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चीनी ड्रैगन की विकास की रफ्तार 24 सालों में सबसे कम हुई : रिपोर्ट

वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बड़ी खबर सामने आई है. समाचार एजेंसी रायटर्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में जगह बना चुका चीन अपनी तेज रफ्तार खोता नजर आ रहा है. पिछले कुछ सालों में दुनिया के हर बड़े देश को आर्थिक मंदी और विकास दर में कमी का सामना करना […]

वैश्विक अर्थव्यवस्था में एक बड़ी खबर सामने आई है. समाचार एजेंसी रायटर्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं में जगह बना चुका चीन अपनी तेज रफ्तार खोता नजर आ रहा है. पिछले कुछ सालों में दुनिया के हर बड़े देश को आर्थिक मंदी और विकास दर में कमी का सामना करना पड़ा है. इसी कड़ी में दुनिया की तीसरी शीर्ष अर्थव्यवस्था वाले देश जापान को भी 2014 का अंत होते-होते भारी मंदी ने घेर लिया था.
चीन की अर्थव्यवस्था का विकास पिछले तीस सालों में जबरदस्त तरीके से हुआ है और अपने यहां निर्माण, इलेक्ट्रोनिक्स और उद्योगों के हब बनाने की वजह से देखते ही देखते चीन दुनियाभर के लिए सबसे बड़ा निर्यातक देश बन गया. इसका नतीजा ये हुआ कि चीन की अर्थव्यवस्था दुनिया में अमेरिका के बाद दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गयी.
लेकिन अब इस ड्रैगन के पंखों का विस्तार सिमटता नजर आ रहा है. साल 2014 के आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल चीन की अर्थव्यवस्था का विकास पिछले 24 सालों में सबसे कम रहा और दुनिया भर के आर्थिक विशेषज्ञ अब ये अनुमान लगा रहे हैं कि इस साल भी चीन के विकास में ये गिरावट जारी रहेगी. ऐसा होने पर निश्चित है कि चीन के नेताओं पर इसका जबरदस्त दबाव पड़ेगा.
हालांकि, कुछ लोग ये मान रहे हैं कि चौथी तिमाही के दौरान ऐसा हो सकता है कि शायद चीन की इस स्थिति में कुछ सुधार नजर आये. ऐसा होने पर शायद चीन कुछ राहत की उम्मीद कर सकता है.
जानकारों के मुताबिक, चीन के प्रोपर्टी मार्केट में आ रही गिरावट ने इसमें बहुत असर डाला है. चीन के नीति निर्माताओं की कोशिशों के बावजूद बैंकों से मिले आंकड़े ये साबित करते हैं कि इस क्षेत्र में लागत में बढ़त और मांग में कमी होने की वजह से ये क्षेत्र पिछड़ता जा रहा है. 2015 में भी ये क्षेत्र चीन के लिए चिंता का विषय बना रह सकता है.
साम्यवादी चीन के नेता चीन में उद्योगों की अत्यधिक मौजूदगी के कारण ऊर्जा की बढती मांग और इसके ऊंचे दरों के साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में उत्पादों की घटती मांग को लेकर परेशान हो गए हैं.
यही हालत चीन की प्रांतीय सरकारों का भी है. वहां भी उद्योगों के लिए प्रोपर्टी की बिक्री सरकारों की आय का सबसे बड़ा जरिया है लेकिन पहले से ही कर्ज में डूबी प्रांतीय सरकारों की आय का जरिया, घटती मांग और बढती लागत की वजह से कम होता जा रहा है.
इसके अलावा चीन का ऊर्जा क्षेत्र भी नीचे गिर रहा है. पॉवर सेक्टर में चीन ने साल 1998 के बाद सबसे कम ग्रोथ दर्ज किया है. ये आंकड़ा पिछले साल महज 3.2 फीसदी रहा.
अंतरराष्ट्रीय पैमाने पर देखा जाये तो चीन की अर्थव्यवस्था का कमजोर होना दुनिया के अन्य देशों की अर्थव्यवस्था के उत्थान और विकास के लिए अच्छा साबित हो सकता है.
फिलहाल तो सबकी निगाहेँ चीन की विकास रपट की चौथी तिमाही के नतीजों पर है. उसके बाद ही ये स्पष्ट हो पायेगा की आनेवाले दिनों की चुनौतियों से निबटने के लिए चीन के कठोर साम्यवादी नेता कौन सा रास्ता चुनते हैं. पूरी दुनिया की निगाह इस पर लगी हुई है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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