।। दक्षा वैदकर ।।
एक अमीर आदमी था. उसने समुद्र में अकेले घूमने के लिए एक नाव बनवायी. छुट्टी के दिन वह नाव लेकर समुद्र की सैर करने निकला. वह समुद्र में कुछ दूर तक पहुंचा ही था कि अचानक एक जोरदार तूफान आया. उसकी नाव पूरी तरह से तहस-नहस हो गयी, लेकिन वह लाइफ जैकेट की मदद से समुद्र में कूद गया. जब तूफान शांत हुआ, तो वह तैरता हुए एक टापू पर पहुंचा.
टापू के चारों और समुद्र के अलावा कुछ भी नजर नहीं आ रहा था. उस आदमी ने सोचा कि जब मैंने पूरी जिदंगी में किसी का कभी भी बुरा नहीं किया, तो मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? उस आदमी को लगा कि खुदा ने मौत से बचाया, तो आगे का रास्ता भी वही बतायेगा.
धीरे-धीरे वह वहां पर उगे फल और पत्ते खा कर दिन बिताने लगा. अब धीरे-धीरे उसकी आस टूटने लगी.
उसको लगा कि इस दुनिया में खुदा है ही नहीं. फिर उसने सोचा कि अब पूरी जिंदगी यहीं इस टापू पर ही बितानी है तो क्यों ना एक झोपड़ी बना लूं. फिर उसने झाड़ की डालियों और पत्तों से एक छोटी-सी झोपड़ी बनायी. उसने मन ही मन कहा कि आज से झोपड़ी में सोने को मिलेगा. आज से बाहर नहीं सोना पड़ेगा. रात हुई ही थी कि अचानक मौसम बदला और जोर-जोर से बिजली कड़कने लगी.
तभी अचानक एक बिजली उस झोपड़ी पर आ गिरी और झोपड़ी धधकते हुए जलने लगी. यह देख कर वह आदमी टूट गया और आसमान की तरफ देख कर बोला, ‘तू खूदा नहीं, बेरहम है. तुझमें दया जैसी कोई चीज है ही नहीं. तू बहुत क्रूर है.’ वह इंसान हताश हो कर सिर पर हाथ रख कर रो रहा था कि अचानक एक नाव टापू के पास आयी.
नाव से उतरकर दो आदमी बाहर आये और बोले कि हम तुम्हें बचाने आये हैं. हमने दूर से इस वीरान टापू में जलता हुआ झोपड़ा देखा तो लगा कि कोई उस टापू पर मुसीबत में है. अगर तुम अपनी झोपड़ी नहीं जलाते, तो हमें पता नहीं चलता कि टापू पर कोई है. उस आदमी की आंखों से आंसू गिरने लगे. उसने खुदा से माफी मांगी और बोला कि मुझे क्या पता कि मुझे बचाने के लिए मेरी झोपड़ी जलायी थी.
बात पते की..
कई बार हम मुसीबत देख कर सोचते हैं कि ईश्वर ने हमारे साथ ठीक नहीं किया. जबकि सच तो यह है कि वह मुसीबत भी सोच-समझकर भेजता है
जब आप कुछ मांगते हैं और वह मिल जाती है, तो यह अच्छी बात है, लेकिन अगर वह नहीं मिलती, तो और अच्छी बात है. क्योंकि ईश्वर की मर्जी है.