।।ईश्वरचंद जायसवाल।।
ईश्वरचंद जायसवाल प्रदेश के बुजुर्ग कांग्रेसी हैं. होश संभाला और कांग्रेस से जुड़ गये. वर्ष 1952 से कांग्रेस का झंडा बुलंद कर रहे हैं. पार्टी से कुछ पाया नहीं, लेकिन कभी निष्ठा नहीं बदली. जवाहर लाल नेहरू को देखा, इंदिरा गांधी के समय कांग्रेस में रम कर काम किया. बिहार में सीताराम केसरी के सहयोगी रहे. रामरतन राम के साथ झारखंड में काम किया. आज कांग्रेस की दुर्दशा से ईश्वरचंद जायसवाल दुखी हैं. पार्टी के हाल से व्यथित हैं. कांग्रेस इस हाल तक कैसे पहुंची, इस पर ईश्वरचंद की बेबाक टिप्पणी है. उन्होंने अपनी भावना एक लेख के माध्यम से प्रभात खबर के साथ साझा किया है. हम उनके विचार प्रकाशित कर रहे हैं.
आजादी के समय पढ़ाई कर रहा था. स्कूल में था. आजादी की लड़ाई को देखते-सुनते बड़ा हुआ. जब देश आजाद हो रहा था, तब हम गुनगुनाते थे : कदम-कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा.. देश के लिए कुरबान होनेवाले नेताओं के बारे में जानने-सुनने के बाद समाजसेवा की जज्बा पलने लगी. ग्रेजुएशन करने के बाद 1952 में कांग्रेस में शामिल हो गया. बिहार में पुराने और दिग्गज कांग्रेसी नेताओं के साथ काम किया. समाज के प्रति उनका समर्पण देखा. सीताराम केसरी, कामता सिंह जैसे नेताओं के सान्निध्य में रहा. 1967 में सीता राम केसरी कटिहार से पहली बार एमपी बने.
जनता के साथ नेताओं का सीधा संवाद था. कांग्रेस के अंदर आमलोगों के लिए कमिटमेंट थी. हम वाचनालय, पुस्तकालय खोलते थे. तब कांग्रेस की टोपी पहनना शान की बात थी. रामरतन राम के साथ जुड़ कर समाज के वंचितों के लिए काम किया. सत्यदेव तिवारी के साथ कला-संस्कृति की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जूझते रहे. कांग्रेस के पास प्रतिष्ठित और समाज के लिए साख रखनेवाली नेताओं की लंबी श्रृंखला रही है, लेकिन आज नेता और पार्टी दोनों का चरित्र बदल गया है. तब बड़े नेता समर्पित कार्यकर्ताओं के यहां खाते-ठहरते थे. आज पार्टी के अंदर पैसा बोलता है. कांग्रेसी संस्कृति बदल गयी है. यहां पैसे है, तो पॉलिटिक्स कर सकेंगे. मुट्ठी भर नेता आज पार्टी चलाते हैं. ऐसे नेताओं का ही आलाकमान के पास आना-जाना होता है. यही नेता आलाकमान को समझाने-बुझाने का काम करते हैं. आलाकमान के पास जमीनी हकीकत जानने-समझने का दूसरा मैकिAजम भी नहीं है.
आलाकमान भी बंद कमरे से बाहर नहीं निकलना चाहता है. यहां की खिड़कियां-दरवाजे भी बंद रहते हैं. दिल्ली में बैठे नेता खिड़कियों से झांक कर भी देखने की जहमत नहीं उठाते. देखने के बजाय सुनने पर भरोसा करते हैं. इनके पास कोई कसौटी नहीं है. ग्रास रूट पर काम करने, पसीना बहानेवाले नेता शायद ही वहां तक पहुंच पाते हैं. विधानसभा-संसद का टिकट देना हो, तो बायोडाटा मांगा जाता है. चंद नेता यहां से बायोडाटा और लिस्ट बना कर जाते हैं. सोशल-पॉलिटिकल एक्टिविटी का कोई लेखा-जोखा पार्टी के पास नहीं है. गांव-देहात में काम करनेवाले कार्यकर्ता, जनता से संवाद करनेवाले नेता बायोडाटा बना भी नहीं पाते हैं. कोई इनका बायोडाटा लेकर दिल्ली जानेवाला भी नहीं है. मैं ग्रेजुएशन के बाद से कांग्रेस में हूं. पार्टी ने यदा-कदा सचिव बना दिया. मुङो दुख नहीं है. हमारी राजनीतिक शिक्षा में कहीं पद की बात नहीं आती है. हम पद के लिए आये भी नहीं थे. कांग्रेस के साथ जुड़ाव हमारा वैचारिक पक्ष है. मैं विचारों से प्रभावित होकर कांग्रेस में हूं, लेकिन दुख होता है कि नेहरू -इंदिरा की कांग्रेस का क्या हाल हो गया! इंदिरा गांधी ने स्वतंत्रता सेनानियों को पेंशन देने की व्यवस्था की. इस व्यवस्था में हजारों घरों में दीया जले. मुङो याद है, जब मैं पटना गया था. गंगा प्रसाद साहू स्वतंत्रता सेनानी थे. वह मिल गये, मुझसे चार आने मांगे. हमसे कहा कि 25 पैसे देंगे, तो खाना खाऊंगा. बहुत पुरानी बात है.
