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विस्थापन की समस्याएं

देश की सीमाओं के भीतर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाना कहीं से अवैध या गैर-कानूनी नहीं माना जाता है. देश की अर्थव्यवस्था के विकास में भी इसका बेहद योगदान है, जिसे शायद ही कभी आंका जाता है. इतिहास गवाह रहा है कि विस्थापन की त्रासदी से धरती के बहुत कम ही इलाके बचे […]

देश की सीमाओं के भीतर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जाना कहीं से अवैध या गैर-कानूनी नहीं माना जाता है. देश की अर्थव्यवस्था के विकास में भी इसका बेहद योगदान है, जिसे शायद ही कभी आंका जाता है. इतिहास गवाह रहा है कि विस्थापन की त्रासदी से धरती के बहुत कम ही इलाके बचे हैं. देश के आंतरिक विस्थापन के संदर्भ में समस्याओं समेत इससे जुड़े मिथकों और हकीकत पर नजर डाल रहा है आज का नॉलेज..

।।नॉलेज डेस्क।।

दु नियाभर में प्रवासन और पलायन का इतिहास बहुत पुराना है. रोजगार हासिल करने और बेहतर जीवन की उम्मीदों के चलते पूरी दुनिया में देश की सीमा से बाहर और सीमा के भीतर एक स्थान से दूसरे स्थान जाकर रहने और वहां बस जाने की परंपरा बहुत पुरानी है. अस्सी और नब्बे के दशक में प्रतिभा संपन्न लोगों का देश से पलायन करने पर गहरी चिंता जतायी गयी थी. हालांकि, नयी सहस्त्रब्दि में हालात कुछ बदले और पलायन एक चिंता के विषय के तौर पर बदल कर ‘अवसर’ के रूप में सामने आया. कुछ अपवाद को छोड़ दें, तो प्रवासी होने का दंश अक्सर किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ता है.

भारत के संदर्भ में आंतरिक विस्थापन

भारत में, 2001 की जनगणना के मुताबिक देश में आंतरिक विस्थापितों की संख्या 30.9 करोड़ से ज्यादा थी. 2007-008 के एनएसएसओ के आंकड़ों के मुताबिक, कुल आबादी का तकरीबन 30 फीसदी यानी 32.6 करोड़ लोग आंतरिक प्रवासी थे. इसमें सबसे ज्यादा संख्या (70 फीसदी से अधिक) महिलाओं की है. माना जाता है कि यह वर्ग समाज के आर्थिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन से अक्सर वंचित रहा है और इनके साथ द्वितीय-श्रेणी के नागरिक के तौर पर व्यवहार किया जाता है.

वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक आंतरिक विस्थापितों की संख्या 40 करोड़ तक पहुंच चुकी थी. हालांकि, इसे मापने की सैद्धांतिक कठिनाइयों के चलते आंतरिक विस्थापन के आकलन में विभिन्नता पायी गयी है. इसके बावजूद सच्चई यही है कि दस में प्रत्येक तीसरा भारतीय आंतरिक विस्थापन के दौर से गुजर रहा है. भारत में मुख्य रूप से दो प्रकार का विस्थापन देखा गया है. दीर्घकालीन विस्थापन और अल्पकालीन या मौसमी/ चक्रीय विस्थापन.

पलायन की दिशा

वर्ग, लिंग, जाति, भाषा और धर्म के अनुसार आंतरिक विस्थापन की दर में फर्क देखा गया है. महिलाओं में विस्थापन की दर सबसे ज्यादा है. एनएसएसओ (2007-08) के आंकड़ों में बताया गया है कि आंतरिक विस्थापितों में 80 फीसदी महिलाएं शामिल हैं. इसकी बड़ी वजह विवाह के बाद महिलाओं का अन्यत्र निवास करना भी माना गया है. इसी आंकड़े के मुताबिक, ग्रामीण क्षेत्रों में 91.3 फीसदी महिलाएं और शहरी क्षेत्रों में तकरीबन 60.8 फीसदी महिलाएं शादी के बाद दूसरे जगह रहने के लिए चली जाती हैं. देश में सर्वाधिक आंतरिक विस्थापन उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओड़िशा, उत्तराखंड और तमिलनाडु से हुआ है. इनकी ज्यादातर आबादी देश की राजधानी दिल्ली, महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक की ओर पलायन कर चुकी है. देश में पलायन के कुछ चिह्न्ति गलियारे हैं, जैसे- बिहार से राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, हरियाणा और पंजाब, उत्तर प्रदेश से महाराष्ट्र, ओड़िशा से गुजरात, ओड़िशा से आंध्र प्रदेश और राजस्थान से गुजरात.

