आपको शायद यह नहीं पता होगा कि आपके पास मौजूद स्मार्टफोन जल्द ही कई तरह की बीमारियों के इलाज का एक कारगर उपकरण बन सकता है. यहां तक कि यह इबोला जैसी बीमारी के निदान और उसके संक्रमण को रोकने में भी मददगार साबित हो सकता है.
विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि निकट भविष्य में स्मार्टफोन डॉक्टरों द्वारा की जाने वाली सजर्री में मदद करेगा.
न्यूयार्क में आयोजित वर्ल्ड चेंजिंग आइडियाज समिट में स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट, कैलिफोर्निया में जीनोमिक्स के प्रोफेसर एरिक टोपोल द्वारा दिये गये वक्तव्य के हवाले से फीचर लेखक डेविड रॉबसन की ‘बीबीसी डॉट कॉम’ पर जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि इबोला जैसी बीमारियों से निपटने के लिए हम स्मार्टफोन को कारगर हथियार के तौर पर काम में ला सकते हैं.
उनका मानना है कि ज्यादातर संचारी बीमारियों का इलाज स्मार्टफोन की मदद से किया जा सकता है. यानी स्मार्टफोन के इस्तेमाल से उन मरीजों को भी बचाया जा सकता है, जो महज इंफेक्शन की वजह से मौत के मुंह में चले जाते हैं. फिलहाल हो यह रहा है कि इबोला के संदिग्ध मरीजों को तीन सप्ताह तक निगरानी में रखा जाता है. इबोला से निपटने के मौजूदा तरीके से टोपोल सहमत नहीं हैं. इस समय मरीज की दिनचर्या और उसकी तकलीफों, व्यवहारों आदि को जानने के लिए डॉक्टर को उसके साथ फेस-टू-फे स होना पड़ता है. लेकिन, स्मार्टफोन के इस्तेमाल से किसी बीमारी के इलाज के दौरान मरीज को बार-बार हॉस्पिटल जाने, वहां इंतजार करने की जरूरत नहीं होगी.
मरीज को मिलेगी बार-बार अस्पताल जाने से मुक्ति
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में कार्यरत और ओपेन एमहेल्थ के सह-संस्थापक डेबोरा एस्ट्रिन के मुताबिक, स्मार्टफोन हमें कहीं भी ले जाने में सक्षम है. एस्ट्रिन की संस्था गैर-लाभकारी है और उनका मकसद चिकित्सा में इस तरह के व्यक्तिगत एवं डिजिटल आंकड़ों का इस्तेमाल करना है. उनका कहना है कि स्मार्टफोन के जरिये आपके स्वास्थ्य संबंधी आंकड़े तेजी से अस्पताल के पास पहुंच जायेंगे, जिसके लिए अभी आपको एंबुलेंस का इंतजार करना होता है. एक साधारण प्लग से इसे जोड़ने पर यह आपका ब्लड प्रेशर और ब्लड शुगर का स्तर माप सकता है और यहां तक कि यूरीन का विश्लेषण भी कर सकता है. इन संभावनाओं को अब तक कम ही डॉक्टरों ने अपनाया है.
टोपोल का कहना है कि मेडिकल प्रोफेशनलों नेइस तरह के डिजिटल माध्यमों को पूरी तरह नहीं पनपने दिया है, जबकि पूरी दुनिया में रोजमर्रा की जिंदगी में डिजिटल क्रांति आ चुकी है. हालांकि, फिलहाल इसमें कई खामियां हैं, जिस कारण डॉक्टरों को इस पर पूरा भरोसा नहीं हुआ है. डॉक्टरों का मानना है कि इसमें और सुधार की जरूरत है. हेल्थकेयर सिस्टम की धीमी गति भी इसके लिए जिम्मेवार है.
एस्ट्रिन और टोपोल ने सुझाया है कि मौजूदा इलाज के तरीके को आगे बढ़ाने और बीमारियों की मॉनीटरिंग के लिए मोबाइल एप्स का इस्तेमाल होना चाहिए. उदाहरणस्वरूप, एक हृदय रोगी स्मार्टफोन एप्प की मदद से साप्ताहिक रूप से अपने ब्लड प्रेशर पर नजर रख सकता है. इस तरीके से वे यह जान सकेंगे कि उनका ब्लड प्रेशर सोमवार को उस समय असामान्य होता है, जब वे अपने कार्यस्थल पर आते हैं. या बीती शाम उनकी दवा खत्म हो गयी या उसे खाना भूल गये.
