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वो अफसर, जिसने विदेश मंत्री बनने से किया इनकार

– रेहानफजल – भारतीय अफसरशाही-5 : बीके नेहरू चाहते तो बन जाते संरा महासचिव पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मीडिया सलाहकार रहे एचवाइ शारदा प्रसाद ने एक बार कहा था कि अगर आपको भारत के सबसे संभ्रांत व्यक्ति से बात करनी हो तो बृज कुमार नेहरू से समय मांगिए. विनोदपूर्ण बातें करने और हाजिर-जवाबी में […]

– रेहानफजल –

भारतीय अफसरशाही-5 : बीके नेहरू चाहते तो बन जाते संरा महासचिव

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के मीडिया सलाहकार रहे एचवाइ शारदा प्रसाद ने एक बार कहा था कि अगर आपको भारत के सबसे संभ्रांत व्यक्ति से बात करनी हो तो बृज कुमार नेहरू से समय मांगिए. विनोदपूर्ण बातें करने और हाजिर-जवाबी में उनका कोई जवाब नहीं था.

उनके पास सलीके, अच्छी अभिरुचि और अच्छे भोजन की कभी कमी नहीं रहती थी. उन्होंने अंगरेजी, संस्कृत और फारसी अपने पिता से सीखी थी और वो भी उस समय जब वो अपनी दाढ़ी बना रहे होते थे.

नेहरू परिवार की परंपरा का निर्वाह करते हुए बीके नेहरू पढ़ने के लिए इंगलैंड गये और उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया. वहीं से उन्होंने आइसीएस की परीक्षा पास की. इस दौरान वो एक हंगेरियन लड़की मगदोलना फ्रीडमैन (फोरी) के प्रेमपाश में बंध गये, जो बाद में उनकी पत्नी बनीं और उन्होंने अपने आप को कश्मीरी पंडिताइन के तौर पर ढाल लिया.

उनकी शादी से पहले विजयलक्ष्मी पंडित फोरी को नेहरू से मिलानेकोलकत्ताजेल ले गयीं, जब मुलाकात का समय खत्म हो गया तो जेलर ने नेहरू के हाथ पर हाथ रख कर उनसे अंदर जाने के लिए इशारा किया. इस पर फोरी रोने लगीं. नेहरू ने पीछे मुड़ कर उन्हें अपने परिवार की पहली सीख दी, ‘हम नेहरू कभी भी सार्वजनिक रूप से रोते नहीं हैं.’

आजादी के समय बृज नेहरू वित्त मंत्रलय में संयुक्त सचिव थे. लेकिन उनका रसूख भारत सरकार के कई सचिवों से बढ़ कर था. पचास के दशक में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम रह गया था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना ही खटाई में पड़ गयी थी.

चिंतित सरकार ने बीके नेहरू को आर्थिक मामलों का कमिश्नर जनरल बना कर वाशिंगटन भेजा. उनका मिशन था भारत के लिए अधिक से अधिक विदेशी सहायता लाना.

चंगेज खां से तुलना : उन्होंने अपना काम इतनी बख़ूबी किया कि अमेरिकी राजदूत जेके गालब्रैथ ने उनके बारे में कहा कि चंगेज खां के बाद दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक इतना सोना बीके नेहरू के अलावा कोई नहीं ले गया. इसके बाद नेहरू को साल 1958 में अमेरिका में राजदूत नियुक्त किया गया. हालांकि उस समय भारतीय विदेश सेवा में कई लोग उनसे सीनियर थे.

लेकिन उनका काम ख़ुद बोला और वो इस पद पर दस वर्षो से भी अधिक समय तक रहे. उनके इसी कार्यकाल के दौरान उन्हें अपने जीवन की सबसे दुखद जिम्मेदारी निभानी पड़ी जब उन्होंने केनेडी को प्रधानमंत्री नेहरू का वो पत्र दिया जिसमें चीन से युद्ध के बाद अमेरिका से सैनिक सहायता की मांग की गयी थी.

उन्हीं की कोशिशों के फलस्वरूप अमेरिका ने भारत को 14 लाख टन गेहूं दिया. संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्कालीन महासचिव हैमरशोल्ड की हवाई दुर्घटना में मौत के बाद कई यूरोपीय देश चाहते थे कि बीके नेहरू को इस पद के लिए चुना जाये. नेहरू अपनी आत्मकथा ‘नाइस गाइज फिनिश सेकेंड’ में लिखते हैं कि जब ये बात चल ही रही थी तो अचानक कृष्णा मेनन का फोन उनके पास आया. मेनन ने उन्हें मनाने की कोशिश की कि वो अपने मुंह से कह दें कि संयुक्त राष्ट्र संघ का वो पद उन्हें मंजूर नहीं है.