विस्थापन व शहरीकरण

भारत में शहरों की आबादी वर्ष 2001 में 28.6 करोड़ थी, जो वर्ष 2011 में 37.7 करोड़ तक पहुंच चुकी है. उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2030 तक देश की आबादी 1.4 अरब तक हो जायेगी, जिसमें शहरी जनसंख्या 60 करोड़ तक होने की संभावना है. भारत की जनगणना, 2011 के मुताबिक, आजादी के बाद पिछले दशक में पहली बार ग्रामीण आबादी में बढ़ोतरी (9.1 करोड़) की तुलना में शहरी आबादी में वृद्धि (9.5 करोड़) देखी गयी है. (साभार: यूनेस्को द्वारा जारी ‘भारत में आंतरिक विस्थापितों का सामाजिक समावेश’ रिपोर्ट)

आम धारणा (मिथक) : आंतरिक विस्थापितों को समाज में गंदे नाले और अर्थव्यस्था पर एक बोझ की तरह समझा जाता है.

हकीकत : आंतरिक विस्थापित निर्माण और सेवाओं के लिए सस्ते श्रम के तौर पर योगदान देते हैं और इस तरह से वे नेशनल जीडीपी में योदगान देते हैं, लेकिन इसकी चरचा नहीं होती. गंदे नाले और बोझ समङो जाने से इतर ये विस्थापित अर्थव्यवस्था में व्यापक भूमिका निभाते हैं.

आम धारणा (मिथक) : आंतरिक विस्थापित लोग स्थानीय लोगों की ‘नौकरियां चुरा लेते हैं.’

हकीकत : सच्चाई यह है कि ज्यादातर गरीब प्रवासी उस तरह के तीन निम्न स्तरीय कार्य (गंदगी की सफाई, खतरनाक और अन्य निकृष्टतम) करते हैं, जिसे स्थानीय लोग करने से हिचकते हैं. इसे कहीं से भी ‘नौकरियां चुराना’ नहीं कहा जा सकता.

आम धारणा (मिथक) : आंतरिक विस्थापन को रोका जा सकता है.

हकीकत : विस्थापन और शहरीकरण विकासात्मक अर्थव्यवस्था और सामाजिक परिवर्तन का अभिन्न हिस्सा हैं. इतिहास के अनुभव इस बात को दर्शाते हैं कि इसे रोका नहीं जा सकता.

आम धारणा (मिथक) : विस्थापन के प्रवाह से शहरों में रहना मुश्किल होता जा रहा है.

हकीकत : विस्थापितों को स्वीकार नहीं करने या उन्हें बेहतर सुविधाएं नहीं मुहैया कराने से सरकार खुद इस जोखिम को बढ़ाती है और इससे विकास किये जाने की समग्र क्षमता प्रभावित होती है.

आम धारणा (मिथक) : महिलाओं में ज्यादातर विस्थापन विवाह और संबंधित कारणों से होता है (पलायन करनेवाले परिवार के एक सदस्य के रूप में).

हकीकत : जनगणना और एनएसएसओ के सर्वेक्षणों का प्रारूप कुछ इस तरह से होता है कि उसमें विस्थापन की केवल एक वजह की चरचा होती है. भले ही विवाह को महिलाओं के विस्थापन के लिए सबसे बड़ी वजह मानी जाती हो, लेकिन विस्थापित श्रमिक महिलाओं और उनके आर्थिक योगदान के पहलुओं को पूरी तरह से आंका नहीं जाता है. जबकि विस्थापित श्रमिक महिलाओं का रोजगार में बेहद योगदान है, जिसे पूरी तरह से आंका नहीं जाता है.

प्रवासी किसे कहा जाता है?

एक ऐसा व्यक्ति जो (अर्ध) स्थायी रूप से अपने सामाजिक, आर्थिक और/ या सांस्कृतिक माहौल से इतर आवासीय क्षेत्र में निवास कर रहा हो.