1963 में शंभू नाथ आजाद रांची आये. भगत सिंह के सहयोगी थे. क्रांतिकारी नेता थे. पुराने किसी कांग्रेसी से वह मेरा परिचय लेकर रांची आये थे. ऊंटी में बम फेंकने के आरोप में काला पानी की सजा काट चुके थे. हमसे मिलने एचइसी आये. वह रांची में ही रह कर काम करना चाहते थे. सब्जी की दुकान खोलना चाहते थे. हम एचइसी के मार्केट में उनके लिए एक दुकान मांगने गये, जो हमें नहीं मिली. तब राजेंद्र प्रसाद पटना लौट आये थे. सदाकत आश्रम के पीछे रहते थे. हम उनसे मिलने गये. मैंने पूरी कहानी सुनायी. राजेंद्र बाबू बोले, ऐसे लोगों के लिए समाज को आगे आना चाहिए. क्रांतिकारियों, देश के लिए लड़नेवालों को प्रतिष्ठा-सम्मान नहीं मिलेगा, तो देश कहां जायेगा. यह घटना बताने के लिए काफी है कि पुराने कांग्रेसियों और देश के नेताओं की संवेदना कितनी गहरी थी. स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होनेवाले एलिट क्लास के लोग एमएलए-एमपी बन गये, लेकिन बहुत लोग फटेहाल थे. इंदिरा गांधी ने इनलोगों के लिए सोचा. इसके बाद राजीव गांधी के जमाने में भी कांग्रेस खिला. पूरी ईमानदारी से राजीव गांधी ने कहा कि गरीबों तक विकास का 15 पैसा ही पहुंचता है. अब के नेताओं में यह साहस है क्या. आज के नेता संवेदनहीन हो गये हैं. राहुल गांधी भी अच्छा सोच रखते हैं. ग्रास रूट के कार्यकर्ताओं के लिए दर्द है, लेकिन राहुल गांधी को हालात बदलने नहीं दिया जा रहा है. देश भर में ऐसे नेताओं का कॉकस है, जो पार्टी के अंदर बड़े बदलाव को रोकता है.
राहुल गांधी पार्टी में आंतरिक डेमोक्रेसी की बात करते हैं, लेकिन झारखंड में क्या हो रहा है. मुङो नहीं कहना चाहिए, कांग्रेस को बंधक बनाने की कोशिश की जा रही है. दरबारी और ठेका-पट्टा करनेवाले कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाया जाता है. पार्टी के लिए पैसा जुटानेवाले की पूछ होती है. अपना पारिवारिक जीवन तबाह करनेवाले कार्यकर्ता आज सड़क पर हैं. मैं कहता हूं कि धीरज साहू राज्यसभा कैसे पहुंच गये. जेपी चौधरी, सत्येंद्र जायसवाल जैसे लोग कुछ नहीं बन पाये. आज कांग्रेस में वर्किग कमेटी बनी है. एक -एक परिवार से तीन-तीन लोग हैं. समाज को संरक्षण देनेवाले नेताओं के बजाय विवादित लोगों को पार्टी में शामिल कराया जाता है. पैसे के बल पर दूसरी जगह से लोग आते हैं और पार्टी में महत्व हासिल करते हैं. पार्टी संक्रमण के दौर से गुजर रही है. नेतृत्व करनेवालों की साख नहीं है. स्टेट पॉलिटिक्स में इन नेताओं की कोई छाप नहीं है.
राजा-महाराजा की तरह कांग्रेस के नेता व्यवहार करते हैं. कार्यकर्ताओं का अपने घर में दरबार लगाते हैं. आज के नेताओं को पद मत दीजिए, एक बार सांसद-विधायक का टिकट मत दीजिए, घंटे भर के अंदर दल बदल देंगे. पार्टी के साथ ऐसे नेताओं की कोई सहानुभूति नहीं है. इनका कोई वैचारिक पक्ष नहीं है. ऐसे नेताओं की पार्टी को पहचान होनी चाहिए. अन्याय के खिलाफ लड़ने के बजाय आज कांग्रेसी स्वार्थी हो गये हैं. मैंने अपनी ही पार्टी के आलमगीर आलम के खिलाफ पीआइएल की. मुङो कोई रोक नहीं सकता था. आलमगीर आलम ने विधानसभा अध्यक्ष रहते हुए बहाली की. 29 स्वीपर रखे. एक भी वंचित लोग नहीं थे. मुङो सूचना थी कि पैसे के बल पर बहाली हुई. कांग्रेस में रहते हुए मैंने केस कर दिया. मैं पार्टी का भला चाहता हूं. राहुल गांधी झारखंड आ रहे हैं. झारखंड-बिहार में पार्टी को खड़ा करना चाहते हैं, तो पुनर्जागरण की जरूरत है. टॉप टू बॉटम पार्टी में बड़े बदलाव की जरूरत है. दलालों और दरबारियों की संस्कृति खत्म करनी होगी. कांग्रेस को गांव-देहात तक पहुंचाना होगा. संघर्ष की ताकत को आगे बढ़ाना होगा. बायोडाटा की संस्कृति से बाहर निकलना होगा. खुले मन और खुली आंखों से पार्टी को देखें. भय, राग, द्वेष से ऊपर उठ कर साहसिक कदम उठाने की जरूरत है. मेरी यह भावना व्यक्तिगत है. किसी एक पर आक्षेप नहीं है. मेरे लेख से किसी की भावना को ठेस पहुंची हो, तो क्षमा प्रार्थी हूं.

