आरके नीरद
वर्ष 2017-18 का केंद्रीय बजट आर्थिक और राजनीतिक, दोनों ही दृष्टि से संतुलित है, लेकिन इसमें जितनी चिंता नोटबंदी से उत्पन्न हालात से निबटने की है, उतनी की सुस्ती अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों और चुनौतियों को लेकर है. नोटबंदी का ग्रामीण अर्थव्यवस्था और भारतीय कृषि पर बड़ा और नकारात्मक प्रभाव पड़ा है. रोजगार में कमी आयी और किसानों को सीधा-सीधा नुकसान हुआ. नोटबंदी ने भारत के मध्यवर्ग और छोटे एवं मध्यम कारोबारियों को भी परेशानी में डाला. नोटबंदी का असर सकल घरेलू उत्पादन पर भी पड़ा और विकास की रफ्तार कम हुई. बजट में इसकी भरपाई की पूरी कोशिश की गयी है, लेकिन बदली हुई वैश्विक परिस्थिति में भारतीय युवाओं के लिए रोजगार की नयी चुनाैतियों, खाड़ी देशों के बदलती नीतियों के कारण कच्चे तेल की कीमतों में अस्थिरता तथा सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने से उत्पन्न आर्थिक भार से निबटने को लेकर बजट में कोई स्पष्ट चर्चा नहीं है.
अर्थशास्त्री डॉ रमेश शरण मानते हैं कि संसद में बजट का जो हिस्सा पेश किया गया है, उससे कई बातें साफ नहीं हैं. अगर पूरा बजट ऐसा ही है, तो यह क्रांतिकारी या बड़ा परिवर्तनकारी नही है. वह मानते हैं कि यह नरेंद्र मोदी का मीड टर्म बजट है और पारी के हिसाब से उनके कार्यकाल का चौथा बजट है. इस बजट में ज्यादा रोजगार पैदा करने की उम्मीद की जा रही थी, मगर ऐसा नहीं है. इसके विपरीत जिस तरह से अमेरिका ने प्रवासियों को रोजगार को देने को लेकर ताजा रुख दिखाया है, उससे भारतीय आइटी क्षेत्र में गंभीर चिंता है. इससे निबटने के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था में बदलाव या सुधार किया जा रहा है, इसकी चर्चा बजट में नहीं है.
बजट में ग्रामीण तथा आधारभूत ग्रामीण संरचना के विकास, किसान और किसानी तथा सामाजिक सुरक्षा जैसे क्षेत्र में भारी निवेश और खर्च का प्रावधान किया गया है. कृषि क्षेत्र में किसान बीमा योजना के लिए 13000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. यह पिछले साल के 5500 करोड़ के बजटीय प्रावधान से करीब 237 फीसदी अधिक है. छोटे और सीमांत किसानों की मदद के लिए 1900 करोड़ रुपये खर्च की व्यवस्था की गयी है. कृषि ऋण की राशि भी 10 लाख करोड़ कर दिया गया है. फसल बीमा को 30 फीसदी से बढ़ा कर 40 फीसदी किया गया है. डेयरी क्षेत्र के जरिये भी 800 करोड़ रुपये गांवों में खर्च किये जायेंगे. मनरेगा की बजटीय राशि में 10000 करोड़ की वृद्धि की गयी है. पिछले साल यह राशि 38000 करोड़ थी. इसे इस साल 48000 करोड़ कर दिया गया है. प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की राशि भी 27 हजार करोड़ रुपये और पीएम आवास योजना की 23000 करोड़ की गयी है. सामाजिक सुरक्षा के जरिये भी 6500 करोड़ रुपये गांवों में पहुंचाये जायेंगे. कुल मिलाकर देखा जाये, तो नाेटबंदी से ग्रामीण और कृषि क्षेत्र को हुए नुकसान की भरपाई के इस बजट में अच्छे प्रावधान है. आयकर छूट की सीमा को 2.50 लाख से तीन लाख किया जाना और 3 से 5 लाख तक की आय पर कर की दर को 10 से घटा कर 5 फीसदी करना भी नोटबंदी से उत्पन्न हालात को आसान बनाने की कोशिश है.
अर्थशास्त्री डॉ रमेश शरण मानते हैं कि सरकार ने बजट में ऐसे प्रावधान कर ग्रामीण, मध्यवर्गीय समाज और मध्यवर्गीय कारोबारी क्षेत्र में सुधार की अच्छी पहल की है. इससे सरकार की इस दृष्टि का पता चलता है कि वह इन क्षेत्रों में भारी निवेश कर और थोड़ी छूट देकर हालात को सामान्य बनाना चाहती है. खास कर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण रोजगार के अवसर के क्षेत्र में.
लेकिन आर्थिक मामलों के कुछ दूसरे क्षेत्र में इस बजट की चिंता पर सवाल खड़े हो रहे हैं. डॉ शरण मानते हैं कि बजट में आयकर में छूट और कर की दर को घटाने तथा सातवें वेतनमान को लागू करने से जो घाटा उत्पन्न होगा, उसे केवल 20 हजार कराेड़ के आयकर अधिभार से नहीं पाटा जा सकता. दूसरी बात कि 2017-18 में वित्तीय घाटे को 3 फीसदी तक रखना और अगले वर्ष के लिए राजस्व घाटा को 1.9 फीसदी करना भी आसान नहीं होगा. इससे इस बात की आशंका है कि मनरेगा जैसी दूसरी योजनाओं के फंड में कटौती कर दी जाये.
दूसरी ओर इस बजट को चुनावी नजर से भी देखा जा रहा है. जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं, वहां अल्पसंख्यक, एससी और एसटी वोटरों की संख्या अच्छी खासी है. बजट में अल्पसंख्यककल्याण के लिए 4195 करोड़ रुपये, एससी के लिए 52,393 करोड़ और एसटी के लिए 31,920 करोड़ रुपये का प्रावधन किया गया है. एससी के लिए बजटीय राशि में 35 फीसदी बढ़ोत्तरी की गयी है.