इसके अलावा, रूमेटॉइड ऑर्थराइटिस (ऑर्थराइटिस का एक प्रकार) के मरीज को चलने-फिरने में दिक्कत होने की अवस्था में इस समस्या को समय रहते जाना जा सकता है. बीमारी को गंभीर अवस्था में आने से पहले ही डॉक्टर उसका इलाज करने में सक्षम हो सकते हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह तो महज एक शुरुआत हो सकती है. व्यक्तिगत आनुवंशिक आंकड़ों और शरीर के खास बैक्टीरिया की स्क्रिनिंग से जुड़ी सूचनाओं से भी अनेक बीमारियों का इलाज मुमकिन हो सकता है.
संक्रामक रोगियों की निगरानी आसान
टोपोल का मानना है कि चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित अनेक मिथकों को हम अब तक पूरी तरह से जान नहीं पाये हैं. उनका नजरिया इस संबंध में बेहद आशावादी है और उनका मानना है कि स्मार्टफोन के जरिये स्वास्थ्य देखभाल की तकनीक भले ही अभी आरंभिक चरण में है, लेकिन इसमें जल्द तेजी आयेगी.
ऐसा अकसर होता है कि हमें डॉक्टर से मिलने का समय बड़ी मुश्किल से मिल पाता है. अस्पताल तक स्वयं न पहुंच पाने की वजह से मरीज के इलाज में जो मौजूदा बाधाएं हैं, वे स्मार्टफोन के जरिये खत्म हो सकती हैं. डॉक्टर और मरीज के बीच के वीडियो कम्युनिकेशन और जरूरी डाटा के आदान-प्रदान के जरिये एक स्मार्टफोन इलाज के तौर-तरीकों में व्यापक बदलाव ला सकता है.
इबोला के संबंध में एस्ट्रिन का कहना है कि स्मार्टफोन के लोकेशन डाटा रिकॉर्ड के माध्यम से हमें यह जानने में भी सहायता मिल सकती है कि इससे संक्रमित व्यक्ति कहां-कहां जा रहा है और वह किन-किन लोगों से मिल रहा है. भले ही इसे निजता से जुड़ा हुआ मामला बताया जाये और आंकड़े एकत्रित करना थोड़ा मुश्किल हो, लेकिन इससे यह तो जाना ही जा सकता है कि किन लोगों को निगरानी के दायरे में रखना चाहिए. उनका कहना है कि दुनियाभर में फैल रही इबोला के इलाज में स्मार्टफोन का इस्तेमाल तेजी से बढ़ाना होगा.
मौजूदा जांचों के लिए विशेष प्रयोगशाला की जरूरत पड़ती है, जो दुनिया के पिछड़े इलाकों में उपलब्ध नहीं हैं. ऐसे इलाकों में मोबाइल फोन में खास चिप लगाकर ‘पॉलीमेरस चेन रिएक्शन’ की तकनीक से उसे जांच के लिए भेजा जा सकता है. पॉलीमेरस चेन रिएक्शन फ्लोरेसेंट डाइ के साथ मरीज के खून के नमूने को मिलाने पर रोगाणुओं के डीएनए से हासिल लक्षणों के बारे में विस्तार से बताने का कार्य करता है.
सेहत का ख्याल रखेगा माइक्रोसॉफ्ट का फिटनेस बैंड और हेल्थ सॉफ्टवेयर
दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर निर्माता कंपनी माइक्रोसॉफ्ट ने अपना पहला वियरेबल (पहनने वाला) डिवाइस लॉन्च किया है. ‘माइक्रोसॉफ्ट बैंड’ नामक इस डिवाइस को लॉन्च करके माइक्रोसॉफ्ट ने वियरेबल डिवाइस के बाजार में अपनी मौजूदगी दर्ज करा दी है. कलाई में पहना जानेवाला यह डिवाइस आपकी सेहत का ख्याल रखेगा. यह आपके एक्सरसाइज करने की आदत पर भी नजर रख सकता है.
माइक्रोसॉफ्ट ने अपने ब्लॉग में बताया है कि यह नया फिटनेस गैजेट एक ऐसा ब्लूटूथ डिवाइस है, जो इसे पहननेवाले व्यक्ति के स्वास्थ्य से संबंधित तमाम जरूरी चीजों को रोजाना इंगित करेगा. इसमें पल्सरेट सेंसर आपकी हृदय की गति को नापता है. व्यक्ति कितनी देर गहन निद्रा में सोता है, कितनी देर व्यायाम करता है और उसके शरीर में कितनी कैलोरी का दहन हुआ है, इस तरह की तमाम सूचनाएं भी यह गैजेट मुहैया करायेगा. इसके अलावा, यह हार्ट रेट को ट्रैक करेगा. साथ ही जीपीएस के माध्यम से आपको लोकेशन बतायेगा.
