।। दक्षा वैदकर ।।
‘मुझे उनकी ये बातें बिलकुल पसंद नहीं. मैं बोल-बोल कर थक गयी, लेकिन क्या करें, एडजस्ट करना पड़ता है.’ ‘वह बहुत अजीब हरकतें करती है, लेकिन मैं उसे कभी कुछ नहीं कहता. सब मुझे ही सहन करना पड़ता है.’ इस तरह की बातें हम अकसर कहते हैं. हम भूल जाते हैं कि बिलकुल यही लाइन दूसरा व्यक्ति भी आपके बारे में किसी से कह रहा होगा. उसे भी आपके संस्कारों, आदतों से उतनी ही परेशानी होती होगी.
हमें यह समझना होगा कि हर इनसान के अपने अलग-अलग संस्कार होते हैं. किसी का देर से सोने का संस्कार है, तो किसी का देर से जागने का. किसी का जल्दी-जल्दी खाने का संस्कार है, तो किसी का बड़े आराम से. कोई हर काम बड़ों को बता कर करता है, तो कोई मनमरजी का मालिक है. यहां गलत कोई भी नहीं है.
आप अगर इन सभी से बात करेंगे, तो जानेंगे कि सभी अपने-अपने नजरिये से सही हैं. उनके पास सही होने के तर्क भी है. अब ऐसी स्थिति में यह कहना कि सिर्फ मुझे एडजस्ट करना पड़ रहा है, गलत है.
सवाल यह उठता है कि ऐसी परिस्थिति में हम कैसे खुश रहें? इसका सीधा-सा जवाब है कि दूसरों को उनके संस्कारों सहित अपनायें. इस बात को स्वीकारें कि सामनेवाला भी सही है. उसके पास भी सही तर्क है. जब आप ऐसा अपने मन को समझा लेंगे, तो आपका दिमाग उस इनसान के प्रति नकारात्मक विचार बनाना धीरे-धीरे कम करता जायेगा.
वर्तमान में हम सामनेवाले के प्रति बहुत खराब विचार बना रहे हैं, जैसे ‘ये कितना खराब काम करते हैं, इन्हें अच्छे संस्कार ही नहीं मिले. इनका स्वभाव ही घटिया है. इनमें बहुत इगो है. ये तो सॉरी भी नहीं बोलते..’ जब आप सामनेवाले इनसान को उसके संस्कारों के साथ अपना लेंगे, तो आप यह सब सोचना बंद कर देंगे.
अब आपकी तरफ से उस इनसान तक केवल सकारात्मक ऊर्जा ही जायेगी, जो धीरे-धीरे उस पर असर करेगी. अब वह भी आपकी बातों को काटना बंद कर देगा, बहस करना बंद कर देगा और आपको भी आपके संस्कारों समेत अपना लेगा. इस तरह आपका रिश्ता खूबसूरत हो जायेगा.
बात पते की..
– जब आप सामनेवाले के संस्कारों को सम्मान देंगे, तो वह भी आपके साथ यही बर्ताव करेगा. इस तरह आपके बीच का झगड़ा खत्म हो जायेगा.
– हर इनसान का अपना जीने का तरीका है. आप उसे टोक कर सुधार नहीं सकते. बेहतर है कि आप एक-दूसरे को आरामदायक माहौल दें.