प्रवासन क्या है?

बसने की एक प्रक्रिया, जो या तो देश की सीमा से बाहर हो या फिर देश के भीतर, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति के आवासीय क्षेत्र में अस्थायी या (अर्ध) स्थायी परिवर्तन हो.

आंतरिक प्रवासी कौन है?

एक आंतरिक प्रवासी वह है, जो अपने देश की सीमाओं के भीतर किसी अलग प्रशासनिक क्षेत्र में जाकर बसता (निवास करता) है. इसे आवासन की प्रक्रिया में बदलाव कहा जाता है, जो एक प्रांत से दूसरे प्रांत या एक शहर से दूसरे शहर तक हो सकता है. आज की विकासोन्मुखी दुनिया में सबसे ज्यादा आंतरिक पलायन गांवों से शहरों की ओर हो रहा है.

अस्थायी प्रवासन क्या है?

गैर-स्थायी प्रवास वापस अपने क्षेत्र में आने या उससे भी आगे जाने को इंगित करता है.

चक्रीय प्रवासन क्या है?

चक्रीय प्रवासन हाल-फिलहाल नीति-निर्धारण की परिचर्चाओं और विकास व प्रवासन के हाशिए की चरचाओं के लोकप्रिय संदर्भ में उभर कर आया है. ‘चक्रीय प्रवासन’ की प्रक्रिया बदलती रहती है, जो (सीमा-पार) गतिशीलता की अपेक्षाकृत खुले प्रारूप में होती है. इस तरह का प्रवासन मौसमी ठहराव या अस्थायी कार्य प्रकृति की तरह का हो सकता है. इसका संदर्भ आंतरिक या अंतरराष्ट्रीय प्रवासन से है.

श्रम प्रवासन क्या है?

इसमें प्रवासन का मुख्य मकसद रोजगार या काम हासिल करना होता है.

उत्प्रवासी कौन है?

देश के मूल निवासी के नजरिये से एक प्रवासी.

प्रवासी (परदेशी) कौन है?

गंतव्य देश के नजरिये से एक प्रवासी.

घरेलू प्रेषण क्या है?

घरेलू प्रेषण का तात्पर्य उस धन से है, जिसे एक प्रवासी कहीं अन्यत्र कमाता है और उसे देश के भीतर मौजूद अपने स्थायी घर को भेजता है.

सामाजिक प्रेषण क्या है?

सामाजिक प्रेषण का तात्पर्य विचारों, व्यवहारों, पहचान और सामाजिक पूंजी को प्रवासी व्यक्ति विशेष या प्रवासी समुदायों द्वारा (जो सामाजिक बदलाव में योगदान देते हैं) गंतव्य से स्नेत की ओर भेजने से है.

अनिवार्य स्थानांतरण क्या है?

ऐसा प्रवासन जिसमें उत्पीड़क तत्वों का प्रभुत्व हो.

प्रवासन की शासनविधि क्या है?

प्रवासियों के विनियमन और उनकी रक्षा के मकसद से संस्थाओं, कानूनी व्यवस्थाओं, तंत्र और प्रथाओं की एक व्यवस्था कायम करना.

आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्ति कौन है?

व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह, जिन्हें युद्ध के संभावित दुष्प्रभावों/ नुकसान, सामान्य हिंसा के हालातों, मानवाधिकारों के उल्लंघन या प्राकृतिक अथवा मानव-निर्मित आपदाओं से बचने के लिए उनके रहने के इलाकों से उन्हें विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा हो और उन्होंने देश की अंतरराष्ट्रीय सीमा के भीतर पलायन किया हो.

लौटे हुए प्रवासी किसे कहते हैं?

प्रवास के बाद अपने मूल स्थान की ओर वापस लौटनेवाला व्यक्ति.

पर्यावरण प्रवासी किसे कहते हैं?

पर्यावरण प्रवासी वे लोग या व्यक्तियों के वे समूह हैं, जो अपनी जिंदगी को पर्यावरण के खतरों से बचाने के लिए अस्थायी या स्थायी रूप से या तो देश के भीतर या फिर देश के बाहर अन्यत्र पलायन कर जाते हैं.

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