।। अनुज कुमार सिन्हा ।।
राज्यसभा चुनाव होने जा रहा है और झारखंड है कि अपने अतीत से सबक नहीं ले रहा. दो साल पहले इसी राज्यसभा चुनाव में झारखंड की फजीहत हुई थी. उससे पहले देश में कहीं ऐसा नहीं हुआ था कि राज्यसभा का चुनाव भ्रष्टाचार के कारण रद्द किया गया हो.
यह दाग भी झारखंड के ही माथे पर लगा था. अभी तक धुला भी नहीं है. दो साल पहले की घटना को याद कीजिए. कैसे जमशेदपुर से आ रही एक गाड़ी को आयकर विभाग के अफसरों ने पकड़ा था जिसमें से 2.15 करोड़ रुपये जब्त किये गये थे. आरोप लगा कि एक प्रत्याशी ने यह पैसा विधायकों को खरीदने के लिए भेजा था. इस मामले की सीबीआइ जांच हो रही है.
राज्यसभा चुनाव के एक प्रत्याशी गिरफ्तार किये गये थे. अभी तक जेल में ही हैं. कई विधायकों ने अपने दल के निर्णय के खिलाफ वोट दिया था. पैसे का असर दिखा था. दल की सीमाएं टूट गयी थीं. किसी ने वोट नहीं दिया, किसी ने दूसरे प्रत्याशी को दिया. हैं दूसरे दलों के प्रत्याशी के प्रस्तावक भी बनने के उदाहरण दिखे थे. यह सब ऐसे ही तो नहीं हो गया होगा. खेल था पैसे का.
चुनाव आयोग ने कड़ा फैसला लिया था. राज्यसभा चुनाव ही रद्द कर दिया था. पूरे देश में झारखंड की बदनामी हुई थी. सिर्फ चुनाव के समय ही नहीं, उसके बाद भी. कई विधायकों के घर सीबीआइ का छापा पड़ा था. कुछ के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट भी जारी हुआ था. इस घटना के बाद कोई और राज्य होता तो वहां सुधार दिखता. लेकिन गलतियों से सबक नहीं लेना झारखंड की कमजोरी रही है. यह फिर दिखाई देने लगी है.
झारखंड कोटा से दो सीट खाली हुई है. झारखंड विधानसभा में किस दल की कितनी ताकत है, यह तो सार्वजनिक है. सरकार में झारखंड मुक्ति मोरचा, कांग्रेस और राजद हैं. कुछ निर्दलीयों का भी समर्थन है. भाजपा, आजसू और जेवीएम को पता है कि सिर्फ अपने बल पर सीट जीतना असंभव है.
जब तक दो बड़े दल नहीं मिले, जीत नहीं मिलनेवाली. जिस दल के पास पर्याप्त विधायक नहीं हैं, अगर वे दावा करते हैं तो कहीं न कहीं गड़बड़ी को बढ़ावा देते हैं. बेहतर होता कि सर्वसम्मति से राज्यसभा प्रत्याशी का चुनाव होता. चुनाव की नौबत ही नहीं आती.
राज्यसभा ऊपरी सदन है. श्रेष्ठ व्यक्ति अगर राज्यसभा में जायें तो न सिर्फ संसद की गरिमा बढ़ेगी, बहस का स्तर बढ़ेगा बल्कि इससे राज्य की प्रतिष्ठा भी बढ़ेगी. झारखंड ने ऐसे लोगों को भी राज्यसभा में भेजा है जिसने कभी झारखंड की चिंता नहीं की. कभी कोई सवाल नहीं किया.
संसद में मुंह ताकते रहे. लेकिन इसी झारखंड से ऐसे भी सांसद हैं जिनका कार्यकाल कामों के लिए याद किया जायेगा. अभी कांग्रेस में राज्यसभा जाने के लिए मार हो रही है. भाजपा ने पत्ता नहीं खोला है. आजसू चुप है. झामुमो एक–दो दिनों में मुंह खोलेगा. यह सभी राजनैतिक दलों/विधायकों की जिम्मेवारी है कि वे इस चुनाव में अपने राज्य की बदनामी न होने दें और पैसों के खेल में न फंसे.
जिस दल का हक है (संख्या के दृष्टिकोण से), वह बेहतर से बेहतर प्रत्याशी चुने और प्रयास करे कि चुनाव निर्विरोध हो. सर्वसम्मति से अगर झारखंड से दो ही नाम जाते हैं (जितनी सीट खाली हुई है), तो यह राज्यहित में होगा. किसी को दूसरे दलों के वोट में सेंधमारी का मौका नहीं मिलेगा.
अगर झारखंड ऐसा कर पाताहै तो पिछले राज्यसभा चुनाव में जो दाग झारखंड पर लगा था, वह कुछ धुल सकता है. खोयी प्रतिष्ठा को पाने का अवसर है. झारखंड के राजनेता अब इस बात को जान गये हैं कि चुनाव में पैसे का खेल कितना महंगा पड़ता है. इसलिए उम्मीद है कि इस बार झारखंड के विधायक उस खेल से बचेंगे.