‘द गाजिर्यन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक बार चार्ज करने के बाद डिवाइस यह दो दिन तक काम करेगा और चौबीसों घंटे हार्ट रेट की मॉनीटरिंग करेगा. कंपनी की ओर से बताया गया है कि यह डिवाइस अगले कुछ दिनों में अमेरिका में 199 डॉलर में उपलब्ध हो पायेगा.
हेल्थ और फिटनेस डाटा
निर्माण प्रक्रिया के दौरान इस बैंड में एक माइक्रोफोन लगाया गया और उसे स्मार्टफोन से जोड़ा गया, ताकि सूचनाओं को दर्शाया जा सके और विंडोज फोन्स कोर्टाना की भांति वॉयस असिस्टेंट को एक्टिवेट किया जा सके. यह ठीक उसी तरह का एक फैशन है, जो गूगल के एंड्रॉयड वीयर स्मार्टवाच में है. इस बैंड को विंडोज फोन्स, आइफोन्स, एंड्रॉयड डिवाइसेज और विंडोज व मैक कंप्यूटर से सिंक डाटा में जोड़ा जायेगा. गूगल के फिट और एप्पल के हेल्थ एम्स की तरह ही माइक्रोसॉफ्ट का यह बैंड भी फिटनेस आंकड़े एकत्रित करेगा.
माइक्रोसॉफ्ट के कॉरपोरेट वाइस प्रेसीडेंट के ब्लॉग के हवाले से इस रिपोर्ट में बताया गया है कि क्लाउड सर्विस का इस्तेमाल करते हुए माइक्रोसॉफ्ट हेल्थ प्लेटफॉर्म इसके इस्तेमालकर्ताओं को हेल्थ फिटनेस संबंधी जरूरी आंकड़े मुहैया करायेगा.
यह एप्प फिटनेस बैंड से आंकड़े एकत्रित करके इस्तेमालकर्ताओं के आइफोन, एंड्रॉयड स्मार्टफोन्स और कंपनी के अपने विंडोज फोन्स पर उन्हें भेजेगा.
फिर माइक्रोसॉफ्ट का ‘इंटेलिजेंस इंजन’ फिटनेस सूचनाओं को आपस में जोड़ने वाले विभिन्न माध्यमों से आंकड़े हासिल करके उन्हें इस्तेमालकर्ता के कैलेंडर, इमेल और लोकेशन के आधार पर विेषित करेगा, जिससे उसके स्वास्थ्य के बारे में ज्यादा विस्तार से जानकारी मुहैया करायी जा सकेगी.
कंपनी की ओर से बताया गया है कि इन आंकड़ों को क्लाउड में सुरक्षित रखा जायेगा और इस्तेमालकर्ता माइक्रोसॉफ्ट के हेल्थ वॉल्ट के माध्यम से इन आंकड़ों को किसी भी समय क्लाउड से हासिल सकते हैं और मेडिकल विशेषज्ञों से किसी तरह की सलाह लेने के लिए इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. ग्राहकों को नये हेल्थ प्लेटफॉर्म मुहैया कराने के मकसद से इसे कुछ अन्य एप्प (जॉबोन, मैप माइ फिटनेस, माइ फिटनेस पाल और रनकीपर) से भी जोड़ा जायेगा.
माइक्रोसॉफ्ट के ‘माइक्रोसॉफ्ट बैंड’ में 10 अलग-अलग तरह से स्मार्ट सेंसर लगे हुए हैं- जैसे यूवी सेंसर, सन एक्पोजर सेंसर, गैलवैनिक स्किन रिसॉन्स सेंसर. इसके अलावा, इसमें हार्ट रेट मॉनीटरिंग और स्लीप क्वॉलिटी ट्रैकिंग जैसे अत्यंत उपयोगी फीचर भी दिये गये हैं, जो आपकी दिनभर की दिनचर्या पर नजर रखते हैं. सेहत पर नजर रखने के अलावा माइक्रोसॉफ्ट फिटनेस ट्रैकर से आप अपने फोन में आनेवाली कॉल, मैसेज, मेल भी ट्रैक कर सकते हैं.
कैंसर और हार्ट अटैक के बारे में समय रहते बता देगी गूगल की ‘पिल’
जी हां! गूगल एक ऐसी नैनोपार्टिकल पिल बना रहा है, जो कैंसर, हार्ट अटैक और अन्य बीमारियों के बारे में इंसान को समय रहते अलर्ट करेगी. यानी इन बीमारियों के समस्याओं का रूप धारण करने से पहले ही उनके बारे में बता देगी. इस पिल में मैग्नेटिक पार्टिकल्स होंगे, जो इनसान के बाल की मोटाई के मुकाबले तकरीबन दस हजार गुना छोटे होंगे.