बीके नेहरू ने ऐसा ही किया. हालांकि हकीकत यह थी कि कृष्णा मेनन ख़ुद इस पद के लिए उम्मीदवार बनना चाहते थे. बाद में नेहरू को अहसास हुआ कि उन्होंने मेनन की सलाह मान कर मूर्खता की थी, क्योंकि मेनन को मालूम था कि पश्चिमी देश मेनन की उम्मीदवारी पर कभी राजी नहीं होंगे. वो पद अंतत: बर्मा के यू थान को मिला. साल 1973 में बीके नेहरू को ब्रिटेन में भारत का उच्चायुक्त बनाया गया.

बीके नेहरू शिष्टाचार और समय के इतने पक्के थे कि 1974 में इंगलैंड गयी भारतीय क्रि केट टीम उनके द्वारा दी गयी पार्टी में देर से पहुंची तो उन्होंने उससे मिलने से इनकार कर दिया.

इंदिरा से मतभेद : आपातकाल के दौरान वो निजी तौर पर इंदिरा गांधी से उसे हटाने का अनुरोध करते रहे, लेकिन सार्वजनिक तौर पर उन्होंने आपातकाल का समर्थन किया. इसी तरह साल 1983 में जब वो जम्मू कश्मीर के राज्यपाल थे तो राज्य के चुने हुए नेता फारूक अब्दुल्ला को बरखास्त करने के मुद्दे पर उनका इंदिरा गांधी से मतभेद हो गया, जिसके बाद उनका तबादला गुजरात कर दिया गया जहां पूरी तौर पर शराबबंदी लागू थी. इंदिरा गांधी को भली-भांति पता था कि नेहरू को शराब से परहेज नहीं था.

जाने-माने पत्रकार इंदर मल्होत्र ने उनसे पूछा कि आपने तबादला स्वीकार करने के बजाय अपने पद से इस्तीफा क्यों नहीं दे दिया. उनका जवाब था, ‘मैं एक हद से ज्यादा इंदिरा गांधी को नाराज नहीं कर सकता था.’

बीके नेहरू का इनकार : 11 फरवरी 1991 को उनके पास प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के सचिव एसके (चॉपी) मिश्र का फोन आया कि वो उनसे मिलना चाहते थे. वो उसी शाम उनसे मिलने आये और उन्होंने उन्हें बताया कि लोकसभाध्यक्ष दल-बदल कानून के तहत तत्कालीन विदेश मंत्री विद्याचरण शुक्ल को लोकसभा सदस्यता से अयोग्य घोषित करने वाले हैं.

सत्ताधारी समाजवादी जनता पार्टी के पास कोई ऐसा शख्स नहीं है, जिसे विदेश मंत्री बनाया जा सके. मिश्र ने उनसे पूछा कि क्या वो भारत का विदेश मंत्री बनना पसंद करेंगे. उन्होंने ये भी कहा कि आप छह महीनों तक बिना कोई चुनाव लड़े इस पद पर बने रह सकते हैं. बाद में उनके लिये एक संसदीय सीट ढ़ूंढ़ ली जायेगी.

बीके नेहरू अपनी आत्मकथा में लिखते हैं कि इससे उनके अहम को संतुष्टि जरूर मिली, लेकिन उन्होंने अधिक उम्र होने के कारण इस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया. उन्होंने कहा कि विदेश मंत्री बहुत ही व्यस्त जीवन जीता है, उसको हर दूसरे दिन विदेश जाना पड़ता है. अपनी उम्र और तेजी से खराब होती आंखों के कारण मैं ये भार शायद बरदाश्त न कर पाऊं.

सार्वजनिक जीवन के हर क्षेत्र में खासा नाम कमाने के बावजूद ये समझ में नहीं आता कि उन्होंने अपनी आत्मकथा का नाम ‘नाइस गाइज ़फिनिश सेकेंड’ क्यों रखा. शायद इसलिए कि वो साल 1961 में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव नहीं बन पाये या इसलिए कि उनकी अपनी भतीजी ने उन्हें कश्मीर के राज्यपाल के पद से हटा दिया या फिर इसलिए कि भारत का विदेश मंत्री बनने का प्रस्ताव उनके पास तब आया, जब वो अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ बसंत देख चुके थे.

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