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दक्षा वैदकर मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में बीते रविवार को एक अखबार द्वारा ‘इंदौर के हमराह’ कार्यक्रम आयोजित किया गया. यह एक बेहद अनूठा आयोजन था. आम दिनों में शहर की जो सड़क सबसे ज्यादा व्यस्त रहती है, वहां गेम्स, संगीत, योगा और न जाने क्या-क्या चीजें एक साथ हो रही थी. छोटे बच्चे […]

दक्षा वैदकर

मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में बीते रविवार को एक अखबार द्वारा ‘इंदौर के हमराह’ कार्यक्रम आयोजित किया गया. यह एक बेहद अनूठा आयोजन था. आम दिनों में शहर की जो सड़क सबसे ज्यादा व्यस्त रहती है, वहां गेम्स, संगीत, योगा और न जाने क्या-क्या चीजें एक साथ हो रही थी. छोटे बच्चे हों या प्रशासनिक अधिकारी, दादा-दादी हों या मम्मी-पापा, सभी पुराने-जमाने के खेल खेलने में व्यस्त थे.

कहीं सितौलिया खेला जा रहा था, तो कहीं रस्सी कूदी जा रही थी. एक तरफ हास्य क्लब के लोग ठहाके लगा रहे थे, दूसरी तरफ योग हो रहा था. हिला हूप्स व एरोबिक्स जैसी चीजें भी लोग सड़क पर ही कर रहे थे. पहलवान दंड पेल रहे थे, तो क्लासिकल डांसर प्रस्तुति दे रहे थे. यह एक कार्निवाल जैसा लग रहा था. शहर के कई लोगों ने इसमें हिस्सा लिया और खूब एंजॉय किया. इनमें भाग लेने वाले कुछ लोग मेरे परिचित भी थे, तो मैंने फोन पर उनसे अनुभव लिया. सभी ने कहा कि सालों बाद अपने बचपन के खेल को खेल कर मजा आ गया. एक मित्र ने कहा, ‘मुङो तो याद भी नहीं कि आखिरी बार मैंने रस्सी कब कूदी थी. इतने दिनों बाद रस्सी कूदी और खूब पसीना बहाया. अब बिल्कुल फ्रेश महसूस कर रहा हूं.’ एक अधिकारी ने बताया कि जमाने से कारों में ही घूम रहा हूं. आज साइकिल पकड़ी, तो लगा दोबारा बचपन लौट आया है. अब सोच रहा हूं कि हर संडे साइकल चलाऊं ताकि बचपन की यादें ताजा हो जायें.

इंदौर के इस आयोजन को यहां बताने का मकसद मेरा सिर्फ यह है कि हम भी इस तरह पुराने खेलों को खेल कर खुद को फ्रेश कर सकते हैं. जरूरी नहीं कि कोई इस तरह का बड़ा आयोजन करे, तो ही हम इसमें भाग लें. ऐसा हम खुद भी कर सकते हैं. आज ही तय करें कि अब अगले संडे से हम ऐसे खेल खेलेंगे, जो बचपन के दिनों में खेला करते थे. फिर वह गिल्ली-डंडा, क्रिकेट हो या कुछ और. अपने इस आइडिया में अपने दोस्तों को, ऑफिस के सहकर्मियों को, परिवार वालों को भी शामिल कर सकते हैं. इससे न केवल आप तरोताजा महसूस करेंगे, बल्कि लोगों से मेल-जोल भी बढ़ेगा.

बात पते की..

– छुट्टी के दिन को केवल दिनभर सोने या फिल्में देखने में बर्बाद न करें. कुछ शारीरिक श्रम वाले गेम्स भी खेलें. इससे आपको अच्छा लगेगा.

– हर समय गंभीर रहना, खुद तक सीमित रहना ठीक नहीं. बच्चों व दोस्तों के साथ थोड़ी मस्ती भी जरूरी है. इससे प्रेम व आपसी समझ बढ़ती है.

Prabhat Khabar Digital Desk
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