‘द गाजिर्यन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ये सूक्ष्म कण एंटीबॉडीज या प्रोटीन्स होंगे, जिसे उनसे जोड़ा जायेगा, जो शरीर के भीतर के ‘बायोमार्कर’ कणों की मौजूदगी की पहचान करेगा. इसके सूचक कैंसर या हार्ट अटैक के बारे में पहले से चेतावनी देने में सक्षम होंगे.
गूगल के ‘मूनशॉट’ एक्स रिसर्च लैब के लाइफ साइंस के मुखिया एंड्रयू कॉनरेड ने हाल ही में कैलिफोर्निया में आयोजित एक कान्फ्रेंस में बताया कि इसके पीछे का आइडिया काफी साधारण है. इसके लिए आपको महज एक पिल को गटकने की जरूरत है. इस पिल में नैनोपार्टिकल्स होंगे, जिसमें कुछ खास एंटीबॉडीज या कण होंगे, जो अन्य कणों की पहचान करेंगे.
पूरे शहर के मरीजों पर एक साथ नजर
कॉनरेड का कहना है कि इस तकनीक के कार्यान्वित होने से किसी एक पूरे शहर में रहनेवालों का स्वास्थ्य संबंधी आंकड़ा डॉक्टर के पास भेजा जा सकेगा. मौजूदा मेडिकल तकनीक के तहत डॉक्टर को पूरे शहर में जाकर लोगों को इलाज करना होता है. लेकिन इस तकनीक के विकसित होने से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि डॉक्टर एक स्थान से ही मरीजों के स्वास्थ्य की निगरानी कर पायेंगे. कॉनरेड का कहना है कि इस तकनीक की मदद से (नैनोपार्टिकल्स की मदद से बनाये गये ट्रैप को मैग्नेट से जोड़ कर बनायी गयी युक्ति) आप अपने शरीर की सतही नसों को देख सकते हैं. रक्त प्रवाह के माध्यम से इन कणों को पढ़ने में मदद मिलती है. इस तरह से आप अपने शरीर के भीतर पनप रही कैंसर जैसी घातक बीमारियों को आरंभिक अवस्था में ही जान पायेंगे. हार्ट अटैक की आशंका होने की स्थिति में भी यह उसके लक्षणों को इंगित करेगा. यदि आपके शरीर में सोडियम या किसी अन्य हानिकारक तत्व की मात्र ज्यादा हो गयी है, तो उसके बारे में भी यह आपको बतायेगा.
यह प्रक्रिया रिएक्टिव मेडिसिन से एक कदम आगे की चीज है और उसी का हिस्सा है, जिसे मरीज की बीमारी के गंभीर होने की स्थिति में उपचार के तौर पर काम में लाया जाता है. इस प्रणाली के तहत किसी व्यक्ति के शरीर में पनप रही बीमारी को समस्या बनने से पहले उसे समझा जा सकेगा और उस व्यक्ति को डॉक्टर से सलाह लेने के बारे में इंगित करेगा. हालांकि, यह पूरी प्रक्रिया अभी आरंभिक अवस्था में है और गूगल ने फिलहाल यह खोज नहीं की है कि नैनोपार्टिकल्स पूरे सिस्टम को किस तरह से प्रभावित करेंगे. गूगल की ओर से बताया गया है कि इस स्कीम को इसलिए सार्वजनिक किया जा रहा है ताकि इस तकनीक को आगे बढ़ाने के लिए इसमें नये व्यावसायिक साङोदारों को शामिल किया जा सके. ऐसा होने पर इस तकनीक को लोगों तक प्रभावी तरीके से पहुंचाने में मदद मिलेगी.
गूगल के अलावा अन्य कंपनियां भी होंगी शामिल
कॉनरेड का कहना है कि इस तकनीक का संचालन गूगल नहीं करेगी और इसमें वह कंपनी भी शामिल नहीं होगी जो नैनोपार्टिकल द्वारा एकत्रित आंकड़ों तक पहुंच कायम करेगी. इन आंकड़ों को मरीजों, डॉक्टरों, अस्पतालों और मेडिकल उपकरण बनाने वाली कंपनियों को मुहैया कराया जायेगा, जो इस तकनीक को आगे ले जा सकते हैं. कहा जा सकता है कि हम इस तकनीक के रचनाकार होंगे और वे (जो इसे कार्यान्वित करेंगे) इसके प्रसारक होंगे. इस प्रकार की नयी डायग्नोस्टिक तकनीकों को चिकित्सीय अनुप्रयोग में लाना और उसे नियमित करना एक बड़ी चुनौती है.
अब उम्मीद की जा रही है कि बड़ी मेडिकल कंपनियां गूगल की इस तकनीक में साङोदार होंगी, लेकिन इस उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि इसके पूरी तरह विकसित होने में अभी समय लग सकता है.
प्रस्तुतित्नकन्हैया झा
