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अफगानिस्तान में अभी रहेगी अमेरिकी फौज

वाशिंगटन : अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की नियोजित वापसी पर जहां, पाकिस्तान और तालिबान अपने-अपने हित साधने में लगे हैं, वहीं अमेरिका के एक शीर्ष कमांडर ने इस युद्धग्रस्त देश में लंबे समय तक मौजूदगी बनाये रखने की वकालत की है. अमेरिकी कमांडर ने कहा है कि ऐसा करने से इस्लामाबाद और आतंकी समूह दोनों […]

वाशिंगटन : अफगानिस्तान से अमेरिकी बलों की नियोजित वापसी पर जहां, पाकिस्तान और तालिबान अपने-अपने हित साधने में लगे हैं, वहीं अमेरिका के एक शीर्ष कमांडर ने इस युद्धग्रस्त देश में लंबे समय तक मौजूदगी बनाये रखने की वकालत की है. अमेरिकी कमांडर ने कहा है कि ऐसा करने से इस्लामाबाद और आतंकी समूह दोनों को ही ‘‘एक संदेश” जायेगा. अफगानिस्तान में अमेरिकी बलों के निवर्तमान कमांडर जनरल जॉन कैंपबेल ने कहा कि अमेरिका की दीर्घकालिक प्रतिबद्धता पाकिस्तान, तालिबान और नाटो को एक संदेश भेजती है. कैंपबेल का 18 माह का अफगानिस्तान दौरा पूरा होने वाला है और वह जल्दी ही सेवानिवृत्त होने वाले हैं. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में अमेरिका के 9800 सैनिकों की वर्तमान मौजूदगी को कम करके महज 5500 कर देने से स्थानीय बलों को सहयोग देने की क्षमता ‘‘बेहद सीमित” हो जाएगी.

सीनेट की सशस्त्र सेवा समिति के सदस्यों को कल उन्होंने एक बहस में बताया कि यदि हम दीर्घकालिक प्रतिबद्धता की बात करें, तो इससे दो चीजें होंगी. इससे अफगान सरकार…राष्ट्रीय एकता सरकार में, अफगान जनता में और अफगान सुरक्षा बलों में विश्वास पैदा होगा. कैंपबेल ने कहा कि सैनिकों की संख्या में कटौती की बात सार्वजनिक रूप से उजागर करने से दुश्मन हमारे ‘‘बाहर निकल जाने” का इंतजार करेगा.

उन्होंने कहा कि हमें दीर्घकालिक प्रतिबद्धता के जरिए आगे बढने की जरुरत है ताकि अफगान लोग स्थिरता हासिल कर सकें. उन्होंने कहा कि बहुत से शरणार्थियों द्वारा इस साल अफगानिस्तान छोड़े जाने की वजह यह अस्थिरता है. अफगानिस्तान और पाकिस्तान में आतंकियों की शरणस्थलियों से जुड़े सवाल का जवाब देते हुए कैंपबेल ने कहा कि अमेरिका को इस संबंध में इस्लामाबाद से बात करनी जारी रखनी चाहिए. उन्होंने कहा कि हमे पाकिस्तान के साथ काम जारी रखना होगा. पाकिस्तान और अफगानिस्तान को एक साथ काम करना है. उनकी सेनाओं को आपस में बात करनी चाहिए कि वे कैसे आतंकवाद नामक उस साझे शत्रु से मुकाबला कर सकते हैं, जो किसी सीमा-सरहद को नहीं मानता.

अफगान बलों ने तालिबान समेत आतंकियों के खिलाफ लड़ाई का अपना एक साल का नेतृत्वकाल पूरा कर लिया है. अमेरिका और नाटो बल ‘प्रशिक्षण, सलाह और सहायता’ की भूमिका में रहे हैं.दूसरी ओर अफगान बलों को बडी विफलताओं का भी सामना करना पड़ा. इनमें कुंदुज शहर पर तालिबान का संक्षिप्त कब्जा भी शामिल है. अफगानिस्तान में सुरक्षा की खराब स्थिति इस्लामिक स्टेट के उभार के साथ और भी जटिल हो गई है. आतंकी संगठन पाकिस्तानी सीमा के पास पूर्वी अफगानिस्तान के नांगरहार प्रांत में आधार बनाने की कोशिश कर रहा है.

उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एक बड़ा इलाका अनियंत्रित है. यह वर्षों तक समस्या बना रहने वाला है. इससे निबटने के लिए हम यह कर सकते हैं कि हम इस शत्रु से लड़ने की अफगान बलों की क्षमता बढ़ाते रहें. राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा था कि वह पिछले साल के अंत तक अफगानिस्तान में सैनिकों की संख्या कम करके इसेे 5500 कर देंगे और फिर वर्ष 2016 के अंत में इस संख्या को 1000 कर दिया जायेगा.

Prabhat Khabar Digital Desk
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