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छोटानागपुर को किया गौरवान्वित, 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिवीर शहीद पांडेय गणपत राय

डॉ श्रीमती वंदना राय 1857 के अमर शहीदों में छोटानागपुर की मुक्तिवाहिनी सेना के सेनापति पांडेय गणपत राय का नाम तब तक अमर रहेगा, जब तक प्रथम स्वाधीनता संग्राम की यादें जीवित रहेंगी. इतिहास के पन्नों में छोटानागपुर को जिन महापुरुषों ने गौरव प्रदान किया, उनमें भौंरो ग्राम में जन्म लेनेवाले वीर पांडेय गणपत राय […]

डॉ श्रीमती वंदना राय

1857 के अमर शहीदों में छोटानागपुर की मुक्तिवाहिनी सेना के सेनापति पांडेय गणपत राय का नाम तब तक अमर रहेगा, जब तक प्रथम स्वाधीनता संग्राम की यादें जीवित रहेंगी. इतिहास के पन्नों में छोटानागपुर को जिन महापुरुषों ने गौरव प्रदान किया, उनमें भौंरो ग्राम में जन्म लेनेवाले वीर पांडेय गणपत राय एक थे. ब्रिटिश शासन ने शोषण का जो अध्याय आरंभ किया, उससे क्रांति का वातावरण बना ब्रिटिश शासन के विरुद्ध पहले से ही यहां के जनजातियों एवं सदानों में आक्रोश की भावना विद्यमान थी.

जमींदारों पर करों (टैक्स) का बोझ बढ़ाना. करों (टैक्स) के माध्यम से जनता का शोषण करना, अंगरेजी साम्राज्य के प्रचार-प्रसार करने का यह साधन बन गया था. जिस साम्राज्य का साध्य और साधन दोनों जनभावना के विपरीत हो उसके विरुद्ध क्रांति का शंखनाद तो स्वाभाविक है. अंगरेजी शासन और छोटानागपुर के जमींदारों के बीच कैसे संबंध थे. इसका अनुभव पांडेय गणपत राय को था. इनके मन में अंगरेजी के स्वार्थ पूर्ण नीति और शोषण से मुक्ति प्रवृत्ति के विरुद्ध घृणा थी. इसी कारण इन्होंने अंगरेजों को भगाने के लिए मुक्तिवाहिनी सेना के सेनापति का पद स्वीकार किया.

रामगढ़ बटालियन की डोरंडा छावनी के सैनिकों ने जब अंगरेजों के विरुद्ध विद्रोह कर दिया तब उनको नेतृत्व देने वाले पांडेय गणपत राय ही थे जिनके पास छोटानागपुर की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान था. उनके मन में बाबू कुंवर सिंह के साथ मिल कर विद्रोह को साकार बनाने की योजना थी.

पांडेय गणपत राय जैसे सेना नायक को कई विपरीत परिस्थितियों से सामना करने के बाद एक महीने के लिए ही सही रांची को अंगरेजी शासन से मुक्ति दिला दी थी. मुक्तिवाहिनी सेना के नेतृत्व में ही रांची कचहरी पर अधिकार किया. खजाने को लूटा तथा जेल का दरवाजा खोल दिया. बंदियों को आजाद कर दिया. पांडेय गणपत राय को कई मोरचे पर अंग्रेजों का समाना करना पड़ा.

गणपत राय आगे की योजना बनाने के लिए भौरो गांव लौट गये. ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव को 16 अप्रैल 1858 को फांसी पर चढ़ाया गया. गणपत राय जी अपने मित्र के घर गये. मित्र महेश नारायण शाही ने उनका एक ओर आदर सत्कार किया, दूसरी ओर मित्रता को शर्मसार करते हुए उन्हें जिस कमरे में बैठाया था, उसकी कड़ी बाहर से लगा दी. अंगरेज अधिकारियों को सूचना दे दी. पांडेय गणपत राय को पकड़वाकर शाही ने मित्रता को शर्मसार किया. 21 अप्रैल 1858 को पांडेय गणपत राय को फांसी की सजा मिली और उसी दिन उन्हें रांची में वर्तमान शहीद स्थल पर कदम के पेड़ पर फांसी दे दी गयी.

‘वक्त जब गुलशन पर पड़ा, तो खून हमने दिया जब बहार आयी तो कहते हैं तेरा काम नहीं’. लेकिन विडंबना है आज हम ही इन शहीदों की शहादत को नहीं मानते. सैकड़ों गुमनाम शहीदों को सम्मान चाहिए, सरकारी आकड़ों वाले झारखंड के शहीदों की स्थिति यही है. झारखंड की मिट्टी शहीदों के खून से लथपथ है, काश आज हमारी झारखंड सरकार के पास कोई ऐसी योजना होती कि इन शहीदों की याद में ऐसा कुछ किया जाये जो यादगार बने.

17 जनवरी 1809 में इनका जन्म ग्राम भौरो, ब्लॉक भंडरा, जिला लोहरदगा में हुआ था. शहीद पांडेय गणपत राय के प्रपौत्र राजेश्वर नाथ आलोक ने स्मारक स्थल बनाने के लिए भूमि दान दी. आज भौंरो ग्राम में शहीद पांडेय गणपत राय का स्मारक है, जहां प्रति वर्ष शहीद को जयंती मनायी जाती है. मैं शहीद पांडेय गणपत राय जी की वीरता अपने पिता पांडेय तारकेश्वर नाथ राय से सुनते आयी हूं. इस परिवार में जन्म लेने से आज भी मुङो फर्क है, किंतु शहीद गणपत राय जी को एवं अन्य क्रांतिवीरों को वो सम्मान आज तक नहीं मिला जिसके वे हकदार है. लेखिका शहीद पांडेय गणपत राय की प्रपौत्री व अर्थशास्त्र की व्याख्याता हैं

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