10.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

यूपी चुनाव: मुलायम ने भी कभी किया था अपने मार्गदर्शकों को दरकिनार

!!सुरेंद्र किशोर, राजनीतिक विश्लेषक!! उत्तर प्रदेश के चुनावी शोर में मुलायम सिंह यादव अपने घर में लगभग शांत बैठे हैं. संभवतः उन्हें चुनाव प्रचार के लिए कोई नहीं पूछ रहा. यह किसी नेता के लिए बड़ी पीड़ादायक स्थिति होती है. तब तो और जब पुत्र ही ऐसी नौबत ला दे. वह अपने ही पुत्र अखिलेश […]

!!सुरेंद्र किशोर, राजनीतिक विश्लेषक!!

उत्तर प्रदेश के चुनावी शोर में मुलायम सिंह यादव अपने घर में लगभग शांत बैठे हैं. संभवतः उन्हें चुनाव प्रचार के लिए कोई नहीं पूछ रहा. यह किसी नेता के लिए बड़ी पीड़ादायक स्थिति होती है. तब तो और जब पुत्र ही ऐसी नौबत ला दे. वह अपने ही पुत्र अखिलेश यादव की उपेक्षा के शिकार हैं. हालांकि, अखिलेश यह जरूर कह रहे हैं कि सत्ता मिलने के बाद उसे पिता को उपहार में सौंप देंगे. वैसे भी सामान्य स्थिति में कोई भी पिता यह चाहता है कि उसका पुत्र उससे आगे निकल जाये. हालांकि, मुलायम जी के लिए यह कोई सामान्य स्थिति कत्तई नहीं है. चर्चित अमर सिंह के इस रहस्योद्घाटन पर भरोसा करना अभी कठिन है कि पिता-पुत्र के नकली झगड़े की पटकथा किसी अमेरिकी रणनीतिकार ने लिखी थी. यदि ऐसा होता तो अपने प्रिय शिवपाल को बचा लेने का कोई उपाय पटकथा में जरूर होता. अभी तो वे अपमानित हैं और राजनीतिक रूप से डूब रहे हैं. सवाल है कि ऐसी पटकथा पर कौन विश्वास करेगा जिसमें शिवपाल के कारण तो अखिलेश की छवि बिगड़ रही थी, पर प्रजापति के कारण बन रही है?

अपना कोई सगा नहीं

अपनी राजनीतिक जीवन यात्रा के लंबे दौर में समय-समय पर जैसा सलूक मुलायम सिंह यादव ने अपने मार्गदर्शकों व मददगारों के साथ किया, लगता है कि लगभग वही सलूक उनके पुत्र अखिलेश ने अपने पिता के साथ किया. संभव है कि नेता जी को वे पुराने दिन याद आते होंगे. ठीक कहा गया है कि राजनीतिक युद्ध के मैदान में एम्बुलेंस नहीं होता. एक दूसरी कहावत भी है कि महत्वाकांक्षी लोग दूसरों को सीढ़ी बनाकर तरक्की की छत पर तो चढ़ जाते हैं. पर ऊपर पहुंच कर वे सीढ़ी फेंक देते हैं. नतीजतन वे फिर सत्ता की छत से राजनीति की सरजमीन पर गिरने के क्रम में अपना ही पैर तुड़वा बैठते हैं. क्योंकि तब उन्हें सहारा देने वाला कोई नहीं होता. मुलायम सिंह आज बेसहारा नजर आ रहे हैं. संभव है कि उनके पक्ष में कल कोई चमत्कार हो जाये. कई बार सांसद रहे लोहियावादी अर्जुन सिंह भदौरिया उर्फ कमांडर साहब तथा नत्थू सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव को राजनीति में लाया. आगे बढ़ाया. पर आरोप लगा कि बाद में मुलायम ने बाद में उन्हें अपमानित किया. मुलायम सिंह यादव ने 1967 में जब राजनीति शुरू की तो वह स्थानीय जमींदार की आंखों में खटकने लगे थे. मुलायम की हत्या की कोशिश हुई. मुलायम ने दर्शन सिंह यादव जैसे दबंग, धनबली और बाहुबली की मदद ली. पर बाद में दर्शन से मुलायम की खटपट हो गयी. कहा जाता है कि जमींदार के अत्याचार से मुकाबले के लिए मुलायम जी को कुछ राॅबिनहुड टाइप के डकैतों से भी मदद लेनी पड़ी. छबिराम उनमें प्रमुख था. अलीगढ़ के नेता व पूर्व मंत्री राजेंद्र सिंह ने मुलायम को चैधरी चरण सिंह से मिलवाया. उन दिनों मुलायम कांग्रेसी नेता बलराम सिंह यादव से चुनाव हार गये थे. बाद में राजेंद्र सिंह भी मुलायम सिंह यादव के शिकार बन गये. मुलायम ने राजेंद्र सिंह को विपक्ष के नेता पद से हटवा दिया.

