काठमांडो : भारत ने आज कहा कि नेपाल के नये संविधान का मुकम्मल होना खुशी का अवसर होना चाहिए ना कि हिंसा का. विदेश सचिव एस जयशंकर ने नेपाल के अपने दो दिवसीय दौरे का समापन करते हुए कहा, ‘भारत हमेशा दृढता से संविधान निर्माण प्रक्रिया का समर्थन करता रहा है हम चाहेंगे कि इसका पूरा होना खुशी और संतोष का अवसर हो ना कि आंदोलन और हिंसा का.’ उन्होंने यह बात संघीय ढांचा के खिलाफ मधेशी समूहों के विरोध प्रदर्शनों के बाद कही. संविधान कल से लागू होगा. नेपाल में भारतीय राजदूत रंजीत राय के साथ जयशंकर ने आज सुबह त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर मीडिया कर्मियों के साथ बातचीत में संक्षिप्त टिप्पणी की लेकिन सवालों का जवाब नहीं दिया.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विशष दूत के तौर पर यहां आये जयशंकर ने कल शीर्ष नेताओं से मुलाकात की और नये संविधान लागू होने में सभी पक्षों की चिंताओं के निराकरण की जरुरत को रेखांकित किया. उन्होंने उल्लेख किया कि इससे सतत शांति और विकास उपलब्धियों की रक्षा होगी. विदेश सचिव की टिप्पणी नेपाल के दक्षिणी तराई क्षेत्र में आंदोलनों की पृष्ठभूमि में आयी है. देश कल से अपना नया संविधान लागू करने की तैयारी कर रहा है. जयशंकर ने राष्ट्रपति रामबरण यादव और प्रधानमंत्री सुशील कोइराला समेत नेपाल के विभिन्न दलों के राजनीतिक नेतृत्व से मुलाकात की.
उन्होंने नेपाल के भावी प्रधानमंत्री के तौर पर देखे जा रहे सीपीएन-यूएमएल अध्यक्ष के पी शर्मा ओली और यूसीपीएन माओवादी प्रमुख प्रचंड से भी मुलाकात की. उन्होंने तराई मधेश डेमोक्रेटिक पार्टी के अध्यक्ष महंत ठाकुर, फेडरल सोशलिस्ट पार्टी नेपाल के अध्यक्ष उपेंद्र यादव, मधेशी पीपुल्स राइट्स फोरम डेमोक्रेटिक के अध्यक्ष विजय गछदार सहित तराई क्षेत्र के आंदोलन कर रहे कई नेताओं से भी मुलाकात की.
अपने संक्षिप्त दौरे के दौरान जयशंकर ने तराई क्षेत्र में आंदोलन के संबंध में भारत की चिंताओं से अवगत कराने के साथ ही संविधान निर्माण प्रक्रिया पर मंगल कामना प्रकट की. राष्ट्रपति यादव यहां विशेष समारोह में नये संविधान की घोषणा करेंगे. बडे दलों के नेताओं ने लोगों को इस अवसर पर रंगारंग प्रकाश करने को कहा है क्योंकि 66 साल के लोकतांत्रिक संघर्ष के बाद नेपाल में लोगों द्वारा लिखा गया संविधान लागू होगा. बहरहाल, प्रदर्शन कर रही मधेशी पार्टियों ने दक्षिणी मैदान में आंदोलन का आह्वान किया है क्योंकि उनका दावा है कि संविधान में उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया.