार हर व्यक्ति को जीने और आजादी का अधिकार है. सर्वोच्च न्यायालय का हालिया फैसला इसकी व्याख्या करता है, जिसके मुताबिक कोई भी व्यक्ति निजता के अधिकार के बगैर आजादी को पूर्ण तरीके से नहीं जी सकता है.
भारत के संविधान में कोई भी अधिकार संपूर्ण नहीं है, बल्कि हर अधिकार के साथ कुछ शर्तें जोड़ी गयी हैं. जैसे भड़काऊ भाषण देनेवाले को सार्वजनिक हित में रोका जा सकता है या किसी अपराधी की जीने के अधिकार के विपरीत फांसी या कैद की सजा दी जा सकती है.
सरकारी हस्तक्षेप पर कानून की तवज्जो
निजता का अधिकार मौलिक अधिकारों की श्रेणी में नहीं आने पर सरकार किसी भी मामले में हस्ताक्षेप कर सकती है. लेकिन, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार करार दिये जाने के बाद सरकार केवल कानून के तहत ही किसी व्यक्तिगत मामले में हस्ताक्षेप कर पायेगी. ऐसे में सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि निजता के अधिकारों का हनन नहीं हो रहा है.
सर्वोच्च न्यायालय को करना होगा आश्वस्त
आधार योजना के परिप्रेक्ष्य में जारी निजता की बहस व्यापक रूप ले चुकी है.सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की एक खंडपीठ आधार मामले पर अलग से सुनवाई कर रही है. आधार डेटा सुरक्षा के मद्देनजर सरकार को सुप्रीम कोर्ट की बेंच के सामने सुरक्षा मानकों पर आश्वस्त करना होगा. निजता के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल किये जाने के बाद अब लोगों से जानकारी लेने से पहले सरकार को सुरक्षा का आश्वासन देना होगा.
निजता के अधिकार की सात मुख्य बातें
जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार
न्यायाधीश डीवाय चंद्रचूड़ ने एडीम जबलपुर विरुद्ध शिवकांत शुक्ला मामले में 28 अप्रैल, 1976 को आपातकाल के दौरान दिये गये एक फैसले, जिसमें जीवन के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं माना गया था, को पलट दिया. इस फैसले से पीठ के सभी न्यायाधीश सहमत थे.
इस बारे में डीवाय चंदूचूड़ के पिता वाय वी चंद्रचूड़ ने अपने फैसले में कहा था कि जीवन का अधिकार संविधान द्वारा दिया गया है और इसे मौलिक अधिकार नहीं माना जा सकता है. गौरतलब हो कि आपातकाल के दौरान जीवन के अधिकार को मौलिक अधिकार मानने से इंकार कर दिया गया था. ऐसा पहली बार हुआ है, जब अदालत ने स्पष्ट रूप से इस फैसले को पलटा है.
आइपीसी की धारा 377 को बदला जा सकता है
11 दिसंबर, 2013 को उच्चतम न्यायालय द्वारा सुरेश कुमार कौशल व एएनआर विरुद्ध नाज फाउंडेशन व ओआरएस मामले में दिये गये फैसले में धारा 377 को सही ठहराया गया था. इसमें कहा गया था कि प्रकृति के खिलाफ शारीरिक संबंध बनाना (समलैंगिकता) अपराध है. निजता के अधिकार पर हालिया फैसले का धारा 377 पर असर पड़ सकता है और कहा जा सकता है कि यदि दो व्यक्ति आपसी सहमति से शारीरिक संबंध बनाते हैं, तो यह उनकी निजता का मामला है और यह उनका मौलिक अधिकार है. अत: यह अपराध नहीं हुआ.
जीवन खत्म करने का अधिकार
न्यायाधीश जे चेलामेश्वर ने यह माना है कि ऐसी स्थिति में जहां पूरी जिंदगी चिकित्सा उपचारों पर निर्भर रहना पड़े, वहां उपचार लेने से मना करना या जीवन समाप्त करने का अधिकार निजता के अधिकार के तहत आता है.
इच्छामृत्यु का यह फैसला असल में 7 मार्च, 2011 को अरुणा शानबाग के मामले में दिया गया था. हालांकि, इसी वर्ष मार्च महीने में उपचार लेने से मना करने के लिए दाखिल की गयी एक याचिका को अदालत ने खारिज कर दिया था. लेकिन, अब जबकि अदालत ने निजता को मौलिक अधिकार माना है, तो इच्छामृत्यु को वैधता मिल सकती है.
शराब और गोमांस का सेवन
इसी महीने की 24 तारीख को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश चेलामेश्वर व चंद्रचूड़ सिंह ने माना कि खान-पान का मुद्दा निजता का अधिकार है. 6 मार्च, 2016 को जाकिया जाहिद मुख्तार विरुद्ध महाराष्ट्र सरकार के मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा गोमांस सेवन पर दिये गये निर्णय और 30 सितंबर, 2016 को इंडियन अल्कोहलिक बीवरेज विरुद्ध बिहार सरकार द्वारा पटना उच्च न्यायालय के निर्णय को पलटते हुए उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सुनाया है. इस फैसले से शराब व गोमांस पर प्रतिबंध हट सकता है.
निजी जानकारी से जुड़े आंकड़ों की सुरक्षा
भारत में हमारी निजी जानकारी से जुड़े आंकड़ों की सुरक्षा या उनकी निजता को लेकर कोई कानून नहीं है. इस संबंध में सभी छह सुझावों में चिंता व्यक्त की गयी है.
वहीं आधार पर चर्चा के दौरान कई याचिकाकर्ताओं ने इसके खिलाफ दलील दी थी कि इसके लिए बायोमीट्रिक डाटा साझा किया जाता है, जो निजता के अधकार का हनन है और निजता एक मौलिक अधिकार है. आशा है इस संबंध में सरकार सोच-समझकर कोई कदम उठायेगी, क्योंकि इलेक्ट्रॉनिक्स व इनफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मंत्रालय ने आंकड़ों के संरक्षण को लेकर विशेषज्ञों की एक समिति बनायी है.
व्हाॅट्सएप, फेसबुक व हमारी निजी जानकारी
न्यायाधीश संजय किशन कौल ने निजी हाथों में बड़ी संख्या में लोगों की निजी जानकारी से संबंधित आंकड़ों पर चिंता जताते हुए कहा है कि स्वेच्छा से जो जानकारी साझा की जाती है, वह विश्वास आधारित होती है और अगर कंपनियां इस गोपनीयता का उल्लंघन करती हैं, तो यह विश्वास का उल्लंघन है. व्हाॅट्सएप और फेसबुक पर साझा निजी जानकारियों की गोपनीयता की चिंता करना भी यहां बेहद महत्वपूर्ण है. यह मामला पांच न्यायाधीशों की एक पीठ के समक्ष लंबित है.
आधार का भविष्य
इस संबंध में होनेवाला निर्णय इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वह आधार के भविष्य से जुड़ा हुआ है. इस मामले में न्यायाधीश रोहिंग्टन एफ नरीमन ने केंद्र सरकार की उस दलील को खारिज कर दिया है कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है.