1977 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राम नरेश यादव ने मुलायम को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया था. पर बाद में आरोप लगा कि मुलायम के कारण ही राम नरेश यादव ने पार्टी छोड़ दी. बाद में कांग्रेस में शामिल हो गये. हाल तक मध्य प्रदेश के राज्यपाल थे. चंद्रशेखर और वीपी सिंह के साथ भी मुलायम ने बारी-बारी से लगभग यही सलूक किया. मुलायम ने अपने मार्ग दर्शक नेताओं के साथ जैसा सलूक किया, वैसा सलूक देश के कई अन्य नेताओं ने भी अपने मददगारों के साथ किया. पर एक पिता के साथ एक पुत्र का व्यवहार राजनीति में संभवतः अनोखा रहा. उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे आने के बाद मुलायम का अखिलेश से कैसा संबंध बनता है, यह देखकर कोई पक्के तौर पर कह सकता है कि अमर सिंह की कहानी कितनी सही है. राजनीति में कुछ भी संभव है.

मोदी के अदूरदर्शी विरोधी

कांग्रेस के नेता व पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री डाॅ शकील अहमद ने कहा है कि ‘जब ट्रेन दुर्घटना में लोग मरते हैं तो अपनी कमजोरी छिपाने के लिए नरेंद्र मोदी यह बयान देते हैं कि बॉर्डर पार के लोगों ने ब्लास्ट कराया है.’ उधर, मोतिहारी पुलिस ने हाल में आइएसआइ के तीन एजेंटों को गिरफ्तार किया. उनमें से एक ने कबूल किया कि कानपुर ट्रेन विस्फोट में उसका हाथ था. यह बात वहां के एसपी ने मीडिया को बतायी. डाॅ शकील की पार्टी बिहार सरकार में है. कांग्रेस बिहार सरकार से क्यों नहीं कहती कि वह गलत सूचना देने के लिए मोतिहारी पुलिस पर कार्रवाई करे? दरअसल वह नहीं कह सकती क्योंकि उसे भी हकीकत मालूम है. शकील जैसे नेता वोट बैंक को ध्यान में रखकर ऐसे बयान देते हैं जिसका लाभ अंततः भाजपा उठाती है. याद रहे कि गत नवंबर में हुए कानपुर ट्रेन दुर्घटना में 151 यात्रियों की जानें गयीं थीं और 200 लोग घायल हुए थे. गत लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय के दो प्रमुख कारण थे. एक तो मनमोहन सरकार के महाघोटालों से अधिकतर जनता नाराज थी. दूसरी बात यह थी कि कांग्रेस व कुछ अन्य भाजपा विरोधी दलों ने एक तरफा धर्मनिरपेक्षता के राग अलापे और उसी लाइन पर काम किये. लोगों को लगा कि इससे देशद्रोही तत्वों को मदद मिल रही है. इससे भाजपा व खास कर नरेंद्र मोदी का काम आसान हो गया. जानकार लोग बताते हैं कि यदि सेक्युलर दल सचमुच संतुलित धर्मनिरपेक्षता की राह पर चलें और अपने दल की सरकारों को निर्देश दें कि वे भ्रष्टाचार पर काबू पायें तो भाजपा को कमजोर किया जा सकता है.

बिहार की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं

बिहार आइएएस एसोसिएशन का आंदोलन और निखिल प्रियदर्शी-दलित महिला प्रकरण बिहार के लिए दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हैं. जिन पर शासन का पूरा दारोमदार हो, वे सड़कों पर आ जाएं, यह बहुत ही अप्रिय स्थिति है. यह प्रकरण जितनी जल्दी तार्किक परिणति तक पहुंच जाये, सुशासन के लिए उतना ही अच्छा होगा. आदर्श स्थिति तो यही है कि कोई दोषी बचे नहीं, पर किसी निर्दोष को नाहक सजा न हो. उधर, बिहार के नया यौन शोषण कांड को लेकर भी सुशासन की साख कसौटी पर है. इस अवसर पर कई लोगों को 1983 के बाॅबी हत्याकांड की याद आ रही है. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि हत्या को छोड़ दें तो दोनों मामलों में समानता है. बाॅबी कांड को तो सत्ताधारी नेताओं ने इसलिए दबा दिया था क्योंकि उनके अनुसार उस मामले के तार्किक परिणति तक पहुंचने से लोकतंत्र पर ही खतरा था! ताजा यौन शोषण कांड को लेकर भी यही कहा जा सकता है? पता नहीं! 1983 में एक बिहार के एमएलसी ने बहुत गुस्से में मुझसे कहा था कि आप पत्रकार लोग नक्सलाइट हैं क्या? बॉबी कांड के बहाने आप सिस्टम को क्यों ध्वस्त करने में लगे हुए हैं? जान लीजिए यही सिस्टम अगले सौ साल तक कायम रहेगी.

…और अंत में

बढ़ते जल संकट और बिगड़ते पर्यावरण के इस दौर में ‘पानी के पहरेदार’ अनुपम मिश्र पर ‘दोआबा’ का विशेषांक पठनीय है. इस तरीके से जाबिर हुसैन ने अनुपम मिश्र को वास्तविक श्रद्धांजलि दी है. पिछले दिनों मिश्र के असामयिक निधन से वैसे लोगों को खास तौर पर झटका लगा था जो उनके महती योगदान को पढ़ते-जानते रहे हैं. मैं तो यह भी जानता हूं कि अपने इस काम में मगन अनुपम जी ने 1983 में अखबार में एक बड़ी नौकरी प्रभाष जोशी के आॅफर को ठुकरा दिया था. अनुपम जी ने सार्थक जीवन जिया.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel