लखनऊ : पिछले चुनाव में सपा को सत्ता की चाबी सौंपने वाले पूर्वांचल के जिन चार प्रमंडलों में छठे व सातवें चरण में मतदान होना है, वहां की सियासत में स्थानीय व जातीय समीकरण सर्वाधिक प्रभावी रहे हैं. ऐसे में सभी प्रमुख दलों भाजपा, सपा-कांग्रेस गंठबंधन और बसपा के उम्मीदवार इन इलाकों की अधिक से अधिक सीटें अपने खाते में करने के लिए स्थानीय व जातीय समीकरणों को साधने की कोशिश में जुटे हैं. सफलता उसी को मिलेगी, जो जातियों के इस जटिल गणित को हल कर लेगा.
2012 के चुनावी आंकड़ें देखें तो अंतिम दो चरणों में जिन चार प्रमंडलों -गोरखपुर, आजमगढ़, वाराणसी और मिर्जापुर में चुनाव होने हैं, उन इलाकों की कुल 89 सीटों में से 49 सीटें पिछली बार सपा की झोली में गयी थीं. भाजपा और बसपा को मात्र 12-12 सीटों और कांग्रेस को सीटों पर विजय मिली थी. कौमी एकता दल व पीस पार्टी को दो-दो, अपना दल व एनसीपी को एक-एक सीट मिली थी.
अंतिम दो चरणों में सबसे अधिक चुनौती
अंतिम दो चरणों में सबसे अधिक चुनौती सपा के सामने है. सपा का आधार मुसलिम, भूमिहार और पिछड़ी जाति ही रही थीं. माना जाता है कि इन जातियों की वजह से ही सपा ने पिछले चुनाव में आजमगढ़, मऊ, बलिया व गाजीपुर की 30 सीटों में 23 पर जीत दर्ज की थी. हालांकि इस बार उसकी राह थोड़ी मुश्किल लग रही है, क्योंकि मुसलिम और पिछड़ी बिरादरी के मतदाता एकतरफा मतदान करने के मूड में नहीं दिख रहे हैं. मुख्तार अंसारी के बसपा में जाने से भी मुसलिम मतों में बिखराव का अंदेशा है. पुराने समाजवादी रहे नारद राय, अंबिका चौधरी और शादाब फातिमा फैक्टर भी सपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है.
बेस वोट बैंक के साथ पिछड़ों पर भरोसा
पूर्वांचल उन इलाकों में है जहां भाजपा का हिंदुत्व कार्ड सबसे अधिक चलता है. विशेषकर गोरखपुर और वाराणसी मंडल भाजपा को मजबूती देते रहे हैं. यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में सपा लहर के दौरान भी उसकी झोली में 12 सीटें आ गयी थीं. माना जाता है कि इस इलाके में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और कायस्थ मतदाताओं के अलावा बहुत से ऐसे जातीय समीकरण भी हैं, जिन्हें साधकर भाजपा हर चुनाव में अपनी सियासी रणनीति तैयार करती रही है. इस बार भी इसी समीकरण को लेकर पार्टी अधिक से अधिक सीटें जीतने की कोशिश में हैं. हालांकि टिकट बंटवारे को लेकर उपजे असंतोष का असर भाजपा के वोट बैंक पर पड़ सकता है.
बसपा : अंसारी फैक्टर से िमल सकती है मजबूती
पिछले चुनाव में इस इलाके से सिर्फ 12 सीटें पाने वाली बसपा को इस बार अंसारी फैक्टर से मजबूती मिलने की बात कही जा रही है. बाहुबली मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के बसपा में विलय और सपा के दिग्गज नेता रहे अंबिका चौधरी व नारद राय के बसपा में आने से भी फर्क पड़ेगा. वैसे भी माना जाता रहा है कि अंसारी बंधुओं का इन चार जिलों की करीब 28 सीटों पर व्यापक असर रहता है. इसके अलावा बसपा ने इस इलाके की अधिकतर सीटों पर भूमिहार, मुसलिम और अति पिछड़ी जाति के उम्मीदवारों को उतारकर जातीय समीकरण साधने की कोशिश की है. वहीं, अगड़ी जाति के मतदाताओं को अपने पाले में खींचने की कवायद के तहत कुछ जिलों में ब्राह्मण उम्मीदवार भी उतारे हैं.