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बच्चों को सिखाना है तो पहले खुद सीखें

।। दक्षा वैदकर।। मेरी बिल्डिंग में रहनेवाली 10 साल की बच्ची सौम्या का कुछ दिनों पहले बर्थडे था. बड़ों के साथ कई बच्चे भी पार्टी में शामिल थे. सभी ने सौम्या को कई तरह के खिलौने गिफ्ट दिये. केक कट जाने के बाद सभी बच्चे उन खिलौनों से खेलने की जिद करने लगे, लेकिन सौम्या […]

।। दक्षा वैदकर।।

मेरी बिल्डिंग में रहनेवाली 10 साल की बच्ची सौम्या का कुछ दिनों पहले बर्थडे था. बड़ों के साथ कई बच्चे भी पार्टी में शामिल थे. सभी ने सौम्या को कई तरह के खिलौने गिफ्ट दिये. केक कट जाने के बाद सभी बच्चे उन खिलौनों से खेलने की जिद करने लगे, लेकिन सौम्या ने सारे खिलौने अपने रूम में रख दिये. कुछ बच्चे उदास हो गये, तो कुछ रोने लगे. यह देख सौम्या की मम्मी ने उससे कहा, ‘बेटा, क्या आप अपने खिलौने बच्चों को खेलने के लिए नहीं दोगी? सौम्या बोली, ‘बिल्कुल नहीं, ये अब मेरे खिलौने हैं.’ मम्मी, ‘आप उनको खिलौना दोगी, तो वे भी आपको अपने खिलौने देंगे, जब आप उनके घर जाओगी.’ सौम्या, ‘मुङो नहीं देने खिलौने.’ मम्मी ने रिश्वत देने की कोशिश की, ‘तुम उनको खिलौने दे दो, फिर मम्मा तुम्हें बड़ा वाला गिफ्ट देगी.’ सौम्या, ‘मुङो नहीं चाहिए गिफ्ट.’ मम्मी ने अब गुस्से में सौम्या को थप्पड़ मारा और जबरदस्ती सारे खिलौने लेकर उन बच्चों को दे दिये. सौम्या अब रोने लगी थी और बच्चे खिलौने हाथों में लेकर हंसने लगे थे. यह दृश्य देख कर मुङो बहुत बुरा लगा. जो बच्चे उनके यहां मेहमान बन कर आये थे, मैंने उन्हें कहा कि चलो हम ट्रेन-ट्रेन गेम खेलें. यह खेल इन खिलौने से भी ज्यादा बेहतर है.

कुछ बच्चों को एक के पीछे एक खड़े कर मैंने ट्रेन शुरू की और हम कमरों में दौड़ लगाने लगे. बाकी बच्चों को इस खेल में ज्यादा मजा आने लगा. उन्होंने खिलौने रोती हुई सौम्या को दे दिये और ट्रेन के पीछे जुड़ते चले गये. सौम्या का रोना अब बंद हो गया था. सारे बच्चों को ट्रेन-ट्रेन गेम में मस्ती करता देख अब उसे भी खिलौनों से नहीं खेलना था. वह भी खिलौने छोड़ ट्रेन में घुस गयी.

अब माहौल सामान्य हो चुका था. सौम्या की मम्मी ने कहा, सौम्या इतनी स्वार्थी कैसे बन गयी, मुझे समझ नहीं आता. मैंने उसकी मम्मी को समझाया, इसमें सौम्या की कोई गलती नहीं है. हमें उसे पहले ही चीजें शेयर करना सिखाना चाहिए था. वैसे भी बच्चों का मन बहुत नाजुक होता है. जब तक उनका खुद का मन किसी चीज से नहीं भर जाता, वे उसे दूसरों को नहीं दे पाते. हमें ऐसी परिस्थिति में बच्चों की भावनाओं को समझना होगा. पहले खुद सीखें फिर बच्चों को सिखाएं.

बात पते की..

क्या आप तोहफे में मिली नयी कार को किसी को चलाने दे सकते हैं? यदि नहीं, तो फिर आप अपने बच्चे से कुछ ऐसी ही उम्मीद कैसे कर सकते हैं.

परिवार में चीजें शेयर करने का माहौल बनायें. बच्चों के लिए खुद उदाहरण बनें. उनके सामने अपनी चीजें दूसरों को दें, ताकि वे भी प्रेरित हो सकें.

Prabhat Khabar Digital Desk
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